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सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर गोष्ठी का आयोजन, हिंदी साहित्य के कई विद्वान हुए शामिल

कवि सत्यनारायण ने कहा कि सुमित्रानंदन पंत हिंदी के वैसे कवि थे जो प्रकृति के प्रति समर्पित थे. उनका यह सहज विश्वास था कि जब सब साथ छोड़ देंगे तब भी बारिश की कोई बूंद गुलाब की कोई पति कोई घास हमारी व्यथा कथा सुनने से इनकार नहीं करेगी

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Published : May 20, 2019, 10:20 PM IST

गोष्ठी

पटना: राजधानी के अभिलेख भवन सभागार में मंत्रिमंडल सचिवालय के राजभाषा विभाग की ओर से सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर गोष्टी का आयोजन किया गया. इस गोष्ठी का विषय था 'प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत'. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी प्रगति समिति के अध्यक्ष सत्यनारायण ने की. कार्यक्रम में हिंदी साहित्य के कई बड़े प्रोफेसर भी शामिल हुए. दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन किया गया.

सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में पटना कॉलेज ऑफ कॉमर्स आर्ट्स एंड साइंस के विद्यार्थियों ने भी अपने विचार रखे. स्नातक प्रथम वर्ष की छात्रा शिवानी कुमारी ने सुमित्रानंदन पंत की रचना भारत माता ग्रामवासिनी पर अपने विचार को लोगों के बीच रखा. हिंदी साहित्य के प्रख्यात प्रोफेसर डॉक्टर रेवती रमन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सुमित्रानंदन पंत के कविताओं के तीन दौर हैं. एक छायावादी दूसरा यथार्थवादी और तीसरा अध्यात्मवादी. उन्होंने कहा कि पंत की रचनाओं में बहुत विरोधाभास था और उनकी रचनाओं का दायरा भी बहुत बड़ा था.

गोष्ठी का आयोजन

लोगों ने लिया संकल्प
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हिंदी प्रगति समिति के अध्यक्ष कविवर सत्यनारायण ने कहा कि राजभाषा विभाग की ओर से हम लोगों ने यह संकल्प लिया है कि यह जो धरोहर है जो हमारे बीच नहीं हैं. जिन्होंने अपना अमूल्य योगदान देकर साहित्य के भंडार को भरा है. हम उनको याद करें और इसी क्रम में पंडित सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया है.

पंत प्रकृति के प्रति थे समर्पित
कवि सत्यनारायण ने कहा कि सुमित्रानंदन पंत हिंदी के वैसे कवि थे जो प्रकृति के प्रति समर्पित थे. उनका यह सहज विश्वास था कि जब सब साथ छोड़ देंगे तब भी बारिश की कोई बूंद गुलाब की कोई पति कोई घास हमारी व्यथा कथा सुनने से इनकार नहीं करेगी. प्रकृति से यह लगाव हमारी हिंदी कविता में बड़े कवियों में सहज रूप से देखा जा सकता है और संस्कृत साहित्य में तो इसका विपुल भंडार है.

'प्रकृति हमारे जीवन का एक हिस्सा है'
पंत की परंपरा को आगे बढ़ाने की सवाल पर सत्यनारायण ने कहा कि जहां तक उनकी परंपरा की बात है तो प्रकृति से यह जो जुड़ाव है वह तो शाश्वत है. हमारे भारतीय चिंतन में प्रकृति का बड़ा महत्व है. हमारे ऋषि-मुनियों और हमारे विद्वानों ने अपने आप को कभी प्रकृति से अलग करके नहीं देखा. प्रकृति हमारे जीवन का एक हिस्सा है, एक महत्वपूर्ण अंग है. उन्होंने कहा कि हम अगर प्रकृति से कटकर रहते हैं तो अपने आप को सीमित ही नहीं करते बल्कि अपने आप को आधा अधूरा महसूस करते हैं.

पटना: राजधानी के अभिलेख भवन सभागार में मंत्रिमंडल सचिवालय के राजभाषा विभाग की ओर से सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर गोष्टी का आयोजन किया गया. इस गोष्ठी का विषय था 'प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत'. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी प्रगति समिति के अध्यक्ष सत्यनारायण ने की. कार्यक्रम में हिंदी साहित्य के कई बड़े प्रोफेसर भी शामिल हुए. दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन किया गया.

सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में पटना कॉलेज ऑफ कॉमर्स आर्ट्स एंड साइंस के विद्यार्थियों ने भी अपने विचार रखे. स्नातक प्रथम वर्ष की छात्रा शिवानी कुमारी ने सुमित्रानंदन पंत की रचना भारत माता ग्रामवासिनी पर अपने विचार को लोगों के बीच रखा. हिंदी साहित्य के प्रख्यात प्रोफेसर डॉक्टर रेवती रमन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सुमित्रानंदन पंत के कविताओं के तीन दौर हैं. एक छायावादी दूसरा यथार्थवादी और तीसरा अध्यात्मवादी. उन्होंने कहा कि पंत की रचनाओं में बहुत विरोधाभास था और उनकी रचनाओं का दायरा भी बहुत बड़ा था.

