ETV Bharat / state

परिवर्तनी एकादशी 2021: जानें व्रत की विधि, मुहूर्त और पारण का समय

हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है. 16 सितंबर को परिवर्तनी एकादशी है. भादो मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी या पद्मा एकादशी के नाम से भी जानते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि को भगवान विष्णु चतुर्मास के शयन के दौरान अपने करवट बदलते हैं. पढ़कर जानें पूजन विधि और महत्व-

author img

By

Published : Sep 17, 2021, 6:01 AM IST

Parivartini Ekadashi 2021 importance Vrat Rituals
Parivartini Ekadashi 2021 importance Vrat Rituals

पटना: हिंदी पंचांग के अनुसार आज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है. हिंदू धर्म में इसे परिवर्तनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के वामन अवतार की पूजा की जाती है. इस एकादशी पर श्री हरी शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसलिए इस एकादशी को परिवर्तनी एकादशी कहा जाता है. इसे पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.

इस व्रत में भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और मनुष्य के समस्त पाप नष्ट होते हैं. यह लक्ष्मी की पूजा का भी श्रेष्ठ दिन है. इस दिन लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख संपत्ति प्राप्त होती है.

परिवर्तनी एकादशी व्रत पूजा विधि
परिवर्तनी एकादशी का व्रत और पूजन ब्रह्मा विष्णु समेत तीनों लोको की पूजा के समान है. इस पूजा की विधि इस प्रकार है. एकादशी का व्रत रखने वाले मनुष्य को व्रत से एक दिन पूर्व दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए. प्रातः उठ कर भगवान का ध्यान करें और स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष घी का दीपक जलाएं.

भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल और तिल का उपयोग करें. व्रत के दिन अन्न ग्रहण ना करें. शाम को पूजा के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं. व्रत के दिन दूसरों की बुराई करने और झूठ बोलने से बचें. इसके अतिरिक्त चावल और दही का दान करें. एकादशी के अगले दिन द्वादशी को सूर्योदय के बाद पारण करें और जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दक्षिणा देकर व्रत खोलें. पारण का समय 18 सितंबर को प्रात: 06 बजकर 07 मिनट से प्रात: 06 बजकर 54 मिनट के बीच पारण कर सकते हैं.

परिवर्तनी एकादशी की व्रत कथा
महाभारत काल के समय पांडु पुत्र अर्जुन के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण ने परिवर्तनी एकादशी के महत्व का वर्णन सुनाया. भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि हे अर्जुन अब तुम समस्त पापों का नाश करने वाली परिवर्तनी एकादशी की कथा का ध्यानपूर्वक श्रवण करो. त्रेता युग में बलि नाम का असुर था लेकिन वह अत्यंत दानी सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था.

वह सदैव यज्ञ तप आदि किया करता था. अपनी भक्ति के प्रभाव से राजा बलि स्वर्ग में देवराज इंद्र के स्थान पर राज करने लगा. देवराज इंद्र और देवतागण इससे भयभीत होकर भगवान विष्णु के पास गए. देवताओं ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की. इसके बाद मैंने बामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की.

भगवान श्री कृष्ण ने कहा वामन रूप लेकर मैं राजा बलि से याचना की हे राजन! तुम मुझे तीन पग भूमि दान करोगे, इससे तुम्हें तीनों लोकों के दान का फल प्राप्त होगा. राजा बलि ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और भूमि दान करने के लिए तैयार हो गया. दान का संकल्प करते ही मैंने विराट रूप धारण करके एक पाव से पृथ्वी दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग तथा पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया.

तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी शेष नहीं था. इसलिए उन्होंने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान बामन ने तीसरा पैर उसके सिर पर रख दिया. राजा बलि की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान बामन ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया. मैंने राजा बलि से कहा मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा. परिवर्तनी एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है. इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं.

पटना: हिंदी पंचांग के अनुसार आज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है. हिंदू धर्म में इसे परिवर्तनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के वामन अवतार की पूजा की जाती है. इस एकादशी पर श्री हरी शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसलिए इस एकादशी को परिवर्तनी एकादशी कहा जाता है. इसे पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.

इस व्रत में भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और मनुष्य के समस्त पाप नष्ट होते हैं. यह लक्ष्मी की पूजा का भी श्रेष्ठ दिन है. इस दिन लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख संपत्ति प्राप्त होती है.

परिवर्तनी एकादशी व्रत पूजा विधि
परिवर्तनी एकादशी का व्रत और पूजन ब्रह्मा विष्णु समेत तीनों लोको की पूजा के समान है. इस पूजा की विधि इस प्रकार है. एकादशी का व्रत रखने वाले मनुष्य को व्रत से एक दिन पूर्व दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए. प्रातः उठ कर भगवान का ध्यान करें और स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष घी का दीपक जलाएं.

भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल और तिल का उपयोग करें. व्रत के दिन अन्न ग्रहण ना करें. शाम को पूजा के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं. व्रत के दिन दूसरों की बुराई करने और झूठ बोलने से बचें. इसके अतिरिक्त चावल और दही का दान करें. एकादशी के अगले दिन द्वादशी को सूर्योदय के बाद पारण करें और जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दक्षिणा देकर व्रत खोलें. पारण का समय 18 सितंबर को प्रात: 06 बजकर 07 मिनट से प्रात: 06 बजकर 54 मिनट के बीच पारण कर सकते हैं.

परिवर्तनी एकादशी की व्रत कथा
महाभारत काल के समय पांडु पुत्र अर्जुन के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण ने परिवर्तनी एकादशी के महत्व का वर्णन सुनाया. भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि हे अर्जुन अब तुम समस्त पापों का नाश करने वाली परिवर्तनी एकादशी की कथा का ध्यानपूर्वक श्रवण करो. त्रेता युग में बलि नाम का असुर था लेकिन वह अत्यंत दानी सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था.

वह सदैव यज्ञ तप आदि किया करता था. अपनी भक्ति के प्रभाव से राजा बलि स्वर्ग में देवराज इंद्र के स्थान पर राज करने लगा. देवराज इंद्र और देवतागण इससे भयभीत होकर भगवान विष्णु के पास गए. देवताओं ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की. इसके बाद मैंने बामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की.

भगवान श्री कृष्ण ने कहा वामन रूप लेकर मैं राजा बलि से याचना की हे राजन! तुम मुझे तीन पग भूमि दान करोगे, इससे तुम्हें तीनों लोकों के दान का फल प्राप्त होगा. राजा बलि ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और भूमि दान करने के लिए तैयार हो गया. दान का संकल्प करते ही मैंने विराट रूप धारण करके एक पाव से पृथ्वी दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग तथा पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया.

तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी शेष नहीं था. इसलिए उन्होंने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान बामन ने तीसरा पैर उसके सिर पर रख दिया. राजा बलि की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान बामन ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया. मैंने राजा बलि से कहा मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा. परिवर्तनी एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है. इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.