पटना: सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह (Lalan Singh) को जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष (JDU New President) चुनकर ये संदेश देने की कोशिश की है कि जदयू सिर्फ जाति विशेष की पार्टी नहीं है. पार्टी अध्यक्ष पद के लिए ललन सिंह का सीधा मुकाबला उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) से था.
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संसदीय दल के नेता ललन सिंह कैबिनेट में शामिल नहीं किए जाने के बाद से नाराज थे. अगड़ी जाति से मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने को लेकर पार्टी में नाराजगी थी. जाति विशेष में नाराजगी को कम करने के लिए नीतीश कुमार ने ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है.
24 जनवरी 1955 में जन्मे ललन सिंह की गिनती बिहार में भूमिहारों के बड़े नेताओं में होती है. उन्हें कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) का शिष्य माना जाता है. ललन सिंह नीतीश कुमार के संपर्क में 1970 के दशक में आए थे. लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के खिलाफ और शरद यादव (Sharad Yadav) की नाराजगी मोल लेते हुए नीतीश ने जब अलग पार्टी बनाने की ठानी थी तब ललन सिंह नीतीश कुमार के साथ ही थे.
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2019 लोकसभा चुनाव में मुंगेर सीट से बाहुबली विधायक अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को हराकर ललन सिंह सांसद बने हैं. ललन सिंह इसके पहले भी मुंगेर और बेगूसराय लोकसभा सीट से सांसद चुने जा चुके हैं. ललन सिंह जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) सरकार और जेडीयू-आरजेडी की गठबंधन सरकार में भी मंत्री रहे हैं. ललन सिंह नीतीश कुमार के खास रणनीतिकार माने जाते हैं.
भूमिहार जाति से आने वाले ललन सिंह जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. ललन सिंह 2005 में जदयू की सरकार बनने के बाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. 2009 तक वे लगातार प्रदेश अध्यक्ष पद पर बने रहे. हालांकि, 2009 में उनका नीतीश कुमार से विवाद हुआ और उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद पर बने रहने से इनकार कर दिया था. तब विजय चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. नाराज ललन सिंह बाद में पार्टी छोड़ कर भी चले गये थे.
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लेकिन, कई दशकों से नीतीश कुमार के सबसे करीबी माने जाने वाले ललन सिंह पार्टी में फिर लौट कर आये. साल 2014 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्हें राज्यपाल कोटे से बिहार विधान परिषद भेजा गया था. वहीं, जीतन राम मांझी के कैबिनेट में सड़क निर्माण विभाग का जिम्मा सौंपा गया था.
हालांकि, ललन सिंह के मंत्री बनाए जाने की वजह से जेडीयू में बगावत हो गई थी और 12 विधायकों के साथ ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू बीजेपी में चले गए थे. जिसके बाद फरवरी 2015 में उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया था. हालांकि, 2015 में दोबारा महागठबंधन सरकार बनने के बाद उन्हें नीतीश कैबनेट में जगह मिली थी.
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ललन सिंह ने कई बार नीतीश कुमार के लिए संकट मोचक की भूमिका निभाई है. सियासी गलियारों में ऐसा भी कहा जाता है कि लोजपा (LJP) के पशुपति पारस (Pashupati Paras) से ललन सिंह ने ही चर्चा की थी. जिसके बाद लोजपा में बगावत के बीज फूटे थे. कई मौकों पर ललन सिंह नीतीश कुमार को मजबूती दे चुके हैं.