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जिस शराबबंदी के कारण नीतीश कुमार को मिली थी वाहवाही, अब उसी मॉडल पर उठने लगे गंभीर सवाल

बिहार में पूर्ण शराबबंदी को कड़ाई से पालन करने के लिए कानून भी बनाए गए, लेकिन 5 साल के बाद भी शराब पर रोक नहीं लग पाई. आए दिन जहरीली शराब पीने से लोगों की जानें जा रही है. जिस वजह से विपक्ष के साथ-साथ अब तो सत्ता पक्ष के नेता भी सवाल उठाने लगे हैं.

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Published : Nov 7, 2021, 10:56 PM IST

पटना: बिहार में साल 2016 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने शराबबंदी कानून (Prohibition Law) लागू किया था. कड़े कानून के बावजूद राज्य में शराब की बिक्री चोरी-छिपे जारी है. जहरीली शराब से मौत (Death by Drinking Spurious Liquor) का सिलसिला भी थमने का नाम नहीं ले रहा है. जहरीली शराब पीने से दो सेना के जवान भी मौत के मुंह में समा गए है. इस साल लगभग 100 से ज्यादा की मौत जहरीली शराब पीने से हो चुकी है. एक सर्वे के मुताबिक बिहार में शराबबंदी के बाद 17 फीसदी शराब की खपत बढ़ गई है. गांव-गांव में शराब माफिया पैदा हो गए हैं. शराब माफिया का बड़ा सिंडिकेट राज्य में काम कर रहा है और अवैध शराब का निर्माण और डिलीवरी उनका धंधा है. भ्रष्ट पुलिस पदाधिकारियों के साथ मिलीभगत कर शराब माफिया शराबबंदी कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं.

ये भी पढ़ें: तेजस्वी ने पूछा, चंद चुनिंदा अधिकारियों के चश्मे से ही देखने वाले CM क्या मेरे इन ज्वलंत सवालों के जवाब दे पाएंगे?

शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से न्यायपालिका पर भी अतिरिक्त बोझ बढ़ा है. 125000 से ज्यादा केस पेंडिंग हैं. संसाधनों के अभाव में केसों का निपटारा भी टेढ़ी खीर साबित हो रही है. एक ओर जहां लोगों को न्याय मिलने में देरी हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ दोषियों को सजा दिलाने की रफ्तार भी कम है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 130 लोगो की मौत जहरीली शराब से बताई जा रही है, लेकिन आंकड़ा इससे काफी ज्यादा है. इस साल ही 100 से ज्यादा लोग जहरीली शराब पीकर मौत के मुंह में समा चुके हैं. ज्यादातर मामलों में पोस्टमार्टम नहीं होने की वजह से मौत के कारणों की पुष्टि नहीं हो पाती है.

देखें रिपोर्ट

शराबबंदी कानून आज की तारीख में मजाक बन कर रह गया है. बिहार विधानसभा में भी कई बार शराबबंदी कानून को लेकर सवाल उठाए जा चुके हैं. जहरीली शराब से मौत के बाद शराबबंदी कानून की समीक्षा की मांग जोर पकड़ने लगी है. जेडीयू (JDU) की अहम सहयोगी बीजेपी (BJP) ने शराबबंदी कानून की समीक्षा की वकालत की है.

ये भी पढ़ें: 'पुलिस की मिलीभगत से जहरीली शराब का कारोबार, शराबबंदी कानून की हो समीक्षा'

पूर्व आईपीएस अमिताभ कुमार दास ने कहा है कि शराबबंदी कानून का खामियाजा सबसे ज्यादा गरीब भुगत रहे हैं. ज्यादातर गरीब लोग ही जेल में बंद हैं और उन्हें छुड़ाने वाला कोई नहीं है. शराब माफियाओं का बड़ा सिंडिकेट अस्तित्व में आ चुका है और भ्रष्ट पुलिस पदाधिकारी शराब माफियाओं को संरक्षण दे रहे हैं. शराबबंदी कानून बिहार में पूरी तरह फेल है.

वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का मानना है कि शराबबंदी कानून से राज्य में शराब तो बंद नहीं हुई, लेकिन गांव-गांव में शराब तस्कर जरूर पैदा हो गए. राज्य में शराब की सप्लाई निर्बाध गति से हो रही है और सबसे दुखद बात यह है कि लोगों तक नकली शराब पहुंचाई जा रही है, जिससे लोग मौत के मुंह में समा रहे हैं.

ये भी पढ़ें: शराबबंदी वाले बिहार में 15 दिन में 41 की गई जान, CM नीतीश बोले-छठ बाद लेंगे फैसला

पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता शांतनु कुमार ने कहा है कि शराबबंदी कानून से सबसे ज्यादा असर न्याय व्यवस्था पर पड़ी है. सरकार ने कानून लाने से पहले ठोस तैयारी नहीं की. नतीजा यह हुआ कि न्यायालय पर सबसे ज्यादा दबाव शराबबंदी से जुड़े मामलों का है. शांतनु कुमार ने कहा कि शराबबंदी कानून के पीनल प्रोविजंस में संशोधन जरूरी है. अगर सरकार ऐसा नहीं कर पाएगी तो न्यायालय के समक्ष आने वाले दिनों में चुनौती और बढ़ेगी.

