पटना: महिलाओं की क्षमता पर कोई उंगली नहीं उठा सकता है. देश और दुनिया में इतिहास गवाह रहा है कि महिलाओं ने वैसे काम किए हैं, जो समाज के लिए मिसाल बन गई हैं. ऐसे आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women Day) के अवसर पर बिहार की राजधानी पटना की रहने वाली आकृति की कहानी भी एक बारागी प्रासंगिक लगने लगी है. इन्होंने कुछ इस तरीके से अपने सपने को आकार दिया है कि, आज उनकी गिनती देश की उन महिलाओं में ही रही है. इनकी कहानी हजारों युवतियों और महिलाओं को प्रेरित कर सकती है. इन्होंने काफी कम उम्र में ही सफलता की नई इबारत लिख रही हैं.
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पुरुषों के बिजनेस में आजमाया हाथःआमतौर पर कंस्ट्रक्शन का बिजनेस पुरुषों के लिए भी चुनौतीपूर्ण माना जाता है. बहुत कम महिलाएं हैं जो कंस्ट्रक्शन की बिजनेस में आने के साथ सफलता की छाप छोड़ पाई हैं. आकृति ने इसी कंस्ट्रक्शन बिजनेस को अपना ड्रीम बनाया और आज वह धीरे-धीरे ही सही अपनी मंजिल की तरफ लगातार आगे बढ़ रही हैं. दरअसल, आकृति ने लीक से हटकर बिजनेस को अपना ड्रीम बनाया और उन्होंने वॉल पुट्टी के बिजनेस में अपना दाव लगाया. आज आकृति का वाल पुट्टी का ब्रांड बिहार के साथ देश के जाने माने ब्रांड में से एक है. इतनी कम उम्र में इतनी सफलता हासिल करने को लेकर आकृति को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है.
प्लांट लगाने का है सपना: आकृति के पिता अतुल कुमार सिन्हा बिहार सरकार से रिटायर्ड क्लास वन अधिकारी रह चुके हैं. आकृति बताती हैं कि दरअसल उनका सपना सीमेंट का प्लांट लगाने का था. सीमेंट का प्लांट लगाने में जितनी जरूरत जमीन की होती है, उससे कहीं ज्यादा जरूरत बड़े इन्वेस्टमेंट की होती है. आकृति बताती है कि हालांकि उन्होंने अपने सपने को अभी भी जिंदा रखा हुआ है वह प्लांट जरूर बैठाएंगी. यह अच्छी बात है कि वाल पुट्टी के बिजनेस से अन्य बाकी बारीकियों को सीख और समझ रही हैं.
सिंगापुर से लौट कर शुरू किया सफरः आकृति बताती हैं कि उन्होंने वॉल पुट्टी का बिजनेस तब शुरू किया, जब सिंगापुर से लौटी. दरअसल, आकृति ने 2010 में पटना से अपनी स्कूल की स्टडी को पूरा किया. उसके बाद वह आगे की पढ़ाई करने के लिए 2010 में ही दिल्ली चली गई. वहां उन्होंने दयाल सिंह कॉलेज में नामांकन लिया. 2013 में आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने सिंगापुर यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया और 2013 में ही सिंगापुर चली गई. आकृति कहती है कि सिंगापुर में ही उन्होंने बिजनेस के बारे में सोच लिया था. आकृति ने सिंगापुर की सेल्बी जेनिंग्स कंपनी में जॉब भी किया, लेकिन तीन साल बाद ही वह वापस अपने वतन आ गई.
बिहटा में लगाया प्लांटः अपने इस बिजनेस के बारे में आकृति बताती है कि इसे शुरू करना इतना आसान भी नहीं था. इसके लिए पहले मैंने मार्केट की बारीकियों को समझा. मेरे लिए सबसे अहम था, जगह और श्रमिकों के लिए चुनाव करना. मैंने पटना से सटे बिहटा में जमीन ली और वहां अपने काम करने की शुरुआत की. शुरुआती दौर में परिवार वालों ने मुझे करीब 15 लाख रुपए दिए थे. इसके बाद मैंने अपना बिजनेस शुरू किया. आकृति कहती हैं कि आज उनकी फैक्ट्री में करीब 15 कामगार है. जबकि पैनइंडिया उनका अपना मार्केटिंग का नेटवर्क है. इसमें प्रोफेशनल से लेकर इंटर्नशिप करने वाले स्टूडेंट्स शामिल हैं.
