पटना: मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक गंभीर अनुवांशिक बीमारी है जिसका इलाज भारत में संभव नहीं है. अमेरिका जैसे यूरोपीय देशों में इस बीमारी के ट्रीटमेंट का खोज हो चुका है, जो काफी महंगा है. बीमारी से पीड़ित बच्चों को लगभग 16 करोड़ की 2 इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं. मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित बच्चों के लिए बिहार में कोई डे केयर सेंटर भी नहीं है. इलाज के लिए इन बच्चों को समय-समय पर दूसरे प्रदेशों में ट्रीटमेंट के लिए ले जाना पड़ता है. ऐसे में आज इन बच्चों के माता-पिता डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मिलने की इच्छा लिए आरजेडी कार्यालय पहुंचे थे.
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स्वास्थ्य मंत्री से अभिभावकों ने लगाई मदद की गुहार: मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित बच्चों के अभिभावक पहले भी गांधी मैदान में डे केयर सेंटर की मांग को लेकर प्रदर्शन कर चुके थे लेकिन इस पर कोई सुनवाई नहीं होने के बाद सोमवार को वीरचंद पटेल पथ स्थित आरजेडी कार्यालय के बाहर सैकड़ों की तादाद में अभिभावक अपने बच्चों को लेकर पहुंचे और डे केयर सेंटर की मांग को लेकर प्रदर्शन किया.
थेरेपी के लिए जाना पड़ता है बाहर: मस्कुलर डिस्ट्रॉफी पीड़ित बच्चे की मां पूनम कुमारी ने कहा कि उसके 5 साल के बच्चे को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी है. बच्चे की आयु दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है, जिससे वह लोग काफी परेशान हैं. इसी चिंता में बीते दिनों उनके पति को हार्ट अटैक भी आया है. अपने बच्चे की थेरेपी के लिए उन्हें दूसरे प्रदेशों में जाना पड़ता है. बिहार में इसकी सुविधा नहीं है, ऐसे में वह काफी परेशान हैं. वह चाहती हैं कि उनके बच्चे का इलाज बिहार में भी संभव हो.
बच्चे की थोड़ी तो आयु बढ़ जाएगी: वहीं, कविता कुमारी ने कहा कि उनके बच्चे को भी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी की समस्या है. इसको लेकर वह देश के कई कोनों में इलाज कराने जा चुकी है लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. साल में तीन से चार बार ट्रीटमेंट के लिए दूसरे प्रदेशों में जाना पड़ता है और यह सुविधा बिहार में नहीं है. वह चाहती है कि उनकी बच्चे की जो कम आयु है, वह थोड़ी और बढ़ सके और थेरेपी सेंटर बिहार में भी शुरू हो.
फिजियोथैरेपी और ट्रीटमेंट मिले तो ठीक हो जाएगा: आरजेडी कार्यालय पहुंची सविता कुमारी ने बताया कि वह अपने बच्चे को लेकर कई राज्यों में इलाज कराया चुकी हैं. एम्स हो चाहे बेंगलुरु का निम्हांस हो लेकिन कहीं कोई फायदा नहीं हुआ है. डॉक्टर बताते हैं कि बच्चे की आयु काफी कम है. अगर इसे फिजियोथैरेपी और ट्रीटमेंट मिले तो इसकी आयु थोड़ी और बढ़ सकती है. ऐसे में उनके बच्चे का इलाज बिहार में भी संभव हो सके, इसी का गुहार लेकर सरकार से मिलने के लिए आरडे़ी कार्यालय के बाहर पहुंची है.
कई बच्चे मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का शिकार: अपने 8 साल के बच्चे को पीठ पर बैठाकर पहुंचे सुभाष कुमार ने कहा कि उनके बच्चे को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी की गंभीर समस्या है. वह यहां सरकार से गुहार लगाने पहुंचे हुए हैं कि डे केयर सेंटर और एक्सीलेंस सेंटर बिहार में भी इन बच्चों के लिए खोला जाए, ताकि उनकी बच्चे की आयु थोड़ी और बढ़ सके.
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का इलाज महंगा: मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित बच्चे के परिजन संतोष ने बताया कि उनके बच्चे को यह गंभीर बीमारी है और इसका इलाज अभी भारत में भी नहीं है, जबकि अमेरिका में इसका इंजेक्शन ढूंढ लिया गया है. इलाज काफी महंगा है और वह चाहते हैं कि भारत सरकार संसद में इन बच्चों के इलाज के लिए देश में किसी भी एक केंद्र पर सुविधा प्रारंभ करें.
"मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का इलाज संभव है. हमारे स्वास्थ्य मंत्री कहते हैं कि दवाई, पढ़ाई, सिंचाई. जब डॉक्टर नहीं रहेगा तो दवाई कौन लिखेगा. हम हुजूर से यही पूछने आए हैं कि डॉक्टर कहां मिलेंगे, वहां जाकर बच्चों को दिखाएंगे. प्रत्येक महीने बच्चे पर 30-35 लाख रुपये खर्च होता है. मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री से हाथ जोड़कर आग्रह करते हैं कि इस पर ध्यान दें और विधानसभा में इलाज के लिए प्रस्ताव लाएं"- संतोष कुमार, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित बच्चे का पिता
डे केयर सेंटर और एक्सीलेंस सेंटर की शुरुआत हो: वहां मौजूद राकेश कुमार ने कहा कि उनके बच्चे को भी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी है. वह बस यही चाहते हैं कि डॉक्टर जो बता रहे हैं कि बच्चे की आयु 12 साल ही है तो वह आयु बढ़कर कम से कम 16 से 20 साल हो सके. बिहार में इन बच्चों के लिए डे केयर सेंटर और एक्सीलेंस सेंटर की शुरुआत हो, इसी की मांग को लेकर वह आरजेडी दफ्तर पहुंचे हैं.