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UP विधानसभा चुनाव को लेकर आरसीपी-ललन के 'मनभेद', खेमेबाजी बनी पार्टी की मुसीबत

यूपी विधानसभा चुनाव (UP election 2022) के कारण जेडीयू के अंदर दो खेमा ( fighting for supremacy in jdu) देखने को मिल रहा है. एक तरफ आरसीपी सिंह का खेमा है, तो दूसरी तरफ जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह का. दोनों खेमों के बीच यूपी चुनाव को लेकर एक मत नहीं बन रहा है, जिसका सीधा असर पार्टी पर पड़ रहा है. पढ़िए पूरी खबर..

fighting for supremacy in jdu
fighting for supremacy in jdu
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Published : Jan 21, 2022, 7:14 PM IST

पटना: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर जहां बीजेपी पूरी ताकत लगा रही है. वहीं, बिहार में सहयोगी जदयू का बीजेपी से अभी तक तालमेल नहीं हुआ है. उत्तर प्रदेश चुनाव के कारण जदयू के अंदर ही घमासान (Controversy in jdu over UP election 2022 ) मचा है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह (Lalan Singh) यूपी चुनाव के बहाने आरसीपी सिंह (RCP Singh) को पार्टी के बैड बुक में लाने की कोशिश कर रहे हैं. 51 सीटों पर उम्मीदवार तय करने की बात भी कर दी है. लेकिन, उत्तर प्रदेश चुनाव में बिना बीजेपी के ललन सिंह जदयू का खाता खोल लेंगे, ये आसान नहीं है.

ये भी पढ़ें- यूपी में बीजेपी और जेडीयू में गठबंधन पर पेंच, RCP कम पर भी राजी लेकिन ललन की 50 प्लस पर दावेदारी!

यूपी चुनाव अब जदयू के दो नेताओं के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है. 2017 में भी पार्टी ने पूरी तैयारी की थी, लेकिन चुनाव नहीं लड़ी थी और इसका ठीकरा शरद यादव के माथे पर फोड़ा गया था. पार्टी 2017 में चुनाव नहीं लड़ने को बड़ी भूल बताती रही है. 2017 की स्थिति इस बार भी बनती दिख रही है और इसलिए ललन सिंह अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं कि, पार्टी किसी तरह चुनाव लड़ ले. जबकि आरसीपी सिंह चाहते हैं कि, चुनाव बीजेपी से तालमेल में ही लड़ा जाए.

जदयू के अंदर खींचतान जारी है. ललन सिंह (Lalan Singh have different policy regarding UP election) यूपी चुनाव के बहाने आरसीपी सिंह को फंसाना भी चाहते हैं. लेकिन ललन सिंह के लिए भी उत्तर प्रदेश में बिना बीजेपी के सहयोग के चुनाव लड़ना आसान नहीं होगा. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि, उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर जदयू दो खेमे में दिख रही है.

ये भी पढ़ें: UP में गठबंधन बना प्रतिष्ठा का सवाल, आखिर अपने 'क्रेडिट' पर BJP की झोली से JDU को कितनी सीट दिला पाएंगे RCP?

ललन खेमे की ओर से उसी समय मास्टर स्ट्रोक खेला गया जब आरसीपी सिंह को यूपी चुनाव में बीजेपी से तालमेल की जिम्मेवारी दी गई. आरसीपी सिंह के लिए यह अग्निपरीक्षा के समान है. तालमेल नहीं हुआ तो निश्चित रूप से ठीकरा आरसीपी सिंह के ऊपर फोड़ा जाएगा. लेकिन जिस प्रकार से ललन सिंह भी बयान दे रहे हैं, उससे भी साफ दिख रहा है कि पार्टी दो खेमे में है और यह जदयू के लिए अच्छी बात नहीं है."-रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

उधर बीजेपी प्रवक्ता अरविंद सिंह का कहना है कि उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर पार्टी के शीर्ष नेता ही फैसला लेंगे. लेकिन कुछ लोग ज्यादा उतावले हैं. आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच जिस प्रकार से यूपी चुनाव को लेकर मामला उलझता जा रहा है उसपर जदयू के कोई भी नेता कुछ भी बोलने से अब बचने लगे हैं.

