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बिहार में जंग दिल्ली में संग! सियासत के किस लोहे को गर्म करेगी चिराग की लौ - chirag paswan hindi consultant in Ministry of Steel

चिराग बिहार में हेलीकॉप्टर में बैठकर तीर का तोड़ खोज रहे हैं और दिल्ली में जाने पर उसी पार्टी के नेता से गठजोड़ कर रहे हैं. आखिर इसकी वजह क्या है? 2 सीटों पर हो रहे बिहार में उपचुनाव पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? पढ़ें पूरी खबर...

chirag paswan
चिराग पासवान
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Published : Oct 13, 2021, 11:06 PM IST

पटना: राजनीति के इतिहास में धरोहर को सजाकर रखने की बात कही जाए तो उसकी सबसे बड़ी धरती बिहार है. बिहार में राजनीति (Bihar Politics) के हर हिसाब किताब को पूरी शिद्दत से सजाकर रखा जाता है ताकि उसका उपयोग समय पर किया जा सके.

यह भी पढ़ें- बदला-बदला रुख: तेज प्रताप ने तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनने का दिया आशीर्वाद

2020 में चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने नीतीश कुमार की जदयू के लिए काफी परेशानी खड़ी की थी. नीतीश कुमार ने मान लिया था कि बिहार में जिन सीटों पर हार हुई है उसके लिए चिराग पासवान बड़े जिम्मेदार हैं. लेकिन उसके बाद जो राजनीति बिहार में हुई है लोग राजनीति के इतिहास में धरोहर वाली इस राजनीति का लोहा मान रहे हैं. क्योंकि आरसीपी सिंह इस्पात मंत्रालय के मंत्री हैं और चिराग पासवान को इस्पात मंत्रालय में हिंदी सलाहकार समिति में नियुक्त किया गया है.

अब मुद्दा खड़ा हो गया है कि आखिर चिराग बिहार में हेलीकॉप्टर में बैठकर तीर का तोड़ खोज रहे हैं और दिल्ली में जाने पर उसी पार्टी के नेता से गठजोड़ कर रहे हैं. आखिर इसकी वजह क्या है? 2 सीटों पर हो रहे बिहार में उपचुनाव पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? राजनीत में सिद्धांत और सैद्धांतिक राजनीति का मजमून नेतृत्व को आधार देता है. बिहार ऐसा राज्य है जहां सियासत राजनीतिक सिद्धांत को धरोहर की शक्ल में अगर रख ले तो उसका परिणाम आता तो जरूर है. क्योंकि लेने वाला हनुमान जैसा भक्त हो और देने वाला राम जैसा दानी तो फिर सियासत किसी समय की हो उसका परिणाम आना बिल्कुल निश्चित है.

बिहार विधानसभा के 2020 के सियासी विभेद के बाद भी इस बात की चर्चा फिर से शुरू हो गई कि चिराग पासवान को इस्पात मंत्रालय में हिंदी समिति में रखा गया तो इसके पीछे की राजनीति क्या है? चिराग पासवान जो नरेंद्र मोदी का हनुमान बनकर चल रहा है उसे जगह देना या फिर बिहार में चल रहे चुनावी समर में मुद्दों की नई परिभाषा गढ़ना. अब यह तो सियासत की भाषा है. सियासतदान ही जानते हैं. लेकिन जो लोग इसकी समीक्षा कर रहे हैं वह बेहतर तरीके से बता पा रहे हैं कि आरसीपी वाले मंत्रालय में चिराग के जाने की वजह क्या है और यह कौन से राजनीतिक समीकरण को खड़ा करेगा और चिराग की लौ सियासत के किस लोहे को गर्म करेगा.

बिहार विधानसभा के 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में चिराग पासवान ने अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. उम्मीदवार इस तैयारी के साथ मैदान में हैं कि तारापुर और कुशेश्वरस्थान में जदयू के सामने चुनौती देंगे. अब जदयू के मंत्री आरसीपी सिंह के मंत्रालय में चिराग पासवान को हिंदी सलाहकार समिति में रख लिया गया तो तारापुर और कुशेश्वरस्थान की जनता को यह संदेश दे दिया गया कि इस जमीन की लड़ाई चाहे जो हो लेकिन दिल्ली में समीकरण कुछ और है.

क्योंकि चाचा नीतीश को न्योता देने चिराग गए थे कि पिताजी की पुण्यतिथि है आइएगा. दिल्ली तो नीतीश नहीं गए, लेकिन रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस ने जब उन्हें बुलाया तो रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि देने पार्टी कार्यालय गए. अब चिराग जिनके बेटे हैं नीतीश उन्हें (रामविलास पासवान) अपना दोस्त मानते हैं तो सियासत का यह मामला बनता है कि दोस्त के बेटे को कोई न कोई ऐसी जगह दी जाए जो राजनीति में उसके लिए उसकी मजबूत हिस्सेदारी को साबित कर सके और शायद यही वजह है कि नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के कोटे वाले मंत्री के विभाग में ही चिराग पासवान को हिंदी सलाहकार नियुक्त करवा दिया.

