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नहीं बदली यारपुर दलित बस्ती के लोगों की जिंदगी, CM आवास से महज 2 किलोमीटर पर है ये इलाका

दलित बस्ती के कई परिवार की दिनचर्या आसमान के नीचे ही होती है. बस्ती में सभी लोगों के पास शौचालय नहीं है. ऐसे में इन लोगों को शौचालय के लिए बस्ती के पास से गुजरने वाली रेलवे लाइन का सहारा लेना पड़ता है. देखिये ये खास रिपोर्ट...

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Published : Sep 5, 2020, 1:55 PM IST

दलित बस्ती
दलित बस्ती

पटनाः बिहार सरकार भले ही दलितों के विकास का दावा करे, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. राजधानी पटना के बीचों-बीच यारपुर में स्थित है एक दलित बस्ती. जहां हजारों की संख्या में दलित और महादलित का परिवार रहता है. इस बस्ती के लोग आज भी सरकार की मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.

हैरत करने वाली बात तो यह है कि यह बस्ती मुख्यमंत्री आवास से महज डेढ़ से दो किलोमीटर की दूरी पर है और विधानसभा से महज कुछ ही कदमों पर है. लेकिन इस मोहल्ले में न तो जनप्रतिनिधि आते हैं न ही कोई अधिकारी.

दलित बस्ती में लोग
दलित बस्ती में लोग

राजधानी के वार्ड संख्या-9 में है यारपुर दलित बस्ती
दलितों के विकास की सरकार लाख बात कर ले, लेकिन जब दलित बस्ती का जायजा लिया जाता है तो सरकार के सभी दावे खोखले नजर आते हैं. राजधानी पटना का वार्ड संख्या-9 में स्थित यारपुर दलित बस्ती.

यहां रहने वाले हजारों दलित और महादलित परिवार आज बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. यहां न शौचालय है न शुद्ध पेयजल की सुविधा. इस बस्ती में रहने वाले गरीबों के पास आवास के नाम पर सिर्फ टूटी हुई झोपड़ी है.

दलित बस्ती
दलित बस्ती

बस्ती से कुछ ही दूरी पर है मुख्यमंत्री आवास
सरकार के जरिए गराबों के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई जाती हैं. जिसमें विधवा, दिव्यांग और वृद्धा पेंशन योजना शामिल हैं. लेकिन इन योजनाओं का लाभ यहां के लोगों को नहीं मिल रहा है. ऐसा नहीं है कि यहां के लोगों का दर्द किसी अधिकारी या नेता से छुपा है.

इस इलाके की हालत से हर कोई वाकिफ है. मोहल्ले से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर मुख्यमंत्री आवास है और तमाम अधिकारी और मंत्री का आवास भी पास में ही है. लेकिन बस्ती के लोगों को पूछने वाला कोई नहीं है.

रेलवे लाइन के किनारे बसी बस्ती
रेलवे लाइन के किनारे बसी बस्ती

खुले आसमान के नीचे बनाते हैं लोग खाना
यहां के हालात ये हैं कि आधा दर्जन परिवार आवास के अभाव में खुले आसमान के नीचे ही भोजन बनाते हैं. जाड़ा, गर्मी और बरसात सभी मौसम में वह आसमान के नीचे ही गुजारा करने को विवश हैं. बस्ती में सभी लोगों के पास शौचालय नहीं है. ऐसे में इन लोगों को शौचालय के लिए बस्ती के पास से गुजरने वाली रेलवे लाइन का सहारा लेना पड़ता है. जो काफी खतरनाक है. अब तक दर्जनों लोगों की जान इस रेलवे लाइन पर जा चुकी है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'नेता सिर्फ चुनाव के समय में वोट मांगने के लिए आते हैं. लेकिन जीत जाने के बाद कोई भी हम लोगों के बदहाली को देखने नहीं आता है.'
स्थानीय निवासी
वहीं, जब इस सिलसिले में स्थानीय जन प्रतिनिधि से पूछा गया तो उन्होंने इसका ठीकरा सीधे अधिकारियों पर फोड़ दिया. उन्होंने इसका दोष स्थानीय भाजपा विधायक पर मढ़ दिया.

'शौचालय निर्माण के लिए अधिकारियों को पत्र दिया जा चुका है, लेकिन अभी तक फण्ड निर्गत नहीं हुआ है. स्थानीय विधायक हमारी मदद नहीं करते हैं.'
अभिषेक कुमार, वार्ड पार्षद

अभिषेक कुमार, वार्ड पार्षद
अभिषेक कुमार, वार्ड पार्षद
स्वच्छ भारत अभियान की उड़ रही धज्जियां स्वच्छ भारत को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में स्वच्छता की बात करते हैं और इसके लिए सरकार स्वच्छ भारत अभियान भी चला रही है. लेकिन उनके इस अभियान का बिहार की राजधानी में ये हाल है तो गांव और सुदूर इलाके में क्या हाल होगा. पटना के इस इलाके में स्वच्छ भारत मिशन की धज्जियां उड़ रही हैं. लेकिन सरकार या प्रशासन के अधिकारी यहां पहुंचते ही नहीं.
स्थानीय महिला
स्थानीय महिला

पटनाः बिहार सरकार भले ही दलितों के विकास का दावा करे, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. राजधानी पटना के बीचों-बीच यारपुर में स्थित है एक दलित बस्ती. जहां हजारों की संख्या में दलित और महादलित का परिवार रहता है. इस बस्ती के लोग आज भी सरकार की मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.