बाहर से आता है कच्चा मालः आकृति कहती हैं कि भले ही उनका प्लांट बिहटा में हो, लेकिन कच्चा माल राजस्थान से आता है. आकृति कहती हैं, मैंने सिंगापुर में देखा था कि किसी भी इकोनॉमिक का बैकबोन इंफ्रास्ट्रक्चर है, तो मुझे लगता था कि अपने देश में अभी भी इन्फ्रास्ट्रक्चर की, सड़कों की, अच्छे फ्लाईओवर, एक्सप्रेसवे की बहुत कमी है. किसी भी बिजनेस में अगर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को शुरू करना है तो कनेक्टिविटी हमें चाहिए. जो शायद नहीं था. सिंगापुर में रखकर जब मैं ऊंची इमारतों को देखती थी तो मेरा भी सपना था कि अपने देश भी ऐसा ही बने. हमारा बिहार ऐसा हो. महिलाओं को संदेश देते हुए आकृति कहती हैं, सबसे पहले साहसी बने और आत्मनिर्भर बने. अपने सपनों को देखना कभी बंद न करें. क्योंकि यही सपने आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं.
सीमेंट मैन्युफैक्चरिंग मेरी मंजिल: आकृति कहती है कि मैं पटना से ताल्लुक रखती हूं और मेरी सोच थी कि यहां पर भी बहुत सारे ऑफिस, बहुत सारी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट, इंडस्ट्री, खुले. इसी सपने को देखकर मैंने अपनी वॉल पुट्टी के ब्रांड को शुरू किया किया. आकृति बताती है जब मैंने इसे शुरू किया था. तब मेरी उम्र 26 साल की थी. मैं एक सर्विस क्लास से ताल्लुक रखती थी. धीरे-धीरे अपने प्रोडक्ट को डायवर्सिफाई करते चले गए और अंत में मैं वहां पहुंची जहां मैं जाना चाहता हूं. सीमेंट मैन्युफैक्चरिंग मेरी मंजिल है.
शुरुआती दौर में आई कई चुनौतियांः आकृति कहती है कि जब मैंने बिहार में अपना काम शुरू किया तो सबसे बड़ा चैलेंज रॉ मैटेरियल को लेकर था. इसके ज्यादातर रॉ मैटेरियल दिल्ली से और डोलोमाइट राजस्थान के अलवर से आता है. वह एक बड़ा चैलेंज था. उसे राजस्थान से यहां तक लाना और ट्रांसपोर्टेशन के ज्यादा खर्च का वहन करना. वह वाकई में मेरे लिए चैलेंज था. इसके अलावा वर्कर के साथ काम करना. क्योंकि उनकी पढ़ाई बहुत सीमित स्तर तक थी. वह जब यह देखते थे कि एक छोटी लड़की जब इस फील्ड में काम कर रही है तो इन सारी बातों को गंभीर तौर पर लेते भी नहीं थे.
प्रोडक्ट की मार्केटिंग कभी नहीं चैलेंजिंगः आकृति बताती है कि मार्केटिंग मेरे लिए कभी चैलेंजिंग नहीं रहा. शुरुआती दौर में जब मैं लोगों को फोन करती थी और प्रोडक्ट के बारे में बताती थी. तब लोग यह सोचते थे कि शायद इसकी नई कंपनी है. शायद यह भी कंपनी में काम करती है. वह ठीक तरीके से बात नहीं करते थे, लेकिन लोग सपोर्टिव जरूर थे. इसलिए मार्केटिंग उतना ज्यादा चैलेंजिंग नहीं रहा. आकृति बताती है कि हमारी एक फैक्ट्री दिल्ली में शुरू होने जा रही है. यह पेंट की मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है. हम पेंट्स की एक यूनिट खोलने जा रहे हैं. मेरा विजन यह है कि मुझे बिहार में सीमेंट की फैक्ट्री लगानी है और फिर दिल्ली भी लगानी है. उसके बाद पैन इंडिया लेवल पर फैक्ट्री को डालेंगे.
"मैं पटना से ताल्लुक रखती हूं और मेरी सोच थी कि यहां पर भी बहुत सारे ऑफिस, बहुत सारी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट, इंडस्ट्री, खुले. इसी सपने को देखकर मैंने अपनी वॉल पुट्टी के ब्रांड को शुरू किया किया. जब मैंने इसे शुरू किया था. तब मेरी उम्र 26 साल की थी. मैं एक सर्विस क्लास से ताल्लुक रखती थी. धीरे-धीरे अपने प्रोडक्ट को डायवर्सिफाई करते चले गए और अंत में मैं वहां पहुंची जहां मैं जाना चाहता हूं. सीमेंट मैन्युफैक्चरिंग मेरी मंजिल है. सबसे पहले साहसी बने और आत्मनिर्भर बने. अपने सपनों को देखना कभी बंद न करें. क्योंकि यही सपने आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं" - आकृति