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'अगजा दे भाई कगजा दे, न देवा त दूगो गोईठा दा' की परंपरा को निभा रहे बच्चे - गोईठा से होलिका दहन

होलिका दहन के लिए पहले गांव में लोग घर-घर जाकर गोईठा मांगते थे लेकिन अब यह सब धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोग इस परंपरा को निभा रहे हैें.

गोईठा मांगने की परंपरा
गोईठा मांगने की परंपरा
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Published : Mar 27, 2021, 10:50 PM IST

पटना : सांस्कृतिक रूप से मनाए जाने वाले होली का पर्व सामाजिक एकता और सौहार्द पूर्ण वातावरण में मनाने की परंपरा रही है. होली के 1 दिन पहले यानी होलिका दहन मनाया जाता है. जिसे गांव में अगजा भी कहा जाता है और इसकी तैयारी जोरों पर है.

पहले गांव में लोग घर-घर जाकर गोईठा (उपला) और जलावन के रूप में लकड़ी मांगते थे. और परंपरा के तहत जलावन मांगने के वक्त आदर सूचक शब्द का इस्तेमाल करते थे. लेकिन यह सब अब शहरी क्षेत्रों में धीरे-धीरे खत्म हो गया. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यही परंपरा को ग्रामीण निभाते हैं.

"अगजा दे भाई कगजा दे, न देवा तो दूगो गोईठा दा"
होलिका दहन के लिए सब लोग अपनी इच्छा से दहन वाले स्थान पर जलावन की सामग्री रखते हैं या तो किसी के घर के बाहर रखा लकड़ी, कागज का बंडल होलिका दहन में डालते हैं. इसके पीछे लोग सामाजिक रिश्तों को जोड़कर देखते हैं.

पटना : सांस्कृतिक रूप से मनाए जाने वाले होली का पर्व सामाजिक एकता और सौहार्द पूर्ण वातावरण में मनाने की परंपरा रही है. होली के 1 दिन पहले यानी होलिका दहन मनाया जाता है. जिसे गांव में अगजा भी कहा जाता है और इसकी तैयारी जोरों पर है.

पहले गांव में लोग घर-घर जाकर गोईठा (उपला) और जलावन के रूप में लकड़ी मांगते थे. और परंपरा के तहत जलावन मांगने के वक्त आदर सूचक शब्द का इस्तेमाल करते थे. लेकिन यह सब अब शहरी क्षेत्रों में धीरे-धीरे खत्म हो गया. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यही परंपरा को ग्रामीण निभाते हैं.

"अगजा दे भाई कगजा दे, न देवा तो दूगो गोईठा दा"
होलिका दहन के लिए सब लोग अपनी इच्छा से दहन वाले स्थान पर जलावन की सामग्री रखते हैं या तो किसी के घर के बाहर रखा लकड़ी, कागज का बंडल होलिका दहन में डालते हैं. इसके पीछे लोग सामाजिक रिश्तों को जोड़कर देखते हैं.

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