बिहार की राजनीति में सीधे तौर पर जो असर दिख रहा है उसमें तेजस्वी यादव और चिराग पासवान के बीच समझौते की जो डोर है वह इस आधार पर भी बन रही थी कि लालू यादव जब चिराग पासवान के बुलावे पर रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि देने गए थे तो चिराग को आशीर्वाद दे दिए और कहा कि पूरा आशीर्वाद चिराग के साथ हैं. चुनावी मैदान में तेजस्वी के सामने चिराग होंगे. बिहार की बर्बादी की कहानी बताएंगे. नरेंद्र मोदी के विकास की बात कहेंगे. अगर नरेंद्र मोदी के विकास की बात बिहार में कही जाएगी तो इसका पूरा श्रेय नीतीश कुमार के खाते में जाएगा. बीजेपी का हर नेता यही कहता है कि बिहार में नीतीश की नीतियां ही चलेंगी. अब जिस नीति को बिहार में नीतीश कुमार चला रहे हैं उसमें नरेंद्र मोदी के काम का बखान का मतलब है कि नीतीश कुमार ने काम किया है. क्योंकि दो इंजन की चल रही सरकार यही चीज साबित कर रही है कि कुछ अलग नहीं है.

चिराग पासवान को हिंदी सलाहकार समिति में रखकर दिल्ली की राजनीति जिस डगर पर गई है वह लौटकर बिहार पहुंचेगी तो निश्चित तौर पर चिराग पासवान को यह समझाने और समझने की जरूरत पड़ेगी कि दिल्ली में जिस समझौते की सियासत वह कर रहे हैं पटना और बिहार में उसकी मुखालफत की राजनीति कैसे करेंगे? उसकी भाषा क्या होगी? खास तौर से चिराग गुट के समर्थकों को क्या समझाएंगे कि मैं दिल्ली में तो उस नीति के साथ हूं जो बिहार में विकास की बात करता है लेकिन यह बताने आया हूं कि बिहार में विकास नहीं हुआ है. अब इस विभेद को पाटने में चिराग क्या करेंगे यह तो समय उत्तर देगा. लेकिन सियासत में राजनीतिक इतिहास के धरोहर वाला जो उत्तर राम के हनुमान को मिला है उसने राजनीति की एक नई पटकथा तो लिख ही दी है. अब बिहार में बीजेपी का स्टैंड बहुत साफ है. क्योंकि बिहार में बहार है और सिर्फ नीतीश कुमार हैं.

यह भी पढ़ें- उपचुनाव में RJD-कांग्रेस की चुनौतीः जनता के बीच कैसे होगी 'फ्रेंडली फाइट'

पटना: राजनीति के इतिहास में धरोहर को सजाकर रखने की बात कही जाए तो उसकी सबसे बड़ी धरती बिहार है. बिहार में राजनीति (Bihar Politics) के हर हिसाब किताब को पूरी शिद्दत से सजाकर रखा जाता है ताकि उसका उपयोग समय पर किया जा सके.

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2020 में चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने नीतीश कुमार की जदयू के लिए काफी परेशानी खड़ी की थी. नीतीश कुमार ने मान लिया था कि बिहार में जिन सीटों पर हार हुई है उसके लिए चिराग पासवान बड़े जिम्मेदार हैं. लेकिन उसके बाद जो राजनीति बिहार में हुई है लोग राजनीति के इतिहास में धरोहर वाली इस राजनीति का लोहा मान रहे हैं. क्योंकि आरसीपी सिंह इस्पात मंत्रालय के मंत्री हैं और चिराग पासवान को इस्पात मंत्रालय में हिंदी सलाहकार समिति में नियुक्त किया गया है.

अब मुद्दा खड़ा हो गया है कि आखिर चिराग बिहार में हेलीकॉप्टर में बैठकर तीर का तोड़ खोज रहे हैं और दिल्ली में जाने पर उसी पार्टी के नेता से गठजोड़ कर रहे हैं. आखिर इसकी वजह क्या है? 2 सीटों पर हो रहे बिहार में उपचुनाव पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? राजनीत में सिद्धांत और सैद्धांतिक राजनीति का मजमून नेतृत्व को आधार देता है. बिहार ऐसा राज्य है जहां सियासत राजनीतिक सिद्धांत को धरोहर की शक्ल में अगर रख ले तो उसका परिणाम आता तो जरूर है. क्योंकि लेने वाला हनुमान जैसा भक्त हो और देने वाला राम जैसा दानी तो फिर सियासत किसी समय की हो उसका परिणाम आना बिल्कुल निश्चित है.

