पटना: बिहार में राष्ट्रीय जनता दल की स्थापना 1997 में हुई थी. स्थापना के बाद लालू यादव इसे बुलंदियों तक लेकर गए. लेकिन आज उनकी गैरमौजूदगी में पार्टी सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. इसका जीता जागता उदाहरण, संपन्न हुए लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी का खाता ना खुलना है.
इस बार स्थापना काल से लेकर अब तक सबसे कम सीट पर आरजेडी ने चुनाव लड़ा था. आए नतीजों में पार्टी को प्राप्त वोट प्रतिशत भी सबसे कम 15.36 प्रतिशत रहा. अब पार्टी लोकसभा चुनाव में हुए सफाये पर मंथन करने जा रही है. लेकिन उससे पहले तेज प्रताप ने जनता दरबार लगाने की घोषणा कर लालू परिवार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
महागठबंधन का बुरा हाल
लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में इस बार का लोकसभा का चुनाव लड़ा गया. तेजस्वी यादव महागठबंधन के नेता थे और उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया. महागठबंधन के खाते में केवल 1 सीट आई. वो एक सीट भी कांग्रेस को मिली, जबकि ना आरजेडी का खाता खुला और ना ही रालोसपा, वीआईपी और हम का.
पार्टी का इतिहास
- आरजेडी का गठन 1997 में जनता दल से अलग होने के बाद किया गया था. लालू प्रसाद के नेतृत्व में 1998 में पहली बार आरजेडी ने लोकसभा चुनाव भी लड़ा.
- उस समय झारखंड भी बिहार के साथ ही था और 54 सीटों में से आरजेडी ने 40 सीटों से अधिक पर अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे.
- वामदलों और झारखंड मुक्ति मोर्चा से 11 सीटों पर समझौता भी किया गया.
- राजद को उस चुनाव में 17 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि, एक साल बाद 1999 में ही लोकसभा का चुनाव फिर से हुआ और आरजेडी की सीटें घटकर 7 हो गईं.
- लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी का 2004 में परफॉर्मेंस सबसे बढ़िया रहा. उस समय पार्टी को 24 सीटों पर जीत मिली थी. जिसमें बिहार में आरजेडी ने 23 सीटों पर कब्जा किया. झारखंड की एक सीट पर फतह हासिल की.
- 2004 में लालू प्रसाद ने सिर्फ कांग्रेस से समझौता किया था और कांग्रेस के लिए केवल 4 सीटें छोड़ी थी. सीटों के लिहाज से 2004 के लोकसभा चुनाव में मिली सफलता आरजेडी के लिये स्वर्णिम काल माना जाता है.
बात 2009 लोकसभा चुनाव की
लालू प्रसाद ने 2009 के लोकसभा चुनाव में 29 सीटों पर दांव खेला. इस चुनाव में उन्हें सिर्फ चार सीटों पर ही जीत मिली. 2009 में लालू प्रसाद यादव ने केवल राम विलास पासवान की पार्टी लोजपा से समझौता किया था.
2014 लोकसभा चुनाव
2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ समझौता किया. इस बार पार्टी ने सीट शेयरिंग के तहत 27 सीटों पर उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा. इस बार भी आरजेडी को चार सीटों पर सफलता मिली. हालांकि, 2014 चुनाव मोदी लहर की शुरूआत माना जाता था. लेकिन फिर भी आरजेडी ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी.
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तो अभी और बढ़ेगी लालू परिवार की मुसीबत, जानें क्यों
— Etv Bihar (@etvbharatbihar) May 26, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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इस बार हुआ सफाया
2019 में लालू प्रसाद यादव के बिना आरजेडी ने कांग्रेस, रालोसपा, वीआईपी और हम के साथ गठबंधन किया. हुई सीट शेयरिंग में आरजेडी इस बार सबसे कम 19 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी. जमकर प्रचार प्रसार भी किया. लेकिन जनादेश कुछ और ही निकला. इस बार पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई.
घट गया आरजेडी का वर्चस्व
इस तरह से देखें, तो आरजेडी अपने स्थापना काल से लेकर अब तक केवल 2004 में ही सबसे बढ़िया रिजल्ट दे पाई है. उस समय आरजेडी को 30.6 प्रतिशत वोट मिला था. जबकि इस बार वोट प्रतिशत उसका आधा यानी 15.36 प्रतिशत रह गया है.
होगा मंथन
लोकसभा चुनाव में सफाए के बाद पार्टी मंथन करने जा रही है. लालू प्रसाद यादव के बिना यह मंथन होगा. पार्टी की आगे की रणनीति क्या होती है क्योंकि आरजेडी के विधानसभा में अभी भी सबसे ज्यादा विधायक हैं. वहीं, 2020 में विधानसभा चुनाव के लिए भी ये मंथन काफी अहम होगा.