वहीं, राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का मानना है कि शराबबंदी कानून मूल रूप में बिहार में लागू नहीं हो पाई. जिसका नतीजा है कि आज हर गली, मोहल्ले और गांव तक लोगों के लिए शराब उपलब्ध है. राज्य में शराब का उत्पादन और खपत बदस्तूर जारी है. ऐसे में शराबबंदी के मॉडल की समीक्षा होनी चाहिए.

पटना: बिहार में साल 2016 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने शराबबंदी कानून (Prohibition Law) लागू किया था. कड़े कानून के बावजूद राज्य में शराब की बिक्री चोरी-छिपे जारी है. जहरीली शराब से मौत (Death by Drinking Spurious Liquor) का सिलसिला भी थमने का नाम नहीं ले रहा है. जहरीली शराब पीने से दो सेना के जवान भी मौत के मुंह में समा गए है. इस साल लगभग 100 से ज्यादा की मौत जहरीली शराब पीने से हो चुकी है. एक सर्वे के मुताबिक बिहार में शराबबंदी के बाद 17 फीसदी शराब की खपत बढ़ गई है. गांव-गांव में शराब माफिया पैदा हो गए हैं. शराब माफिया का बड़ा सिंडिकेट राज्य में काम कर रहा है और अवैध शराब का निर्माण और डिलीवरी उनका धंधा है. भ्रष्ट पुलिस पदाधिकारियों के साथ मिलीभगत कर शराब माफिया शराबबंदी कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं.

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शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से न्यायपालिका पर भी अतिरिक्त बोझ बढ़ा है. 125000 से ज्यादा केस पेंडिंग हैं. संसाधनों के अभाव में केसों का निपटारा भी टेढ़ी खीर साबित हो रही है. एक ओर जहां लोगों को न्याय मिलने में देरी हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ दोषियों को सजा दिलाने की रफ्तार भी कम है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 130 लोगो की मौत जहरीली शराब से बताई जा रही है, लेकिन आंकड़ा इससे काफी ज्यादा है. इस साल ही 100 से ज्यादा लोग जहरीली शराब पीकर मौत के मुंह में समा चुके हैं. ज्यादातर मामलों में पोस्टमार्टम नहीं होने की वजह से मौत के कारणों की पुष्टि नहीं हो पाती है.

देखें रिपोर्ट

शराबबंदी कानून आज की तारीख में मजाक बन कर रह गया है. बिहार विधानसभा में भी कई बार शराबबंदी कानून को लेकर सवाल उठाए जा चुके हैं. जहरीली शराब से मौत के बाद शराबबंदी कानून की समीक्षा की मांग जोर पकड़ने लगी है. जेडीयू (JDU) की अहम सहयोगी बीजेपी (BJP) ने शराबबंदी कानून की समीक्षा की वकालत की है.

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पूर्व आईपीएस अमिताभ कुमार दास ने कहा है कि शराबबंदी कानून का खामियाजा सबसे ज्यादा गरीब भुगत रहे हैं. ज्यादातर गरीब लोग ही जेल में बंद हैं और उन्हें छुड़ाने वाला कोई नहीं है. शराब माफियाओं का बड़ा सिंडिकेट अस्तित्व में आ चुका है और भ्रष्ट पुलिस पदाधिकारी शराब माफियाओं को संरक्षण दे रहे हैं. शराबबंदी कानून बिहार में पूरी तरह फेल है.

वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का मानना है कि शराबबंदी कानून से राज्य में शराब तो बंद नहीं हुई, लेकिन गांव-गांव में शराब तस्कर जरूर पैदा हो गए. राज्य में शराब की सप्लाई निर्बाध गति से हो रही है और सबसे दुखद बात यह है कि लोगों तक नकली शराब पहुंचाई जा रही है, जिससे लोग मौत के मुंह में समा रहे हैं.

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पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता शांतनु कुमार ने कहा है कि शराबबंदी कानून से सबसे ज्यादा असर न्याय व्यवस्था पर पड़ी है. सरकार ने कानून लाने से पहले ठोस तैयारी नहीं की. नतीजा यह हुआ कि न्यायालय पर सबसे ज्यादा दबाव शराबबंदी से जुड़े मामलों का है. शांतनु कुमार ने कहा कि शराबबंदी कानून के पीनल प्रोविजंस में संशोधन जरूरी है. अगर सरकार ऐसा नहीं कर पाएगी तो न्यायालय के समक्ष आने वाले दिनों में चुनौती और बढ़ेगी.

वहीं, राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का मानना है कि शराबबंदी कानून मूल रूप में बिहार में लागू नहीं हो पाई. जिसका नतीजा है कि आज हर गली, मोहल्ले और गांव तक लोगों के लिए शराब उपलब्ध है. राज्य में शराब का उत्पादन और खपत बदस्तूर जारी है. ऐसे में शराबबंदी के मॉडल की समीक्षा होनी चाहिए.

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