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कोसी-मेची नदी जोड़ योजना पर सियासत, संजय झा बोले- जल शक्ति मंत्रालय को लिखेंगे पत्र

'कोसी-मेची नदी जोड़ योजना' को लेकर बिहार सरकार ने कई साल पहले केंद्र सरकार को डीपीआर सौंपा था. वहीं इसे केंद्र से स्वीकृति भी मिल गई, लेकिन आगे इसमें पर्यावरण का पेंच फंस गया. साथ ही सरकार इस योजना पर खर्च होने वाली राशि को लेकर भी कोई रास्ता नहीं निकाल सकी.

पटना
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Published : Aug 12, 2020, 10:31 PM IST

पटना : बिहार में बाढ़ से लगभग दो दर्जन जिले प्रभावित होते रहे हैं. वहीं उत्तर बिहार में प्रतिवर्ष बाढ़ की तबाही बदस्तूर जारी रहती है. विशेषज्ञों के अनुसार इसका प्रमुख कारण उत्तर बिहार में नदियों के जाल होने के बावजूद कोई बड़ी सिंचाई योजना का नहीं होना बताया जाता है. इसको लेकर लंबे समय से नदी जोड़ योजना पर चर्चा होती रही है.

'कोसी-मेची नदी जोड़ योजना' को लेकर बिहार सरकार ने कई साल पहले केंद्र सरकार को डीपीआर सौंपा था. वहीं इसे केंद्र से स्वीकृति भी मिल गई, लेकिन आगे इसमें पर्यावरण का पेंच फंस गया. साथ ही सरकार इस योजना पर खर्च होने वाली राशि को लेकर भी कोई रास्ता नहीं निकाल सकी.

पटना
सीएम नीतीश ने पीएम के सामने नदी लिंक का उठाया मुद्दा

आधा दर्जन जिलों की तकदीर बदलने की उम्मीद
इसी क्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर से इस योजना को प्रधानमंत्री के समक्ष उठाकर इसे राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करने की मांग की है. वहीं योजना को केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय से स्वीकृति के लिए जल संसाधन मंत्री संजय झा जल्द ही पत्र लिखने वाले हैं. सरकार को उम्मीद है कि 'कोसी-मेची नदी जोड़ योजना' से सीमांचल के आधा दर्जन जिलों की तकदीर बदल सकती है.

120.5 किलोमीटर लंबी नहर की खुदाई
बता दें कि 17 दिसंबर 2016 में केंद्र सरकार ने पर्यावरण क्लीयरेंस की शर्त पर बिहार सरकार को 'कोसी-मेची नदी जोड़ योजना' की मंजूरी दे दी थी. जिसमें अब तक पर्यावरण क्लीयरेंस का मामला फंसा हुआ है. इस योजना के अंतर्गत 120.5 किलोमीटर लंबी नहर की खुदाई की जाएगी. यह नहर नेपाल के तराई क्षेत्र से गुजरेगी. जिसे बकरा, रावता और कनकई जैसी छोटी नदियों को इससे जोड़ा जाएगा. कोसी के आधा दर्जन जिलों में इससे सिंचाई की सुविधा मिलेगी. जिसमें सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज और पूर्णिया जिले शामिल हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

पर्यावरण का फंसा मामला
गौरतलब है कि योजना मंजूरी के समय इसकी लागत 4900 करोड़ रुपये अनुमानित थी. जिससे 120.5 किलोमीटर लंबी नहर के निर्माण से कुल 4.74 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने की योजना थी. साथ ही 1.75 लाख हेक्टेयर भूमि पर नेपाल के क्षेत्र में भी सिंचाई सुविधा होगी. ऐसे तो बिहार की ओर से एक दर्जन नदी जोड़ योजना पर चर्चा होती रही है. जबकि बिहार ने केंद्र सरकार को तीन बड़ी योजना का डीपीआर सौंपा था. जिसमें से कोसी-मेची योजना पर ही मोहर लगी, लेकिन उसमें भी पर्यावरण का मामला फंसा हुआ है.

