पटना: देशभर में कोरोना के कारण लगभग पिछले दो वर्षों से स्कूल बंद है. देश में कोरोना संक्रमण की तीन लहर आ चुकी है और इस दौरान यह साफ देखा जा चुका है कि बच्चों पर संक्रमण का अधिक असर देखने को नहीं मिला है. बच्चों में संक्रमण की गंभीरता भी अधिक नहीं मिली है. इन सब तमाम स्थितियों को देखते हुए दुनिया भर में बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए काम करने वाली ग्लोबल संस्था यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर (UNICEF Executive Director Henrietta Fore) ने हाल ही में अपने एक बयान में कहा है कि अब कोई बहाना नहीं होना चाहिए और दुनिया भर में स्कूल खोल देनी चाहिए. बच्चे स्कूल खुलने का और लंबा इंतजार नहीं कर सकते हैं.
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यूनिसेफ की स्कूलों को खोलने की डिमांड (UNICEF Demand to Open Schools) का प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन के साथ-साथ सरकारी स्कूल के शिक्षकों, सरकारी और गैर सरकारी संस्थान में पढ़ने वाले छात्र और अभिभावकों ने समर्थन किया है. प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शमायल अहमद ने कहा कि यूनिसेफ की डिमांड जायज है और वह इसका समर्थन करते हैं. कोरोना का बच्चों के स्वास्थ्य पर कोई गंभीर असर देखने को नहीं मिला है और स्कूल बंद होने की वजह से बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं. इन सब स्थितियों को देखते हुए सरकार द्वारा स्कूलों को खोलने का जल्द निर्णय लेना चाहिए.
''अगर 2 से 3 वर्ष बच्चों की पढ़ाई बाधित हो जाती है तो आने वाला एक जेनरेशन पढ़ाई में कमजोर हो जाएगा. महाराष्ट्र जैसे जगह पर जहां देशभर में संक्रमण के सर्वाधिक मामले हैं. वहां बच्चों के हित को देखते हुए स्कूल खोल दिए गए हैं और अब बिहार सरकार को भी 6 फरवरी तक स्कूल खोलने के संबंध में निर्णय लेना होगा अन्यथा स्कूल संचालक और स्कूल से जुड़े शिक्षक और अभिभावक आंदोलन के लिए बाध्य होंगे.''- शमायल अहमद, राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन
''हम स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई के अपेक्षा क्लासरूम पढ़ाई को अधिक महत्व देते हैं और उनकी समझ से स्कूलों को खुलना चाहिए. ऑनलाइन पढ़ाई में सभी बच्चे सही से पढ़ाई को समझ और सीख नहीं पाते हैं. क्लासरूम पढ़ाई में बच्चे आपस में चर्चा करके भी ज्ञान अर्जित कर लेते हैं, जैसे कि कोई बच्चा अंग्रेजी में कमजोर है और गणित में मजबूत है और उसका दोस्त अंग्रेजी में मजबूत है और गणित में कमजोर है तो दोनों आपस में एक दूसरे से चर्चा करके एक दूसरे की कमियों को दूर कर देते हैं. शिक्षक से क्लास में पढ़ाई में बच्चे सीधा संवाद करते हैं और अपनी उलझन को दूर करते हैं.''- लीलावती कुमारी, प्राचार्या, मिलर हाई स्कूल पटना
पटना के अभिभावक डॉक्टर अरुण दयाल ने बताया कि उनके बच्चे छोटे हैं और इस स्थिति में पिछले 2 सालों से वह स्कूल नहीं जा पाए हैं. वह चाहते हैं कि स्कूल खुलें. चाहे प्राइवेट विद्यालय हो या सरकारी विद्यालय हो बोर्ड द्वारा आयोजित परीक्षाएं आयोजित कराई जा रही है. सभी कार्यक्रम किए जा रहे हैं ऐसे में क्लास क्यों नहीं चलाई जा रही है. यह उनके समझ में नहीं आ रहा. सरकार कोई गाइडलाइन निकाले की पूरी क्षमता या आधी क्षमता के अनुसार ही विद्यालय में बच्चे उपस्थित रहे, लेकिन स्कूल खुले. स्कूल बंद होने की वजह से बच्चों का मानसिक विकास बाधित हो गया है. स्कूल खुलते हैं तो बच्चे स्कूल में आएंगे और उनके मानसिक और बौद्धिक स्तर का विकास होगा.
