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सदन में उठा बिहार की 7 सौ साल पुरानी कावर झील का मुद्दा, संस्कृति और इतिहास बचाने की अपील

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Published : Jul 25, 2019, 8:24 PM IST

राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान बीजेपी से सांसद राकेश सिंहा ने बिहार के बेगूसराय की कांवर झील का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि यह 700 साल पुरानी झील हमारी संस्कृति से जुड़ी है. विलुप्त होती झील पर हमें ध्यान देने की जरूरत है.

सांसद राकेश सिंहा

पटना/दिल्ली: बीजेपी से राज्यसभा सांसद राकेश सिंहा ने गुरूवार को राज्यसभा में बिहार की 700 साल पुरानी झील का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि यह झील हमारी संस्कृति और इतिहास से जुड़ी हुई है. पर्यटन को देखते हुए भी यह काफी महत्वपूर्ण है. सांसद ने सदन में इसके अस्तित्व को बचाने और इसे अपग्रेड करने की बात कही.

सांसद राकेश सिंहा ने सदन में कहा कि, मैं एक ऐसे विषय की ओर सदन का ध्यान ले जाना चाहता हूं जो ये इंगित करता है कि किस प्रकार हम धीरे-धीरे अपने सांस्कृतिक धरोहरों और पर्यटक स्थलों को खोते जा रहे हैं.

सांसद राकेश सिंहा का बयान

एशिया की सबसे बड़ी झील में शामिल
उन्होंने कहा कि बिहार के बेगूसराय के मझौल में लगभग 5467 हेक्टेयर जमीन पर एक झील है, जिसे कांवर झील कहते हैं. इसे बाद में बिहार सरकार की अधिसूचना में 6311 हेक्टेयर वाली झील के तौर पर शामिल किया गया. यह अपने आप में एशिया की सबसे बड़ी झील है. इसका पानी इतना अच्छा होता था कि इसे देखने और पीने के लिए लाखों लोग आते हैं.

साइबेरियन पक्षियों का था पिकनिक प्वाइंट
सांसद ने आगे कहा कि झील के बारे में सबसे महत्वपूर्ण विषय यह था कि नवंबर से मार्च तक साइबेरिया के लाखों रंग-बिरंगे पक्षी यहां आते थे. वह पर्यटन स्थल को आकर्षण का केंद्र बना देते थे. वह काफी मनमोहक हुआ करता था. ऐसा लगता था उन सुंदर मनमोहक पक्षियों का दूसरा घर भारत हो. अब यह झील सूख रही है, लेकिन इसपर किसी की नजर नहीं है.

केवल याद न रह जाए
राकेश सिंहा ने कहा कि मैं सरकार और मंत्रालय से अपेक्षा रखता हूं कि झील को रिवाइव किया जाए. ताकि हमारे लाखों अतिथि जो साइबेरिया से आते थे फिर से भारत आ सकें. उनका कहना है कि, मैं उम्मीद करता हूं कि पर्यटन मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और बिहार सरकार उसे दोबारा अस्तित्व में लाएंगे. ऐतिहासिक पर्यटक स्थल को बचाने में सहयोग करेंगे. लगभग 700 साल पुरानी झील वर्तमान और भविष्य का विषय रहे. हमारी पीढ़ी के लिए सिर्फ याद बनकर न रह जाए.

पटना/दिल्ली: बीजेपी से राज्यसभा सांसद राकेश सिंहा ने गुरूवार को राज्यसभा में बिहार की 700 साल पुरानी झील का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि यह झील हमारी संस्कृति और इतिहास से जुड़ी हुई है. पर्यटन को देखते हुए भी यह काफी महत्वपूर्ण है. सांसद ने सदन में इसके अस्तित्व को बचाने और इसे अपग्रेड करने की बात कही.

सांसद राकेश सिंहा ने सदन में कहा कि, मैं एक ऐसे विषय की ओर सदन का ध्यान ले जाना चाहता हूं जो ये इंगित करता है कि किस प्रकार हम धीरे-धीरे अपने सांस्कृतिक धरोहरों और पर्यटक स्थलों को खोते जा रहे हैं.

