पटनाः अपने पति की हत्या के आरोप में 2015 में जेल गई पत्नी को अपने बच्चे से मिलने की उम्मीद पटना हाईकोर्ट (Patna HC intervention Gaya Woman Reunite With Son) से बंधी है. 2015 में मुन्नी अपने पति के कथित हत्या के आरोप में जेल भेजी गई थी. अभी 27 वर्षीया मुन्नी का बच्चा 7 साल का है. उसने अपने बच्चे को पाने के लिए लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी है. मंगलवार को पटना हाईकोर्ट के जस्टिस ए अमानुल्लाह की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई (Hearing In Patna High Court) की.
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2015 में पांच माह का था बच्चाः दरअसल 2015 में जेल जाने के बाद मुन्नी का पांच माह का बच्चा उससे अलग हो गया था. पुलिस, नगरपालिका अधिकारी और स्थानीय पंचायत ने कई बार उस बच्चे के मृत होने की बात कही थी. हालांकि मुन्नी के द्वारा बच्चे की फोटो और अन्य सबूत देने के बाद गया की एसएसपी हरप्रीत कौर ने छानबीन कर उस बच्चे को मुन्नी के ससुराल से बरामद किया. अब उसे पटना हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से अपने बच्चे को वापस मिलने की उम्मीद बंधी है. जब मुन्नी जेल गई थी, तो उसकी उम्र 20 वर्ष थी.
'झूठे केस में फंसाया गया मुझे' : मुन्नी देवी, जिसे महज 20 साल की उम्र में जेल भेज दिया गया था. उसने बताया कि मुझे अपने पति की हत्या में झूठा फंसाया गया था, क्योंकि शव मेरे माता-पिता के घर से मगध मेडिकल थाने के कठौतिया-घुटियाटोला में सड़क पर मिला था. मेरे परिवार के सभी सदस्यों को 24 मई 2015 को गिरफ्तार कर लिया गया था. मेरे ससुर किशोरी यादव ने हम सभी के खिलाफ नामजद प्राथमिकी दर्ज कराई थी. मुझे नौ महीने बाद पटना हाईकोर्ट से जमानत मिली. जिसके बाद मैंने अपने बेटे की तलाश शुरू की. मैंने अपने ससुराल वालों से पूछा, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि ''जेल जाने के तीन महीने बाद उसकी मृत्यु हो गई.''
2017 में गया कोर्ट पहुंची मुन्नीः इस खबर के बाद मुन्नी टूट गई. लेकिन इसी बीच, ग्रामीणों से उसे पता चला कि उसका बेटा जिंदा है और वो सही सलामत है. वो अपने दादा-दादी के साथ रह रहा है. इसके बाद मुन्नी 17 फरवरी, 2017 को गया जिला कोर्ट पहुंची और न्यायाधीश के समक्ष अपने ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. लेकिन मामला लंबा खिंचता चला गया. ससुराल वालों को उनके इस दावे कि 'बच्चे की मौत तबीयत बिगड़ने से हो गई थी' के आधार पर अग्रिम जमानत मिल गई थी. 12 सितंबर को पटना हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने गया एसएसपी के अनुरोध पर मामले को एक महीने के लिए स्थगित कर दिया, लेकिन इस शर्त के साथ कि बच्चा 48 घंटे में मिल जाए.
फर्जी डेथ सर्टिफिकेट बनवाया गया : मामला चूंकि 7 साल पुराना था, इसलिए थोड़ी परेशानी हुई. हालांकि पुलिस ने जांच शुरू की तो परत दर परत खुलने शुरू हो गए. सामने आया कि बच्चे की मौत नहीं हुई है, बल्कि उसका फर्जी डेथ सर्टिफिकेट बनवा दिया गया और पुलिस को भी गुमराह किया गया.
बच्चे को बरामद कर चाइल्डलाइन को सौंपा गया : पुलिस ने इस मामले में हाईकोर्ट के निर्देशानुसार और अपने अनुसंधान के आधार पर एक मां को उसके बच्चे से मिलाने की पहल शुरू की. बच्चे की बरामदगी कर उसे चाइल्डलाइन को सौंपा गया है. अब डीएनए टेस्ट कर बच्चे को उसकी मां को सुपुर्द कर दिया जाएगा. हालांकि इसके ससुराल के लोगों से पुलिस को जो इनपुट मिला है, उससे साफ हो गया है कि जिस बच्चे पर महिला दावा कर रही है, वह वास्तव में उसका बेटा है और वह मरा नहीं, बल्कि जिंदा है.
“फर्जी सर्टिफिकेट बनाने वाले मुख्य सूत्रधार चाचा की तलाश तेज कर दी गई है. वहीं इस साजिश में शामिल गांव के लोगों और अन्य की भी तलाश की जा रही है. जो लोग भी फर्जीवाड़े में शामिल पाए जाएंगे, उनकी गिरफ्तारी निश्चित की जाएगी.'' - हरप्रीत कौर, एसएसपी, गया