ये भी पढ़ें: UP Assembly Election 2022 : बिहार में गठबंधन लेकिन अन्य राज्यों में बीजेपी को सहयोगियों से परहेज क्यों?

जदयू का बिहार में बीजेपी के साथ लंबे समय से तालमेल है. बिहार में पार्टी का संगठन भी है लेकिन बिहार से बाहर जदयू का मजबूत संगठन कहीं नहीं है. पार्टी पहले भी कई राज्यों में चुनाव लड़ चुकी है और अधिकांश जगह उम्मीदवारों की जमानत भी नहीं बचा सकी. बिहार से बाहर दिल्ली में जदयू का बीजेपी के साथ तालमेल भी पिछले विधानसभा चुनाव में हुआ था. लेकिन उसमें भी सफलता हाथ नहीं लगी.

अब यूपी चुनाव में आरसीपी सिंह चाहते हैं कि, हर हाल में बीजेपी के साथ तालमेल हो जाए और तभी चुनाव लड़े. लेकिन ललन सिंह लगातार बयान दे रहे हैं कि, तालमेल नहीं हुआ तो पार्टी 50 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी और उन्होंने उम्मीदवार भी तय कर दिया है. जदयू के दोनों शीर्ष नेताओं के कारण पार्टी के अंदर घमासान होता दिख रहा है.

ये भी पढ़ें- भाजपा पर हमलावर हुए मुकेश सहनी, कहा- गृह मंत्री अमित शाह ने पूरा नहीं किया अपना वादा

ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि, नीतीश कुमार का क्या फैसला होता है क्योंकि, बीजेपी उत्तर प्रदेश चुनाव में अपना दल और निषाद की पार्टी से समझौता कर चुकी है. अब जदयू के साथ सीटों पर समझौता होता है तो उसे अपने हिस्से से ही सीट देनी होगी. बीजेपी कितनी सीट देगी उस पर जदयू तैयार होता है कि नहीं यह भी देखना दिलचस्प होगा. ऐसे भी मामला सीट का ही फंसा हुआ है. बीजेपी के साथ कुछ सीटों पर जदयू लड़ता है तो यह आरसीपी सिंह की उपलब्धि होगी. लेकिन तब देखना होगा कि ललन सिंह किस तरह से इसे लेते हैं.

ये भी पढ़ें- 'दुर्योधन' हैं उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी, CM बनने का सपना देख रहे हैं ललन सिंह: BJP प्रवक्ता

बता दें कि, बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से ही आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच अंदरखाने में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने जेडीयू (JDU) में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए कुर्मी और कुशवाहा को एकजुट करने की कोशिश की तो वहीं संगठन स्तर पर भी बड़े बदलाव किए. इस बीच ललन सिंह ने आरसीपी सिंह के समय बनाए गए सभी प्रकोष्ठों और इकाई को भंग करवा दिया था. तभी से गुटबाजी का खेल पार्टी के अंदर जारी है.

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पटना: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर जहां बीजेपी पूरी ताकत लगा रही है. वहीं, बिहार में सहयोगी जदयू का बीजेपी से अभी तक तालमेल नहीं हुआ है. उत्तर प्रदेश चुनाव के कारण जदयू के अंदर ही घमासान (Controversy in jdu over UP election 2022 ) मचा है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह (Lalan Singh) यूपी चुनाव के बहाने आरसीपी सिंह (RCP Singh) को पार्टी के बैड बुक में लाने की कोशिश कर रहे हैं. 51 सीटों पर उम्मीदवार तय करने की बात भी कर दी है. लेकिन, उत्तर प्रदेश चुनाव में बिना बीजेपी के ललन सिंह जदयू का खाता खोल लेंगे, ये आसान नहीं है.

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यूपी चुनाव अब जदयू के दो नेताओं के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है. 2017 में भी पार्टी ने पूरी तैयारी की थी, लेकिन चुनाव नहीं लड़ी थी और इसका ठीकरा शरद यादव के माथे पर फोड़ा गया था. पार्टी 2017 में चुनाव नहीं लड़ने को बड़ी भूल बताती रही है. 2017 की स्थिति इस बार भी बनती दिख रही है और इसलिए ललन सिंह अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं कि, पार्टी किसी तरह चुनाव लड़ ले. जबकि आरसीपी सिंह चाहते हैं कि, चुनाव बीजेपी से तालमेल में ही लड़ा जाए.

