पटना: गांधी मैदान स्थित बिहार आर्ट थियेटर में सर्वमंगला रंग नाटक उत्सव का आयोजन किया गया. जिसके तीसरे दिन रविंद्र नाथ टैगोर की रचना काबुलीवाला नाटक का मंचन किया गया. नाटक में अफगानिस्तान से आए कोलकाता की गलियों में फेरी लगाकर मेवा फल बेचने वाले एक व्यापारी अब्दुल रहमान और बच्ची मिनी के बारे में दिखाया गया. रहमान को मिनी में उसकी अपनी बच्ची का अक्स दिखाई देता है.
जानिए नाटक में क्या दिखाया गया...
काबलीवाला एक पठान है और मिनी एक हिंदू परिवार की बच्ची. दोनों के बीच उत्पन्न स्नेह में धर्म की दीवार का नामोनिशान नहीं है. परदेसी काबलीवाला मिनी से ही अपनी पुत्र के स्नेह की पूर्ति करता है. मिनी की सारी बातें वह एक बच्चे की तरह सरलता से सुनता है और स्वीकार करता है. सूखे मेवे, फल बेचने के बहाने बरोज मिनी के घर का एक चक्कर लगा लेता और उसकी आवाज सुनकर मिनी उसके पास दौड़ी चली आती. यह सिलसिला लगातार जारी रहा. 1 दिन काबुलीवाला अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उधार पैसे की मांग एक ग्राहक से करता है. लेकिन ग्राहक पैसे देने में आनाकानी करता है. काबुली वाले को भरा बुला कहता है.
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भाईचारा का संदेश
काबुलीवाला को गाली देने लगता है. जिसके बाद काबलीवाला उसे समझाता है. लेकिन वह नहीं मानता. गुस्से में वह चाकू से हमला कर देता है और उससे इस अपराध की सजा हो जाती है. लंबी सजा भुगतकर वर्षों जेल में रहने के बाद जब वह लौटता है तो मिनी बड़ी हो चुकी होती है. उसकी शादी होने वाली होती है. वह रहमान को पहचानने से इंकार कर देती है. काबुली वाले को लगता है कि उसकी बेटी उसे जरूर भूल गई होगी. उसकी शादी भी हो गई होगी. मिनी के पिता काबुली वाले को वतन वापसी के लिए पैसे देते हैं. इस नाटक में दो धर्मों के बीच भाईचारा का संदेश देने और लोगों को जागरूक करने की कोशिश की गई है.