पटना(पुनपुन): मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना के तहत पुनपुन में बना राजेंद्र प्रसाद पुस्तकालय आज जंगल में तब्दील हो चुका है. सरकार के लाखों रुपये की राशि से बना यह पुस्तकालय सरकारी लापरवाही का उदाहरण है .
'पुस्तकालय पुरी तरह जंगल में हुआ तब्दील'
पुनपुन का यह राजेंद्र प्रसाद पुस्तकालय आज पूरी तरह जंगल में तब्दील हो चुका है. जिसे देखने की फुर्सत शायद यहां किसी को नहीं है. पुस्तकालय भवन का निर्माण और इसका शिलान्यास पूरे तामझाम के साथ बीते एक साल पहले कि गई थी, तब यह लगा था कि पुनपुन में छात्रों को पठन-पाठन में काफी सहुलियत होगी और कई क्षेत्रों से छात्र यहां आकर पढेंगे.
'पुस्तकालय आज अपनी बदहाली का आंसू बहा रहा'
पुस्तकालय बनने के बाद , शिलान्यास और भवन बनने के बाद आज तक इसका ताला तक नहीं खुला है. ऐसे इसे सरकारी राशि का सदुपयोग कहेंगे या कुछ और. बहरहाल स्थानीय लोगों की माने तो सूचना एवं प्रसारण मंत्री सह विधान पार्षद निरज कुमार के फंड के द्वारा मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना के तहत बनाया गया यह पुस्तकालय आज अपनी बदहाली का आंसू बहा रहा है.
'पठन-पाठन का कोई साधन और सामान नहीं'
स्थानीय लोगों ने आरोप लगाते हुए कहा कि यह सरकारी राशि की बर्बादी है, ठेकेदारी कर लोग पैसा कमा लिए है. यह पुस्तकालय सिर्फ नाम का है. पुस्तकालय के नाम पर एक भवन बना दिया गया है , इसमे न किताब रखा गया है और न कोई भी पठन-पाठन का कोई साधन और सामान है.
'पुनपुन में कुछ लोगों की चल रही है मनमानी'
वहीं स्थानीय लोगों ने कहा कि यह राजेन्द्र प्रसाद के नाम से बना पुस्तकालय किसके नाम पर है , पुनपुन में राजेन्द्र प्रसाद कौन है कुछ पता नहीं है, राष्ट्रपति के नाम के बजाय कोई दिवगंत एक जनवितरण प्रणाली के दुकानदार राजेंद्र प्रसाद के नाम पर यह पुस्तकालय का नाम रखा गया है. कोई क्रांतिकारी या समाज सेवक के नाम पर पुस्तकालय रहे तो यह बेहतर होगा लेकिन पुनपुन मे कुछ लोगों की मनमानी चल रही है और वह सत्ता का लाभ उठा रहे हैं.
'छात्रों के लाभ के लिए फिर से खोला जाए'
बहरहाल मामला चाहे कुछ भी हो पठन पाठन के लिए बना यह पुस्तकालय जंगल में तब्दील होना सरकारी राशि का सदुपयोग होना नहीं कहा जा सकता है. जरूरत है पुस्तकालय को साफ-सफाई कर इसे छात्रों के लाभ के लिए फिर से खोला जाए.