पटना
बिहार में बाढ़ का कहर
  • बिहार सरकार द्वारा केंद्र को भेजे गए तीन नदी जोड़ योजनाओं का डीपीआर इस प्रकार है-

1. 'बूढ़ी गंडक नून बाया गंगा लिंक'- 8 जनवरी 2014 को सौंपे गए डीपीआर के अनुसार 71 किलोमीटर में कैनाल बनाकर बूढ़ी गंडक नदी का पानी नून और बाया नदी के रास्ते गंगा में मिलाने का था. इससे वैशाली, समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर जिले को बाढ़ से निजात मिलने की उम्मीद जताई गई है. साथ ही इससे 247001 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता भी विकसित होगी. उस समय योजना का लागत 4213.8 करोड़ आंका गया, लेकिन अब इसकी लागत 65 सौ करोड़ तक अनुमानित है.

2. 'कोसी-मेची लिंक'- इसका डीपीआर 2 मई 2014 को सौंपा गया. जिसके अंतर्गत 120.15 किलोमीटर लंबे कैनाल का निर्माण होना है. कोसी बेसिन के पानी को महानंदा बेसिन में मेची लिंक से लाया जाएगा. जिससे 214000 हेक्टेयर से अधिक खेतों को सिंचाई सुविधा मिलेगी. इससे सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज और पूर्णिया जिले को लाभ मिलने की उम्मीद जताई गई है. वहीं इसकी लागत लगभग 5 हजार करोड़ था, जो अब बढ़कर 7500 करोड़ होने का अनुमान है.

3. 'सकरी नाटा नदी जोड़ योजना' इसका डीपीआर 30 मई 2014 को सौंपा गया. जिसके अंतर्गत 20 किलोमीटर में कैनाल बनाने की योजना है. इससे नवादा, नालंदा और आस-पास के इलाकों को लाभ मिलने की उम्मीद जताई गई है. साथ ही इससे 68808 हेक्टेयर में सिंचाई क्षमता विकसित होगी. वहीं जब डीपीआर सौंपा गया तो उसमें इसकी लागत 572.38 करोड़ थी, जो अब बढ़कर 1200 करोड़ होने का अनुमान है. इसी योजना की चर्चा एक बार फिर से शुरू हो गई है.

'पहले भी राष्ट्रीय योजना में शामिल हुई है नदी जोड़ योजना'
जल संसाधन मंत्री संजय झा से टेलीफोन द्वारा हुई बातचीत में उन्होंने स्वीकार करते हुए कहा कि पर्यावरण को लेकर मामला जल शक्ति मंत्रालय में अटका हुआ है. मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री के साथ बैठक में भी इसे राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करने की मांग की. क्योंकि इस पर खर्च होने वाली राशि को सरकार वहन करने की स्थिति में नहीं है. केंद्र सरकार ने पहले भी मध्य प्रदेश की नदी जोड़ योजना को राष्ट्रीय योजना के अंतर्गत शामिल कर चुकी है.

पटना
जल संसाधन मंत्री संजय झा

जल शक्ति मंत्रालय को लिखेंगे पत्र- संजय झा

संजय झा के अनुसार राष्ट्रीय परियोजना में शामिल होने के बाद केंद्र सरकार 90% और बिहार सरकार को केवल 10% खर्च करना होगा. अभी की स्थिति में क्योंकि यह बिहार की योजना है, इसलिए स्टेट सस्पॉन्सर होने के कारण अधिकांश राशि बिहार को ही खर्च करना पड़ेगा. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पूरे मामले में जल्द ही जल शक्ति मंत्रालय को पत्र भी लिखने वाले हैं.

