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छठ व्रतियों ने खरना का प्रसाद ग्रहण किया, 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू - खरना पूजा का प्रसाद

महापर्व छठ (Chhath Puja) की खरना पूजा के साथ 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत शनिवार की शाम से हो गई. व्रतियों ने खरना के दिन छठी माता के दूसरे स्वरूप माँ अन्नपूर्णा की पूजा अर्चना कर प्रसाद ग्रहण किया. पढ़ें पूरी खबर

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Published : Oct 29, 2022, 7:58 PM IST

Updated : Oct 29, 2022, 8:11 PM IST

पटना : लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ ( Chhath Puja 2022 ) के खरना पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करने के साथ ही 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत हो गई. व्रतियों ने खरना के दिन छठी माता के दूसरे स्वरूप मां अन्नपूर्णा की पूजा अर्चना कर प्रसाद ग्रहण किया. छठी माता के गीत के बीच व्रतियों के साथ घर के सदस्यों ने श्रद्धापूर्वक पूजन किया.

यह भी पढ़ें - तेज प्रताप का 'लालू' अंदाजः छठ पर्व के मौके पर पहुंचे पैतृक गांव फुलवरिया, ग्रामीणों में उत्साह

आज से 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू: छठ महापर्व के दूसरे दिन आज छठव्रतियों द्वारा सायं कालीन समय में छठ माई की विधिविधान से पूजन करते हैं और सूर्य भगवान का नमन करते हैं. वहीं, सायं कालीन समय में रोटी और साठी चावल से बनी खीर का भोग लगाते हैं और केले के पत्त्ते पर दिया जलाकर पूजन को सम्पन्न करते हैं. जबकि छठव्रती आज से ही निर्जला व्रत रखते हैं. इस अनुष्ठान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें प्रयोग होने वाले सामग्रियों में सभी मौसमी फल, साठी चावल, दूध के साथ 56 प्रकार के व्यजनों और फलों का प्रयोग होता है.

खरना में बनता है खीर का प्रसाद: मुख्यत: यह सूर्य उपासना का पर्व है, जो चार दिन तक होता है. प्रथम दिन कद्दू की सब्जी, चने की दाल और चावल का भोग लगाया जाता है. इसे छठ व्रती पवित्र नदियों का जल लाकर प्रसाद बनाते हैं और इसे नहाय खाय का व्रत कहते है. वहीं, दूसरे दिन खरना होता है. इसमें खीर बनाई जाती है, जिसमें दूध, साठी चावल और गुड़ से बनाया जाता है और रोटी बनाई जाती है. इसी का भोग लगा कर प्रसाद ग्रहण किया जाता है और लोगों को दिया जाता है.

प्रसाद की शुद्धता का रखा जाता है ख्याल: छठ महापर्व को शुद्धता का पर्व भी कहा जाता है. लोग इस पर्व में शुद्धता पर काफी ध्यान देते हैं. तीसरे दिन अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को नदी तालाबों और पोखरे के जल में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है. जबकि चौथे दिन उदयाचल गामी भगवान भास्कर को अर्ध्य देने के साथ ही इस अनुष्ठान का समापन होता है. छठ पूजा को लेकर जिला प्रशासन, स्थानीय लोगों के द्वारा गंगा घाट, नदी और तालाबों में विशेष साफ-सफाई की गई है. पूरे बिहार के सभी जिलों में नदी और तालाबों के किनारे बने घाटों को काफी आकर्षक ढंग से सजाया गया है.

छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाली समाग्रीः छठ पूजा में नई साड़ी, बांस की बनी हुए बड़ी-बड़ी टोकरियां, पीतल या बास का सूप, दूध, जल, लोटा, शाली, गन्ना, मौसमी फल, पान, सुथना, सुपारी, मिठाई, दिया आदि समानों की जरुरत होती है. दरअसल सूर्य देव को छठ के दिन इस मौसम में मिलने वाली सभी फल और सब्जी अर्पण किए जाते हैं. छठ पूजा की शुरूआत नहाय खाय (28 अक्टूबर शुक्रवार) से हुई है. अब दूसरा दिन यानी आज खरना (29 अक्टूबर शनिवार) की पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण किया. तीसरे दिन- अस्तचलगामी सूर्य को अर्घ्य (30 अक्टूबर रविवार) को होगा और आखिरी दिन व चौथे दिन- उदीयमान सूर्य को अर्घ्य (31 अक्टूबर सोमवार) दिया जाएगा.

क्या है छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा? एक पौराणिक कथा के मुताबिक, प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों के कोई संतान नहीं थी. इस वजह से दोनों दुःखी रहते थे. एक दिन महर्षि कश्यप ने राजा प्रियव्रत से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा मानते हुए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश वह बच्चा मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और दुखी हो गए. उसी दौरान आसमान से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. राजा के प्रार्थना करने पर उन्होंने अपना परिचय दिया. उन्होंने बताया कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी हूं. मैं संसार के सभी लोगों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं. तभी देवी ने मृत शिशु को आशीर्वाद देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह पुन: जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बेहद खुश हुए और षष्ठी देवी की आराधना की. इसके बाद से ही इस पूजा का प्रसार हो गया.

