नई दिल्ली : संघीय व्यय रिकॉर्ड का हवाला देते हुए मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि अमेरिकी सरकार द्वारा कथित तौर पर 'मतदाता मतदान के लिए' 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग बांग्लादेश के लिए थी. अभी तक माना जा रहा था कि यह पैसा भारत में चुनावों को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल हुआ था.
रविवार को, डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के सरकारी दक्षता विभाग ने घोषणा की कि उसने यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट के माध्यम से कई अंतर्राष्ट्रीय सहायता पहलों को रद्द कर दिया है. क्योंकि इसमें करदाताओं के पैसे खर्च हो रहे थे.
शुक्रवार को, अखबार ने आधिकारिक अमेरिकी संघीय व्यय डेटा का हवाला देते हुए बताया कि 2008 के बाद से भारत में USAID द्वारा किसी भी CEPPS परियोजना को वित्त पोषित नहीं किया गया था. प्रत्येक अमेरिकी संघीय अनुदान एक विशिष्ट 'स्थान' या उस देश से जुड़ा होता है, जहां इसे खर्च किया जाना है.
अखबार ने कागजातों के हवाले से बताया कि USAID द्वारा CEPPS (चुनाव और राजनीतिक प्रक्रिया सुदृढ़ीकरण के लिए कंसोर्टियम) के मद में सिर्फ एक ही चालू परियोजना का पता चलता है. इस परियोजना की कुल राशि भी 21 मिलियन डॉलर की है. इस परियोजना को जुलाई 2022 में USAID के 'आमार वोट आमार' (मेरा वोट मेरा है) के लिए स्वीकृत किया गया था. यह बांग्लादेश में चलाया गया एक कैंपेन है. यह अनुदान जुलाई 2025 तक तीन साल के लिए दिया जाना था.
अखबार ने लिखा कि 21 मिलियन डॉलर में से, 13.4 मिलियन डॉलर पहले ही जनवरी 2024 के आम चुनाव और अन्य कार्यक्रमों से पहले बांग्लादेश में छात्रों के बीच 'राजनीतिक और नागरिक जुड़ाव' के लिए वितरित किए जा चुके हैं. जनवरी 2024 के चुनावों के बाद जिसमें शेख हसीना फिर से चुनी गईं उस समय अमेरिका ने कहा था कि चुनाव 'स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं थे'.
USAID एक स्वतंत्र एजेंसी है जो मुख्य रूप से अमेरिकी सरकार की ओर से विदेशी सहायता और विकास सहायता का प्रबंधन करने के लिए जिम्मेदार है. ट्रंप ने 24 जनवरी को अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा समीक्षा पूरी होने होने तक संगठन द्वारा वितरित धन पर 90 दिनों की रोक लगा दी थी.
रविवार को जिन मंदों/परियोनाओं के लिए फंडिंग रद्द की गई, उनकी सूची में CEPPS (गैर-लाभकारी संगठन कंसोर्टियम फॉर इलेक्शन एंड पॉलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेंथनिंग) को दिए गए 486 मिलियन डॉलर के अनुदान शामिल हैं, जिसमें भारत में वोटर टर्न आउट के लिए 21 मिलियन डॉलर का कथित अनुदान भी शामिल है.