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नगर निगम वित्तीय स्वायत्तता मामले पर पटना HC सख्त, बिहार सरकार को 3 सप्ताह में हलफनामा दायर करने का आदेश

पटना हाईकोर्ट (Patna High Court News) ने नगर निगमों की वित्तीय स्वायत्तता मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को तीन सप्ताह में जवाबी हलफनामा दायर करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने तय अवधि में हलफनामा नहीं देने पर बिहार नगर विकास व आवास विभाग (Urban Development and Housing Department Bihar) के प्रधान सचिव को आर्थिक दंड लगाने की चेतावनी दी.

Patna High Court News
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Published : Feb 9, 2022, 5:14 PM IST

पटना: नगर निगमों की वित्तीय स्वायत्तता मामले पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई (Nagar Nigam Financial Autonomy case) हुई. पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तीन सप्ताह में जवाबी हलफनामा दायर करने का आदेश दिया है. याचिकाकर्ता आशीष कुमार सिन्हा की याचिका पर चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि यदि इस अवधि में जवाब दायर नहीं किया गया, तो बिहार नगर विकास व आवास विभाग के प्रधान सचिव को 5 हजार रुपए दंड के रूप में भरना होगा.

ये भी पढ़ें- बर्खास्त सिवान नगर परिषद अध्यक्ष सिंधु देवी को पटना हाईकोर्ट ने किया बहाल, सरकार पर लगाया जुर्माना

दरअसल, निगमों के फंड पर राज्य का नियंत्रण हैं. जहां नगर विकास व आवास विभाग ये तय करता है कि निगम की धनराशि का उपयोग कैसे किया जाए. साथ ही धनराशि को किस मद में रखा जाए. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मयूरी ने कोर्ट को बताया कि अन्य राज्यों में नगर निगम को आवंटित धनराशि का उपयोग करने का अधिकार नगर निगम को ही है. साथ किस मद में पैसा कैसे खर्च करना हैं, इसका निर्णय भी नगर निगम ही लेता है. नगर निगमों को जो भी फंड मुहैया कराया जाता है, जो एक विशेष कार्य के लिए होता है. उन्हें कोई अधिकार नहीं होता कि वो यह तय कर सकें कि आवंटित धनराशि को किस तरह खर्च किया जाए.

बिहार निगम कानून के सेक्शन 127 के अंतर्गत नगर निगम को विशेष सेवा देने के बदले टैक्स लगाने का अधिकार दिया गया है. लेकिन, नगर विकास व आवास विभाग ने धीरे-धीरे इन सारी वित्तीय शक्तियों को अपने हाथों में ले लिया. अधिवक्ता मयूरी ने कोर्ट में पक्ष प्रस्तुत करते हुए बताया कि उदाहरण के लिए नगर निगम को संचार टावर और उससे संबंधित निर्माण पर पहले टैक्स लगाने का अधिकार था, लेकिन अब ये अधिकार नगर विकास व आवास विभाग को मिल गया है.

साथ ही नगर निगम 1993 से ही संपत्ति व अन्य करों के पुनर्विचार करने के लिए लिख रहा है, ताकि नगर निगम के राजस्व की स्थिति सुधर सकें. लेकिन, इस संबंध में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई. इन कारणों से नगर निगम की वित्तीय स्वायत्तता बुरी तरह प्रभावित हुई है. नगर निगमों को छोटे छोटे काम के लिए सरकार का मुंह देखना पड़ता है. इस मामले पर अब अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद की जाएगी.

ये भी पढ़ें- बिहार विधान परिषद चुनाव में वोटिंग के अधिकार को लेकर पटना हाई कोर्ट पहुंचे ग्राम कचहरी सरपंच और पंच

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पटना: नगर निगमों की वित्तीय स्वायत्तता मामले पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई (Nagar Nigam Financial Autonomy case) हुई. पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तीन सप्ताह में जवाबी हलफनामा दायर करने का आदेश दिया है. याचिकाकर्ता आशीष कुमार सिन्हा की याचिका पर चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि यदि इस अवधि में जवाब दायर नहीं किया गया, तो बिहार नगर विकास व आवास विभाग के प्रधान सचिव को 5 हजार रुपए दंड के रूप में भरना होगा.

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दरअसल, निगमों के फंड पर राज्य का नियंत्रण हैं. जहां नगर विकास व आवास विभाग ये तय करता है कि निगम की धनराशि का उपयोग कैसे किया जाए. साथ ही धनराशि को किस मद में रखा जाए. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मयूरी ने कोर्ट को बताया कि अन्य राज्यों में नगर निगम को आवंटित धनराशि का उपयोग करने का अधिकार नगर निगम को ही है. साथ किस मद में पैसा कैसे खर्च करना हैं, इसका निर्णय भी नगर निगम ही लेता है. नगर निगमों को जो भी फंड मुहैया कराया जाता है, जो एक विशेष कार्य के लिए होता है. उन्हें कोई अधिकार नहीं होता कि वो यह तय कर सकें कि आवंटित धनराशि को किस तरह खर्च किया जाए.

बिहार निगम कानून के सेक्शन 127 के अंतर्गत नगर निगम को विशेष सेवा देने के बदले टैक्स लगाने का अधिकार दिया गया है. लेकिन, नगर विकास व आवास विभाग ने धीरे-धीरे इन सारी वित्तीय शक्तियों को अपने हाथों में ले लिया. अधिवक्ता मयूरी ने कोर्ट में पक्ष प्रस्तुत करते हुए बताया कि उदाहरण के लिए नगर निगम को संचार टावर और उससे संबंधित निर्माण पर पहले टैक्स लगाने का अधिकार था, लेकिन अब ये अधिकार नगर विकास व आवास विभाग को मिल गया है.

साथ ही नगर निगम 1993 से ही संपत्ति व अन्य करों के पुनर्विचार करने के लिए लिख रहा है, ताकि नगर निगम के राजस्व की स्थिति सुधर सकें. लेकिन, इस संबंध में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई. इन कारणों से नगर निगम की वित्तीय स्वायत्तता बुरी तरह प्रभावित हुई है. नगर निगमों को छोटे छोटे काम के लिए सरकार का मुंह देखना पड़ता है. इस मामले पर अब अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद की जाएगी.

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