पटना : लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ ( Chhath Puja 2022 ) के खरना पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करने के साथ ही 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत हो गई. व्रतियों ने खरना के दिन छठी माता के दूसरे स्वरूप मां अन्नपूर्णा की पूजा अर्चना कर प्रसाद ग्रहण किया. छठी माता के गीत के बीच व्रतियों के साथ घर के सदस्यों ने श्रद्धापूर्वक पूजन किया.

यह भी पढ़ें - तेज प्रताप का 'लालू' अंदाजः छठ पर्व के मौके पर पहुंचे पैतृक गांव फुलवरिया, ग्रामीणों में उत्साह

आज से 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू: छठ महापर्व के दूसरे दिन आज छठव्रतियों द्वारा सायं कालीन समय में छठ माई की विधिविधान से पूजन करते हैं और सूर्य भगवान का नमन करते हैं. वहीं, सायं कालीन समय में रोटी और साठी चावल से बनी खीर का भोग लगाते हैं और केले के पत्त्ते पर दिया जलाकर पूजन को सम्पन्न करते हैं. जबकि छठव्रती आज से ही निर्जला व्रत रखते हैं. इस अनुष्ठान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें प्रयोग होने वाले सामग्रियों में सभी मौसमी फल, साठी चावल, दूध के साथ 56 प्रकार के व्यजनों और फलों का प्रयोग होता है.

खरना में बनता है खीर का प्रसाद: मुख्यत: यह सूर्य उपासना का पर्व है, जो चार दिन तक होता है. प्रथम दिन कद्दू की सब्जी, चने की दाल और चावल का भोग लगाया जाता है. इसे छठ व्रती पवित्र नदियों का जल लाकर प्रसाद बनाते हैं और इसे नहाय खाय का व्रत कहते है. वहीं, दूसरे दिन खरना होता है. इसमें खीर बनाई जाती है, जिसमें दूध, साठी चावल और गुड़ से बनाया जाता है और रोटी बनाई जाती है. इसी का भोग लगा कर प्रसाद ग्रहण किया जाता है और लोगों को दिया जाता है.

प्रसाद की शुद्धता का रखा जाता है ख्याल: छठ महापर्व को शुद्धता का पर्व भी कहा जाता है. लोग इस पर्व में शुद्धता पर काफी ध्यान देते हैं. तीसरे दिन अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को नदी तालाबों और पोखरे के जल में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है. जबकि चौथे दिन उदयाचल गामी भगवान भास्कर को अर्ध्य देने के साथ ही इस अनुष्ठान का समापन होता है. छठ पूजा को लेकर जिला प्रशासन, स्थानीय लोगों के द्वारा गंगा घाट, नदी और तालाबों में विशेष साफ-सफाई की गई है. पूरे बिहार के सभी जिलों में नदी और तालाबों के किनारे बने घाटों को काफी आकर्षक ढंग से सजाया गया है.

छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाली समाग्रीः छठ पूजा में नई साड़ी, बांस की बनी हुए बड़ी-बड़ी टोकरियां, पीतल या बास का सूप, दूध, जल, लोटा, शाली, गन्ना, मौसमी फल, पान, सुथना, सुपारी, मिठाई, दिया आदि समानों की जरुरत होती है. दरअसल सूर्य देव को छठ के दिन इस मौसम में मिलने वाली सभी फल और सब्जी अर्पण किए जाते हैं. छठ पूजा की शुरूआत नहाय खाय (28 अक्टूबर शुक्रवार) से हुई है. अब दूसरा दिन यानी आज खरना (29 अक्टूबर शनिवार) की पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण किया. तीसरे दिन- अस्तचलगामी सूर्य को अर्घ्य (30 अक्टूबर रविवार) को होगा और आखिरी दिन व चौथे दिन- उदीयमान सूर्य को अर्घ्य (31 अक्टूबर सोमवार) दिया जाएगा.

क्या है छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा? एक पौराणिक कथा के मुताबिक, प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों के कोई संतान नहीं थी. इस वजह से दोनों दुःखी रहते थे. एक दिन महर्षि कश्यप ने राजा प्रियव्रत से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा मानते हुए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश वह बच्चा मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और दुखी हो गए. उसी दौरान आसमान से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. राजा के प्रार्थना करने पर उन्होंने अपना परिचय दिया. उन्होंने बताया कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी हूं. मैं संसार के सभी लोगों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं. तभी देवी ने मृत शिशु को आशीर्वाद देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह पुन: जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बेहद खुश हुए और षष्ठी देवी की आराधना की. इसके बाद से ही इस पूजा का प्रसार हो गया.

Last Updated : Oct 29, 2022, 8:11 PM IST
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