पटना
आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी

इस योजना का हाल भी अन्य योजनाओं की तरह

  • वहीं दूसरी ओर विपक्ष शुरू से ही आरोप लगाता रहा है कि बिहार और केंद्र में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद कोई भी बड़ी योजना जमीन पर नहीं उतर रही है. इस योजना का हाल भी अन्य योजनाओं की तरह ही है.
    पटना
    बाढ़ पर काम करने वाले विशेषज्ञ रणजीव

'इसका बहुत फायदा होने वाला नहीं'
नदी जोड़ योजना को लेकर ऐसे तो चर्चा पिछले डेढ़ दशक से हो रही है, लेकिन जमीन पर अभी तक कुछ नहीं उतर सका है. सब कुछ कागजों में ही घूम रहा है. बाढ़ को लेकर कोसी इलाके में लंबे समय से काम करने वाले रणजीव का कहना है जिस तरह की योजना तैयार की जा रही है. इसका बहुत फायदा होने वाला नहीं है क्योंकि इसे पूरा होने में भी काफी लंबा समय लगेगा और फिलहाल तो जमीन पर कुछ है ही नहीं.

जल संसाधन मंत्री संजय झा से संवाददाता अविनाश की बातचीत

योजना पर पहले भी होती रही है सियासत
गौरतलब है कि नदी जोड़ योजना की चर्चा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय जोर पकड़ा था. बिहार में नदी जोड़ योजना के माध्यम से बाढ़ से निजात और सिंचाई सुविधा में मदद मिलने का दावा किया गया था. उस समय बिहार के जल संसाधन मंत्री ललन सिंह थे. जिन्होंने केंद्र सरकार द्वारा बिहार का डीपीआर स्वीकार नहीं किए जाने पर तत्कालीन केंद्रीय सरकार पर भी जमकर निशाना साधा था.

चुनावी साल में घोषणा पर मुहर लगने की उम्मीद
वहीं पिछले 5 सालों से भी अधिक समय से केंद्र में एनडीए की सरकार होने के साथ ही बिहार में भी एनडीए की सरकार है. इसके बावजूद नदी जोड़ योजना पर कोई खास प्रगति नहीं हुई है. अब प्रधानमंत्री के साथ सामने मुख्यमंत्री ने इस मामले को ढंग से उठाया है. साथ ही चुनावी साल भी इसलिए नदी जोड़ योजना को लेकर होने वाली घोषणा पर सबकी निगाहें टिकी हुई है.

पटना : बिहार में बाढ़ से लगभग दो दर्जन जिले प्रभावित होते रहे हैं. वहीं उत्तर बिहार में प्रतिवर्ष बाढ़ की तबाही बदस्तूर जारी रहती है. विशेषज्ञों के अनुसार इसका प्रमुख कारण उत्तर बिहार में नदियों के जाल होने के बावजूद कोई बड़ी सिंचाई योजना का नहीं होना बताया जाता है. इसको लेकर लंबे समय से नदी जोड़ योजना पर चर्चा होती रही है.

'कोसी-मेची नदी जोड़ योजना' को लेकर बिहार सरकार ने कई साल पहले केंद्र सरकार को डीपीआर सौंपा था. वहीं इसे केंद्र से स्वीकृति भी मिल गई, लेकिन आगे इसमें पर्यावरण का पेंच फंस गया. साथ ही सरकार इस योजना पर खर्च होने वाली राशि को लेकर भी कोई रास्ता नहीं निकाल सकी.

पटना
सीएम नीतीश ने पीएम के सामने नदी लिंक का उठाया मुद्दा

आधा दर्जन जिलों की तकदीर बदलने की उम्मीद
इसी क्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर से इस योजना को प्रधानमंत्री के समक्ष उठाकर इसे राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करने की मांग की है. वहीं योजना को केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय से स्वीकृति के लिए जल संसाधन मंत्री संजय झा जल्द ही पत्र लिखने वाले हैं. सरकार को उम्मीद है कि 'कोसी-मेची नदी जोड़ योजना' से सीमांचल के आधा दर्जन जिलों की तकदीर बदल सकती है.