हैरत करने वाली बात तो यह है कि यह बस्ती मुख्यमंत्री आवास से महज डेढ़ से दो किलोमीटर की दूरी पर है और विधानसभा से महज कुछ ही कदमों पर है. लेकिन इस मोहल्ले में न तो जनप्रतिनिधि आते हैं न ही कोई अधिकारी.

दलित बस्ती में लोग
दलित बस्ती में लोग

राजधानी के वार्ड संख्या-9 में है यारपुर दलित बस्ती
दलितों के विकास की सरकार लाख बात कर ले, लेकिन जब दलित बस्ती का जायजा लिया जाता है तो सरकार के सभी दावे खोखले नजर आते हैं. राजधानी पटना का वार्ड संख्या-9 में स्थित यारपुर दलित बस्ती.

यहां रहने वाले हजारों दलित और महादलित परिवार आज बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. यहां न शौचालय है न शुद्ध पेयजल की सुविधा. इस बस्ती में रहने वाले गरीबों के पास आवास के नाम पर सिर्फ टूटी हुई झोपड़ी है.

दलित बस्ती
दलित बस्ती

बस्ती से कुछ ही दूरी पर है मुख्यमंत्री आवास
सरकार के जरिए गराबों के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई जाती हैं. जिसमें विधवा, दिव्यांग और वृद्धा पेंशन योजना शामिल हैं. लेकिन इन योजनाओं का लाभ यहां के लोगों को नहीं मिल रहा है. ऐसा नहीं है कि यहां के लोगों का दर्द किसी अधिकारी या नेता से छुपा है.

इस इलाके की हालत से हर कोई वाकिफ है. मोहल्ले से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर मुख्यमंत्री आवास है और तमाम अधिकारी और मंत्री का आवास भी पास में ही है. लेकिन बस्ती के लोगों को पूछने वाला कोई नहीं है.

रेलवे लाइन के किनारे बसी बस्ती
रेलवे लाइन के किनारे बसी बस्ती

खुले आसमान के नीचे बनाते हैं लोग खाना
यहां के हालात ये हैं कि आधा दर्जन परिवार आवास के अभाव में खुले आसमान के नीचे ही भोजन बनाते हैं. जाड़ा, गर्मी और बरसात सभी मौसम में वह आसमान के नीचे ही गुजारा करने को विवश हैं. बस्ती में सभी लोगों के पास शौचालय नहीं है. ऐसे में इन लोगों को शौचालय के लिए बस्ती के पास से गुजरने वाली रेलवे लाइन का सहारा लेना पड़ता है. जो काफी खतरनाक है. अब तक दर्जनों लोगों की जान इस रेलवे लाइन पर जा चुकी है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'नेता सिर्फ चुनाव के समय में वोट मांगने के लिए आते हैं. लेकिन जीत जाने के बाद कोई भी हम लोगों के बदहाली को देखने नहीं आता है.'
स्थानीय निवासी
वहीं, जब इस सिलसिले में स्थानीय जन प्रतिनिधि से पूछा गया तो उन्होंने इसका ठीकरा सीधे अधिकारियों पर फोड़ दिया. उन्होंने इसका दोष स्थानीय भाजपा विधायक पर मढ़ दिया.

'शौचालय निर्माण के लिए अधिकारियों को पत्र दिया जा चुका है, लेकिन अभी तक फण्ड निर्गत नहीं हुआ है. स्थानीय विधायक हमारी मदद नहीं करते हैं.'
अभिषेक कुमार, वार्ड पार्षद

अभिषेक कुमार, वार्ड पार्षद
अभिषेक कुमार, वार्ड पार्षद
स्वच्छ भारत अभियान की उड़ रही धज्जियां स्वच्छ भारत को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में स्वच्छता की बात करते हैं और इसके लिए सरकार स्वच्छ भारत अभियान भी चला रही है. लेकिन उनके इस अभियान का बिहार की राजधानी में ये हाल है तो गांव और सुदूर इलाके में क्या हाल होगा. पटना के इस इलाके में स्वच्छ भारत मिशन की धज्जियां उड़ रही हैं. लेकिन सरकार या प्रशासन के अधिकारी यहां पहुंचते ही नहीं.
स्थानीय महिला
स्थानीय महिला
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