पटना: कोविड-19 आपदा में एक तरफ जहां हजारों लोग बेरोजगार हो गए और रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे थे, वहीं कई लोगों ने आपदा को अवसर में बदलकर कामयाबी की नई इबारत लिख दी. ऐसे ही शख्स का नाम है संन्यासी रेड. पेशे से मूर्तिकार संन्यासी रेड (Sculptor Sanyasi Red) ने कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान खेती-किसानी में भाग्य आजमाने का फैसला किया. करीब 2 वर्षों की कड़ी मेहनत ने आज उनको इस मुकाम पर पहुंचा दिया है कि वह चावल की 6 किस्मों का उत्पादन (Production of 6 Varieties of Rice) करने में सफल साबित हुए हैं. खास बात ये भी है कि वह रासायनिक खेती की जगह जैविक खेती करते हैं.
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आपदा को अवसर में बदला: दरअसल, साल 2013 में बिहार सरकार की ओर से संन्यासी रेड को 17 करोड़ 47 लाख का टेंडर मिला था. राजगीर के घोड़ा कटोरा में 100 फीट की बुद्ध मूर्ति बनाने की योजना थी लेकिन लालफीताशाही के चलते उनका एग्रीमेंट कैंसिल हो गया. उसको लेकर वह कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. इसी बीच कोरोना संकट आ गया और लॉकडाउन के दौरान संन्यासी रेड के मन में कृषि के क्षेत्र में भाग्य आजमाने का ख्याल आया और 2 साल की कड़ी मेहनत का नतीजा सामने है.
चावल की 6 किस्मों का उत्पादन: चर्चित मूर्तिकार संन्यासी रेड बताते हैं कि उन्होंने चावल के बीज दूसरे राज्यों से मंगाया और चावल की वैसी किस्मों का चयन किया, जो चावल अलग-अलग बीमारियों में खाया जा सकता है. 2 साल के दौरान कलावती ब्लैक राइस मणिपुर, चाठव, ब्राउन राइस, रेड राइस, इंद्राणी गोविंद भोग और रफीक किस्म का चावल उपजाया. इसके साथ ही वह ब्लैक गेहूं का भी उत्पादन कर रहे हैं. ब्लैक गेहूं शुगर की बीमारी से ग्रसित मरीज खा सकते हैं. चावल की कीमत 200 से 250 रुपए प्रति किलोग्राम है.
जैविक खेती पर जोर: संन्यासी रेड अपने खेतों में किसी प्रकार के खाद और रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल नहीं करते हैं. अर्थात वह पूरी तरह से जैविक खेती करते हैं. वे कहते हैं कि कि कुछ अलग और स्वास्थ्य के लिहाज बेहतर करने के ख्याल से उन्होंने जैविक खेती को अपनाया, ताकि लोगों को शुद्ध भोजन मिले. मेरी सोच थी कि मैं भी रसायन रहित खाना खाऊं और दूसरों को भी उपलब्ध करा सकूं.
इंटरनेशनल आर्टिस्ट रेजीडेंसी पर काम: संन्यासी ने बताया कि आने वाले दिनों में राजधानी पटना में रहने वाले लोगों के लिए भी गांव के शुद्ध वातावरण में वोटिंग भ्रमण और शुद्ध भोजन की व्यवस्था करने की योजना है. कॉटेज में लोग रहकर अपना भोजन खुद बनाएंगे और खाएंगे, ऐसी व्यवस्था हम करने जा रहे हैं. असल में वह महादेवपुर गांव में इंटरनेशनल आर्टिस्ट रेजीडेंसी बनाना चाहते हैं. उस पर काम चल रहा है. अगले 2 से 3 महीने में रेजीडेंसी बनकर तैयार हो जाएगा. देशभर के कलाकार यहां आकर स्वच्छ वातावरण में स्वास्थ्य लाभ लेते हुए अपनी कलाकृति को उच्चतम स्तर पर ले जा सकते हैं.