बिहार विधानसभा के 2020 के सियासी विभेद के बाद भी इस बात की चर्चा फिर से शुरू हो गई कि चिराग पासवान को इस्पात मंत्रालय में हिंदी समिति में रखा गया तो इसके पीछे की राजनीति क्या है? चिराग पासवान जो नरेंद्र मोदी का हनुमान बनकर चल रहा है उसे जगह देना या फिर बिहार में चल रहे चुनावी समर में मुद्दों की नई परिभाषा गढ़ना. अब यह तो सियासत की भाषा है. सियासतदान ही जानते हैं. लेकिन जो लोग इसकी समीक्षा कर रहे हैं वह बेहतर तरीके से बता पा रहे हैं कि आरसीपी वाले मंत्रालय में चिराग के जाने की वजह क्या है और यह कौन से राजनीतिक समीकरण को खड़ा करेगा और चिराग की लौ सियासत के किस लोहे को गर्म करेगा.

बिहार विधानसभा के 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में चिराग पासवान ने अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. उम्मीदवार इस तैयारी के साथ मैदान में हैं कि तारापुर और कुशेश्वरस्थान में जदयू के सामने चुनौती देंगे. अब जदयू के मंत्री आरसीपी सिंह के मंत्रालय में चिराग पासवान को हिंदी सलाहकार समिति में रख लिया गया तो तारापुर और कुशेश्वरस्थान की जनता को यह संदेश दे दिया गया कि इस जमीन की लड़ाई चाहे जो हो लेकिन दिल्ली में समीकरण कुछ और है.

क्योंकि चाचा नीतीश को न्योता देने चिराग गए थे कि पिताजी की पुण्यतिथि है आइएगा. दिल्ली तो नीतीश नहीं गए, लेकिन रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस ने जब उन्हें बुलाया तो रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि देने पार्टी कार्यालय गए. अब चिराग जिनके बेटे हैं नीतीश उन्हें (रामविलास पासवान) अपना दोस्त मानते हैं तो सियासत का यह मामला बनता है कि दोस्त के बेटे को कोई न कोई ऐसी जगह दी जाए जो राजनीति में उसके लिए उसकी मजबूत हिस्सेदारी को साबित कर सके और शायद यही वजह है कि नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के कोटे वाले मंत्री के विभाग में ही चिराग पासवान को हिंदी सलाहकार नियुक्त करवा दिया.

बिहार की राजनीति में सीधे तौर पर जो असर दिख रहा है उसमें तेजस्वी यादव और चिराग पासवान के बीच समझौते की जो डोर है वह इस आधार पर भी बन रही थी कि लालू यादव जब चिराग पासवान के बुलावे पर रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि देने गए थे तो चिराग को आशीर्वाद दे दिए और कहा कि पूरा आशीर्वाद चिराग के साथ हैं. चुनावी मैदान में तेजस्वी के सामने चिराग होंगे. बिहार की बर्बादी की कहानी बताएंगे. नरेंद्र मोदी के विकास की बात कहेंगे. अगर नरेंद्र मोदी के विकास की बात बिहार में कही जाएगी तो इसका पूरा श्रेय नीतीश कुमार के खाते में जाएगा. बीजेपी का हर नेता यही कहता है कि बिहार में नीतीश की नीतियां ही चलेंगी. अब जिस नीति को बिहार में नीतीश कुमार चला रहे हैं उसमें नरेंद्र मोदी के काम का बखान का मतलब है कि नीतीश कुमार ने काम किया है. क्योंकि दो इंजन की चल रही सरकार यही चीज साबित कर रही है कि कुछ अलग नहीं है.

चिराग पासवान को हिंदी सलाहकार समिति में रखकर दिल्ली की राजनीति जिस डगर पर गई है वह लौटकर बिहार पहुंचेगी तो निश्चित तौर पर चिराग पासवान को यह समझाने और समझने की जरूरत पड़ेगी कि दिल्ली में जिस समझौते की सियासत वह कर रहे हैं पटना और बिहार में उसकी मुखालफत की राजनीति कैसे करेंगे? उसकी भाषा क्या होगी? खास तौर से चिराग गुट के समर्थकों को क्या समझाएंगे कि मैं दिल्ली में तो उस नीति के साथ हूं जो बिहार में विकास की बात करता है लेकिन यह बताने आया हूं कि बिहार में विकास नहीं हुआ है. अब इस विभेद को पाटने में चिराग क्या करेंगे यह तो समय उत्तर देगा. लेकिन सियासत में राजनीतिक इतिहास के धरोहर वाला जो उत्तर राम के हनुमान को मिला है उसने राजनीति की एक नई पटकथा तो लिख ही दी है. अब बिहार में बीजेपी का स्टैंड बहुत साफ है. क्योंकि बिहार में बहार है और सिर्फ नीतीश कुमार हैं.

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