नई दिल्ली. किसान आंदोलन की गूंज संसद में सुनाई दे रही है. गुरुवार को राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा का दूसरा दिन था. इस दौरान राजद सांसद मनोज झा ने पाश की पंक्तियां सुनाई. इसके साथ ही उन्होंने सोने के पंखों वाले पक्षी और हंस की कहानी सुनाकर किसानों की पीड़ा बताई.
मनोज झा ने कहा कि मैं कभी सरहद पर नहीं गया, तस्वीरें देखीं हैं. आजकर दिल्ली में जो तस्वीरें दिख रहीं हैं वे सरहद से भी खौफनाक हैं. किसानों को रोकने के लिए खाई खोद दी गई. सड़क पर कील बिछा दिए गए. बड़े-बड़े सरिये लगा दिए गए. उन्होंने दिल्ली की सीमा पर किसानों को रोकने के लिए किए गए इंतजाम का जिक्र कर पाश की कविता सुनाई. उन्होंने पढ़ा-
'यदि देश की सुरक्षा यही होती है कि बिना जमीर होना जिन्दगी के लिए शर्त बन जाए
आंख की पुतली में हां के सिवाय कोई भी शब्द अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है.'
सुनाई सोने के पक्षी की कहानी
अपने भाषण में मनोज झा ने सोने पक्षी और हंसों की कहानी सुनाई. उन्होंने कहा कि एक राजा के पास बड़ा तालाब था. उसमें बहुत से छोटे-छोटे हंस रहते थे. सोने के पंख वाला एक बहुत बड़ा पक्षी उसी तालाब में रहने आ गया. हंसों ने कहा कि तालाब में हमलोग रहते हैं. हमलोग हर छह माह में राजा को अपना पंख देते हैं आपके लिए यहां गुंजाइश नहीं है. सोने के पंख वाला पक्षी राजा के सिपहसालारों के पास पहुंच गया और कहा कि ये तुम्हारी बात नहीं मान रहे. सरोबर पर कब्जा कर बैठे हैं. राजा ने अपने सिपाही भेज दिए और सारे हंस मार दिए. सोने के पंख वाला पक्षी भी उड़ गया.
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एक ट्वीट से कमजोर नहीं होगा लोकतंत्र
मनोज झा ने कहा कि भारत का लोकतंत्र बहुत मजबूत है. यह किसी के एक ट्वीट से कमजोर नहीं होगा. उन्होंने हबीब जालिब के गीत से अपना भाषण समाप्त किया.
'मैं भी खाइफ नहीं तख्ता-ए-दार से
मैं भी मंसूर हूं कह दो अग्यार से
क्यूं डराते हो जिंदां की दीवार से
जुल्म की बात को जहल की रात को
मैं नहीं मानता मैं नहीं मानता'