"लॉकडाउन के दौरान मेरे मन में एक ख्याल आया कि कुछ बेहतर किया जाए और लोगों को शुद्ध भोजन मिले, इसके लिए मैंने जैविक खेती को अपनाया. मेरी सोच थी कि मैं भी रसायन रहित खाना खाऊं और दूसरों को भी उपलब्ध करा सकूं. आने वाले समय में गांव के शुद्ध वातावरण में वोटिंग भ्रमण और शुद्ध भोजन की व्यवस्था कराऊंगा. कॉटेज में लोग रहकर अपना भोजन खुद बनाएंगे और खाएंगे, ऐसी व्यवस्था हम करने जा रहे हैं"- संन्यासी रेड, मूर्तिकार सह सफल किसान
रेड, ब्लैक और ब्राउन राइस की खासियत: रेड राइस में मिनरल्स ज्यादा और कार्बोहाइड्रेट कम होते हैं. रेड राइस के सेवन से ब्लड प्रेशर शुगर और हड्डियों में दर्द में सहायक होता है. इस चावल के सेवन से चेहरे में झुर्रियां नहीं पड़ती है. ब्लैक राइस की भी कई खूबियां है ब्लैक राइस का सेवन वैसे लोग करते हैं, जो किसी बीमारी से ग्रसित हैं. कैंसर और किडनी की बीमारी से ग्रसित लोगों के लिए ब्लैक राइस का सेवन लाभदायक होता है. वहीं, ब्राउन राइस भी कई गुणों से भरपूर है. इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है और इसके सेवन से कॉन्स्टिपेशन और गैस जैसी बीमारी ठीक हो सकती है.
ब्लैक गेहूं और मत्स्य पालन: संन्यासी रेड ब्लैक गेहूं का भी उत्पादन कर रहे हैं. वे कहते हैं कि ब्लैक गेहूं में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है. जिस वजह से शुगर की बीमारी से ग्रसित लोग ब्लैक गेहूं का सेवन कर सकते हैं. इसके अलावा उन्होंने मछली पालन को भी आय का जरिया बनाया है. इनके महादेवपुर गांव में 5 तालाब हैं. जिसके माध्यम से अच्छी कमाई हो जाती है.
कई लोगों को दिया रोजगार: संन्यासी रेड ने कोरोना काल में आपदा को अवसर में बदलने की जो रणनीति अपनाई, उसका फायदा केवल उनको ही नहीं मिली बल्कि अन्य लोगों को भी इसका लाभ मिला है. आज उनके प्रयासों से गांव की 10 से 12 महिलाओं को भी रोजगार मिला है. वे कहते हैं कि उनकी कोशिश है कि आने वाले वक्त में अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराया जाए ताकि फिर भविष्य में कोई संकट आए तो गांव के लोगों को रोजी-रोटी के लिए भटकना ना पड़े.
कौन हैं संन्यासी रेड? : संन्यासी रेड का जन्म साल 1972 में पटना से 50 किलोमीटर दूर मसौढ़ी स्थित महादेवपुर गांव में हुआ था. उनके पिता झरिया के कोल माइंस में मैनेजर थे. उनकी स्कूली शिक्षा झरिया के इंडियान स्कूल ऑफ लर्निंग से हुई. बचपन से ही मूर्तिकला और पेंटिंग का शौक था. उनके दादा माधो सिंह पटना आर्ट एंड क्राफ्ट कॉलेज के संस्थापक थे. बाद में पटना आर्ट एंड क्राफ्ट कॉलेज में दाखिला ले लिया. यहीं पत्थरों के बीच काम करने की इच्छा मन में जगी. बाद में कॉलेज स्टूडेंट यूनियन का प्रेसीडेंट भी बने. सन्यासी रेड की पत्नी मधुमिता रेड का कैंसर के कारण निधन हो चुका है. उनके दो बच्चे भी हैं, जिनके लिए अब वह मां की भूमिका भी बखूबी निभा रहे हैं.
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