जदयू के अंदर खींचतान जारी है. ललन सिंह (Lalan Singh have different policy regarding UP election) यूपी चुनाव के बहाने आरसीपी सिंह को फंसाना भी चाहते हैं. लेकिन ललन सिंह के लिए भी उत्तर प्रदेश में बिना बीजेपी के सहयोग के चुनाव लड़ना आसान नहीं होगा. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि, उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर जदयू दो खेमे में दिख रही है.

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ललन खेमे की ओर से उसी समय मास्टर स्ट्रोक खेला गया जब आरसीपी सिंह को यूपी चुनाव में बीजेपी से तालमेल की जिम्मेवारी दी गई. आरसीपी सिंह के लिए यह अग्निपरीक्षा के समान है. तालमेल नहीं हुआ तो निश्चित रूप से ठीकरा आरसीपी सिंह के ऊपर फोड़ा जाएगा. लेकिन जिस प्रकार से ललन सिंह भी बयान दे रहे हैं, उससे भी साफ दिख रहा है कि पार्टी दो खेमे में है और यह जदयू के लिए अच्छी बात नहीं है."-रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

उधर बीजेपी प्रवक्ता अरविंद सिंह का कहना है कि उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर पार्टी के शीर्ष नेता ही फैसला लेंगे. लेकिन कुछ लोग ज्यादा उतावले हैं. आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच जिस प्रकार से यूपी चुनाव को लेकर मामला उलझता जा रहा है उसपर जदयू के कोई भी नेता कुछ भी बोलने से अब बचने लगे हैं.

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जदयू का बिहार में बीजेपी के साथ लंबे समय से तालमेल है. बिहार में पार्टी का संगठन भी है लेकिन बिहार से बाहर जदयू का मजबूत संगठन कहीं नहीं है. पार्टी पहले भी कई राज्यों में चुनाव लड़ चुकी है और अधिकांश जगह उम्मीदवारों की जमानत भी नहीं बचा सकी. बिहार से बाहर दिल्ली में जदयू का बीजेपी के साथ तालमेल भी पिछले विधानसभा चुनाव में हुआ था. लेकिन उसमें भी सफलता हाथ नहीं लगी.

अब यूपी चुनाव में आरसीपी सिंह चाहते हैं कि, हर हाल में बीजेपी के साथ तालमेल हो जाए और तभी चुनाव लड़े. लेकिन ललन सिंह लगातार बयान दे रहे हैं कि, तालमेल नहीं हुआ तो पार्टी 50 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी और उन्होंने उम्मीदवार भी तय कर दिया है. जदयू के दोनों शीर्ष नेताओं के कारण पार्टी के अंदर घमासान होता दिख रहा है.

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ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि, नीतीश कुमार का क्या फैसला होता है क्योंकि, बीजेपी उत्तर प्रदेश चुनाव में अपना दल और निषाद की पार्टी से समझौता कर चुकी है. अब जदयू के साथ सीटों पर समझौता होता है तो उसे अपने हिस्से से ही सीट देनी होगी. बीजेपी कितनी सीट देगी उस पर जदयू तैयार होता है कि नहीं यह भी देखना दिलचस्प होगा. ऐसे भी मामला सीट का ही फंसा हुआ है. बीजेपी के साथ कुछ सीटों पर जदयू लड़ता है तो यह आरसीपी सिंह की उपलब्धि होगी. लेकिन तब देखना होगा कि ललन सिंह किस तरह से इसे लेते हैं.

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बता दें कि, बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से ही आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच अंदरखाने में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने जेडीयू (JDU) में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए कुर्मी और कुशवाहा को एकजुट करने की कोशिश की तो वहीं संगठन स्तर पर भी बड़े बदलाव किए. इस बीच ललन सिंह ने आरसीपी सिंह के समय बनाए गए सभी प्रकोष्ठों और इकाई को भंग करवा दिया था. तभी से गुटबाजी का खेल पार्टी के अंदर जारी है.

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