सांसद राकेश सिंहा का बयान

एशिया की सबसे बड़ी झील में शामिल
उन्होंने कहा कि बिहार के बेगूसराय के मझौल में लगभग 5467 हेक्टेयर जमीन पर एक झील है, जिसे कांवर झील कहते हैं. इसे बाद में बिहार सरकार की अधिसूचना में 6311 हेक्टेयर वाली झील के तौर पर शामिल किया गया. यह अपने आप में एशिया की सबसे बड़ी झील है. इसका पानी इतना अच्छा होता था कि इसे देखने और पीने के लिए लाखों लोग आते हैं.

साइबेरियन पक्षियों का था पिकनिक प्वाइंट
सांसद ने आगे कहा कि झील के बारे में सबसे महत्वपूर्ण विषय यह था कि नवंबर से मार्च तक साइबेरिया के लाखों रंग-बिरंगे पक्षी यहां आते थे. वह पर्यटन स्थल को आकर्षण का केंद्र बना देते थे. वह काफी मनमोहक हुआ करता था. ऐसा लगता था उन सुंदर मनमोहक पक्षियों का दूसरा घर भारत हो. अब यह झील सूख रही है, लेकिन इसपर किसी की नजर नहीं है.

केवल याद न रह जाए
राकेश सिंहा ने कहा कि मैं सरकार और मंत्रालय से अपेक्षा रखता हूं कि झील को रिवाइव किया जाए. ताकि हमारे लाखों अतिथि जो साइबेरिया से आते थे फिर से भारत आ सकें. उनका कहना है कि, मैं उम्मीद करता हूं कि पर्यटन मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और बिहार सरकार उसे दोबारा अस्तित्व में लाएंगे. ऐतिहासिक पर्यटक स्थल को बचाने में सहयोग करेंगे. लगभग 700 साल पुरानी झील वर्तमान और भविष्य का विषय रहे. हमारी पीढ़ी के लिए सिर्फ याद बनकर न रह जाए.

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पटना/दिल्ली: बीजेपी से राज्यसभा सांसद राकेश सिंहा ने गुरूवार को राज्यसभा में बिहार की 700 साल पुरानी झील का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि यह झील हमारी संस्कृति और इतिहास से जुड़ी हुई है. पर्यटन को देखते हुए भी यह काफी महत्वपूर्ण है. सांसद ने सदन में इसके अस्तित्व को बचाने और इसे अपग्रेड करने की बात कही.

सांसद राकेश सिंहा सदन में बोले कि मैं एक ऐसे विषय की ओर सदन का ध्यान ले जाना चाहता हूं जो ये इंगित करता है कि किस प्रकार हम धीरे-धीरे अपने सांस्कृतिक धरोहरों और पर्यटक स्थल को खोते जा रहे हैं.

एशिया की सबसे बड़ी झील में शामिल

उन्होंने कहा कि बिहार के बेगूसराय के मझौल में लगभग 5467 हेक्टेयर जमीन पर एक झील है, जिसे कांवर झील कहते हैं. इसे बाद में बिहार सरकार की अधिसूचना में 6311 हेक्टेयर वाली झील के तौर पर शामिल किया गया. यह अपने आप में एशिया की सबसे बड़ी झील है. इसका पानी इतना अच्छा होता था कि इसे देखने और पीने के लिए लाखों लोग आते हैं.

साइबेरियन पक्षियों का था पिकनिक प्वाइंट

सांसद ने आगे कहा कि झील के बारे में सबसे महत्वपूर्ण विषय यह था कि नवंबर से मार्च तक साइबेरिया के लाखों रंग-बिरंगे पक्षी यहां आते थे. वह पर्यटन स्थल को आकर्षण का केंद्र बना देते थे. वह काफी मनमोहनीय हुआ करता था. ऐसा लगता था उन सुंदर मनमोहक पक्षियों का दूसरा घर भारत हो. अब यह झील सूख रही है, लेकिन इसपर किसी की नजर नहीं है.

...ताकि पीढ़ियों के लिए केवल याद न रह जाए

राकेश सिंहा ने कहा कि मैं सरकार और मंत्रालय से अपेक्षा रखता हूं कि झील को रिवाइव किया जाए और हमारे लाखों अतिथि जो साइबेरिया से आते थे उन्हें पुन: भारत में बुलाएं. मैं उम्मीद करता हूं कि पर्यटन मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और बिहार सरकार उसे दोबारा इसे अस्तित्व में लाएंगे ताकि ऐतिहासिक पर्यटक स्थल बचा रहे. लगभग 700 साल पुरानी झील वर्तमान और भविष्य का विषय रहे. हमारी पीढ़ी के लिए सिर्फ याद बनकर न रह जाए.


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