120.5 किलोमीटर लंबी नहर की खुदाई
बता दें कि 17 दिसंबर 2016 में केंद्र सरकार ने पर्यावरण क्लीयरेंस की शर्त पर बिहार सरकार को 'कोसी-मेची नदी जोड़ योजना' की मंजूरी दे दी थी. जिसमें अब तक पर्यावरण क्लीयरेंस का मामला फंसा हुआ है. इस योजना के अंतर्गत 120.5 किलोमीटर लंबी नहर की खुदाई की जाएगी. यह नहर नेपाल के तराई क्षेत्र से गुजरेगी. जिसे बकरा, रावता और कनकई जैसी छोटी नदियों को इससे जोड़ा जाएगा. कोसी के आधा दर्जन जिलों में इससे सिंचाई की सुविधा मिलेगी. जिसमें सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज और पूर्णिया जिले शामिल हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

पर्यावरण का फंसा मामला
गौरतलब है कि योजना मंजूरी के समय इसकी लागत 4900 करोड़ रुपये अनुमानित थी. जिससे 120.5 किलोमीटर लंबी नहर के निर्माण से कुल 4.74 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने की योजना थी. साथ ही 1.75 लाख हेक्टेयर भूमि पर नेपाल के क्षेत्र में भी सिंचाई सुविधा होगी. ऐसे तो बिहार की ओर से एक दर्जन नदी जोड़ योजना पर चर्चा होती रही है. जबकि बिहार ने केंद्र सरकार को तीन बड़ी योजना का डीपीआर सौंपा था. जिसमें से कोसी-मेची योजना पर ही मोहर लगी, लेकिन उसमें भी पर्यावरण का मामला फंसा हुआ है.

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बिहार में बाढ़ का कहर
  • बिहार सरकार द्वारा केंद्र को भेजे गए तीन नदी जोड़ योजनाओं का डीपीआर इस प्रकार है-

1. 'बूढ़ी गंडक नून बाया गंगा लिंक'- 8 जनवरी 2014 को सौंपे गए डीपीआर के अनुसार 71 किलोमीटर में कैनाल बनाकर बूढ़ी गंडक नदी का पानी नून और बाया नदी के रास्ते गंगा में मिलाने का था. इससे वैशाली, समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर जिले को बाढ़ से निजात मिलने की उम्मीद जताई गई है. साथ ही इससे 247001 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता भी विकसित होगी. उस समय योजना का लागत 4213.8 करोड़ आंका गया, लेकिन अब इसकी लागत 65 सौ करोड़ तक अनुमानित है.

2. 'कोसी-मेची लिंक'- इसका डीपीआर 2 मई 2014 को सौंपा गया. जिसके अंतर्गत 120.15 किलोमीटर लंबे कैनाल का निर्माण होना है. कोसी बेसिन के पानी को महानंदा बेसिन में मेची लिंक से लाया जाएगा. जिससे 214000 हेक्टेयर से अधिक खेतों को सिंचाई सुविधा मिलेगी. इससे सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज और पूर्णिया जिले को लाभ मिलने की उम्मीद जताई गई है. वहीं इसकी लागत लगभग 5 हजार करोड़ था, जो अब बढ़कर 7500 करोड़ होने का अनुमान है.

3. 'सकरी नाटा नदी जोड़ योजना' इसका डीपीआर 30 मई 2014 को सौंपा गया. जिसके अंतर्गत 20 किलोमीटर में कैनाल बनाने की योजना है. इससे नवादा, नालंदा और आस-पास के इलाकों को लाभ मिलने की उम्मीद जताई गई है. साथ ही इससे 68808 हेक्टेयर में सिंचाई क्षमता विकसित होगी. वहीं जब डीपीआर सौंपा गया तो उसमें इसकी लागत 572.38 करोड़ थी, जो अब बढ़कर 1200 करोड़ होने का अनुमान है. इसी योजना की चर्चा एक बार फिर से शुरू हो गई है.