''बच्चे क्लास रूम में अपने ग्रुप में पढ़ाई करेंगे तो उनमें तार्किक क्षमता भी विकसित होगी. पिछले 2 वर्षों से स्कूल के बंद होने की वजह से बच्चों की पढ़ाई 5 से 6 वर्ष पीछे चली गई है और बच्चों की लेखनी कमजोर हो गई है. इसके अलावा पाठ्य पुस्तक को रीडिंग देने की क्षमता भी कमजोर हुई है. बच्चे स्कूल जाएंगे और स्कूल कैंपस में खेलकूद करेंगे तो उनका फिजिकल विकास भी अच्छा होगा और इम्यून सिस्टम भी अच्छा बनेगा. स्कूल खोलने पर कोरोना को देखते हुए स्कूल प्रबंधन भी यह जिम्मेदारी तय करें कि बच्चों के सैनिटाइजेशन और हाइजीन को लेकर स्कूलों में अच्छी व्यवस्था हो.''- डॉक्टर अरुण दयाल, अभिभावक
''ऑनलाइन क्लास, क्लासरूम पढ़ाई का विकल्प नहीं है. ऑनलाइन पढ़ाई में सभी बच्चे अपनी समस्याओं को नहीं पूछ पाते हैं. सिलेबस संबंधित उनकी उलझने कम नहीं होती है. प्रदेश में कई बच्चों के पास ऑनलाइन पढ़ाई का साधन भी उपलब्ध नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कमजोर होने की वजह से ऑनलाइन क्लास में बाधा उत्पन्न होती है. मुझे ऑफलाइन पढ़ाई अच्छी लगती है, क्योंकि उनकी समस्याएं क्लियर हो जाती है. विषय से संबंधित उनका जो कुछ भी डाउट होता हैं, तो उसे शिक्षकों से पूछकर आसानी से क्लियर कर लेते हैं या फिर क्लास रूम में ही दूसरे छात्रों से चर्चा करके डाउट आसानी से क्लियर कर लेते हैं.''- आलोक कुमार, छात्र
बता दें कि छात्रों के हित को देखते हुए देशभर में सरकारें भी अब चरणबद्ध तरीके से स्कूलों को खोलने का प्रयास कर रही हैं. प्रदेश में स्कूल जाने वाले बच्चे काफी संख्या में अभी तक अनवैक्सीनेटेड हैं. 15 वर्ष से कम आयु वर्ग वाले बच्चे अभी भी वैक्सीनेशन के दायरे से बाहर है. स्वास्थ्य मंत्रालय इस मुद्दे पर कई दौर की बैठकें कर चुका है, जिसमें विशेषज्ञ की राय भी स्कूल कॉलेजों को खोलने के पक्ष में है.
हालांकि, अभी भी इस मुद्दे पर शिक्षा और स्वास्थ्य मंत्रालय की विशेषज्ञ से सलाह जारी है. अब तक जो जानकारी इन बैठकों से निकलकर सामने आई है वो ये है कि आने वाले दिनों में स्कूल कॉलेज खुलेंगे, लेकिन पूर्व की भांति पूरी क्षमता से शुरुआती दिनों में स्कूल कॉलेज नहीं खुलेंगे. वैकल्पिक व्यवस्था के तहत बच्चों को स्कूल में बुलाया जाएगा. स्वास्थ्य मंत्रालय भी आने वाले दिनों में 12 वर्ष से ऊपर के बच्चों को वैक्सीनेशन के दायरे में शामिल कर सकती है. देश में बच्चों के वैक्सीनेशन को लेकर कोवैक्सीन का सफल ट्रायल भी हो चुका है.
महाराष्ट्र में कक्षा 1 से 12 तक के स्कूल खोले जा चुके हैं और हरियाणा में भी 1 फरवरी से स्कूल कॉलेजों में दसवीं से ऊपर की कक्षाएं शुरू हो रही है. झारखंड सरकार भी 31 जनवरी के बाद स्कूलों को खोलने का निर्णय लेने की तैयारी कर रही है और दिल्ली सरकार भी प्रदेश में स्कूलों को खोलने के पक्ष में है. आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आदेश की वजह से स्कूल नहीं खुल पा रहे हैं. उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में भी 31 जनवरी के बाद स्कूलों को पुनः खोलने को लेकर आगे का निर्णय लिया जाएगा और उत्तर प्रदेश में 15 फरवरी तक स्कूल कॉलेज बंद है. बिहार की बात करें तो यहां 6 फरवरी तक अगले आदेश आने तक बिहार में स्कूल कॉलेज बंद (School colleges closed in Bihar) हैं.
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