'पहले भी राष्ट्रीय योजना में शामिल हुई है नदी जोड़ योजना'
जल संसाधन मंत्री संजय झा से टेलीफोन द्वारा हुई बातचीत में उन्होंने स्वीकार करते हुए कहा कि पर्यावरण को लेकर मामला जल शक्ति मंत्रालय में अटका हुआ है. मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री के साथ बैठक में भी इसे राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करने की मांग की. क्योंकि इस पर खर्च होने वाली राशि को सरकार वहन करने की स्थिति में नहीं है. केंद्र सरकार ने पहले भी मध्य प्रदेश की नदी जोड़ योजना को राष्ट्रीय योजना के अंतर्गत शामिल कर चुकी है.

पटना
जल संसाधन मंत्री संजय झा

जल शक्ति मंत्रालय को लिखेंगे पत्र- संजय झा

संजय झा के अनुसार राष्ट्रीय परियोजना में शामिल होने के बाद केंद्र सरकार 90% और बिहार सरकार को केवल 10% खर्च करना होगा. अभी की स्थिति में क्योंकि यह बिहार की योजना है, इसलिए स्टेट सस्पॉन्सर होने के कारण अधिकांश राशि बिहार को ही खर्च करना पड़ेगा. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पूरे मामले में जल्द ही जल शक्ति मंत्रालय को पत्र भी लिखने वाले हैं.

पटना
आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी

इस योजना का हाल भी अन्य योजनाओं की तरह

  • वहीं दूसरी ओर विपक्ष शुरू से ही आरोप लगाता रहा है कि बिहार और केंद्र में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद कोई भी बड़ी योजना जमीन पर नहीं उतर रही है. इस योजना का हाल भी अन्य योजनाओं की तरह ही है.
    पटना
    बाढ़ पर काम करने वाले विशेषज्ञ रणजीव

'इसका बहुत फायदा होने वाला नहीं'
नदी जोड़ योजना को लेकर ऐसे तो चर्चा पिछले डेढ़ दशक से हो रही है, लेकिन जमीन पर अभी तक कुछ नहीं उतर सका है. सब कुछ कागजों में ही घूम रहा है. बाढ़ को लेकर कोसी इलाके में लंबे समय से काम करने वाले रणजीव का कहना है जिस तरह की योजना तैयार की जा रही है. इसका बहुत फायदा होने वाला नहीं है क्योंकि इसे पूरा होने में भी काफी लंबा समय लगेगा और फिलहाल तो जमीन पर कुछ है ही नहीं.

जल संसाधन मंत्री संजय झा से संवाददाता अविनाश की बातचीत

योजना पर पहले भी होती रही है सियासत
गौरतलब है कि नदी जोड़ योजना की चर्चा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय जोर पकड़ा था. बिहार में नदी जोड़ योजना के माध्यम से बाढ़ से निजात और सिंचाई सुविधा में मदद मिलने का दावा किया गया था. उस समय बिहार के जल संसाधन मंत्री ललन सिंह थे. जिन्होंने केंद्र सरकार द्वारा बिहार का डीपीआर स्वीकार नहीं किए जाने पर तत्कालीन केंद्रीय सरकार पर भी जमकर निशाना साधा था.

चुनावी साल में घोषणा पर मुहर लगने की उम्मीद
वहीं पिछले 5 सालों से भी अधिक समय से केंद्र में एनडीए की सरकार होने के साथ ही बिहार में भी एनडीए की सरकार है. इसके बावजूद नदी जोड़ योजना पर कोई खास प्रगति नहीं हुई है. अब प्रधानमंत्री के साथ सामने मुख्यमंत्री ने इस मामले को ढंग से उठाया है. साथ ही चुनावी साल भी इसलिए नदी जोड़ योजना को लेकर होने वाली घोषणा पर सबकी निगाहें टिकी हुई है.

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