गोष्ठी का आयोजन

लोगों ने लिया संकल्प
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हिंदी प्रगति समिति के अध्यक्ष कविवर सत्यनारायण ने कहा कि राजभाषा विभाग की ओर से हम लोगों ने यह संकल्प लिया है कि यह जो धरोहर है जो हमारे बीच नहीं हैं. जिन्होंने अपना अमूल्य योगदान देकर साहित्य के भंडार को भरा है. हम उनको याद करें और इसी क्रम में पंडित सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया है.

पंत प्रकृति के प्रति थे समर्पित
कवि सत्यनारायण ने कहा कि सुमित्रानंदन पंत हिंदी के वैसे कवि थे जो प्रकृति के प्रति समर्पित थे. उनका यह सहज विश्वास था कि जब सब साथ छोड़ देंगे तब भी बारिश की कोई बूंद गुलाब की कोई पति कोई घास हमारी व्यथा कथा सुनने से इनकार नहीं करेगी. प्रकृति से यह लगाव हमारी हिंदी कविता में बड़े कवियों में सहज रूप से देखा जा सकता है और संस्कृत साहित्य में तो इसका विपुल भंडार है.

'प्रकृति हमारे जीवन का एक हिस्सा है'
पंत की परंपरा को आगे बढ़ाने की सवाल पर सत्यनारायण ने कहा कि जहां तक उनकी परंपरा की बात है तो प्रकृति से यह जो जुड़ाव है वह तो शाश्वत है. हमारे भारतीय चिंतन में प्रकृति का बड़ा महत्व है. हमारे ऋषि-मुनियों और हमारे विद्वानों ने अपने आप को कभी प्रकृति से अलग करके नहीं देखा. प्रकृति हमारे जीवन का एक हिस्सा है, एक महत्वपूर्ण अंग है. उन्होंने कहा कि हम अगर प्रकृति से कटकर रहते हैं तो अपने आप को सीमित ही नहीं करते बल्कि अपने आप को आधा अधूरा महसूस करते हैं.

Intro:राजधानी पटना के अभिलेख भवन सभागार में मंत्रिमंडल सचिवालय के राजभाषा विभाग की ओर से सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर गोष्टी का आयोजन हुआ. इस गोष्ठी का विषय था 'प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत'. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी प्रगति समिति के अध्यक्ष श्री सत्यनारायण ने की. इस गोष्ठी कार्यक्रम में हिंदी साहित्य के कई बड़े प्रोफेसर भी उपस्थित रहे. कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन दीप प्रज्वलित कर किया गया.


Body:सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में पटना कॉलेज ऑफ कॉमर्स आर्ट्स एंड साइंस के विद्यार्थियों ने भी अपने विचार रखे. स्नातक प्रथम वर्ष की छात्रा शिवानी कुमारी ने सुमित्रानंदन पंत की रचना भारत माता ग्रामवासिनी पर अपने विचार रखें.
हिंदी साहित्य के प्रख्यात प्रोफेसर डॉक्टर रेवती रमन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सुमित्रानंदन पंत के कविताओं के तीन दौर हैं. एक छायावादी दूसरा यथार्थवादी और तीसरा अध्यात्म वादी. पंत की रचनाओं में बहुत विरोधाभास था. उनकी रचनाओं का दायरा भी बहुत बड़ा था.


Conclusion:कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हिंदी प्रगति समिति के अध्यक्ष कविवर सत्यनारायण ने कहां की राजभाषा विभाग की ओर से हम लोगों ने यह संकल्प लिया है कि यह जो धरोहर है जो हमारे बीच नहीं हैं, जिन्होंने अपना अमूल्य योगदान देकर साहित्य के भंडार को भरा है. हम उनको याद करें और इसी क्रम में पंडित सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया है.

कविवर सत्यनारायण ने कहा कि सुमित्रानंदन पंत हिंदी के वैसे कवि थे जो प्रकृति के प्रति समर्पित थे. उनका यह सहज विश्वास था कि जब सब साथ छोड़ देंगे तब भी बारिश की कोई बूंद गुलाब की कोई पति कोई घास हमारी व्यथा कथा सुनने से इनकार नहीं करेगी. प्रकृति से यह लगाव हमारी हिंदी कविता में बड़े कवियों में सहज रूप से देखा जा सकता है और संस्कृत साहित्य में तो इसका विपुल भंडार है.
पंत की परंपरा को आगे बढ़ाने की सवाल पर उन्होंने कहा कि जहां तक उनकी परंपरा की बात है तो प्रकृति से यह जो जुड़ाव है वह तो शाश्वत है. हमारे भारतीय चिंतन में प्रकृति का बड़ा महत्व है. हमारे ऋषि-मुनियों और हमारे विद्वानों ने अपने आप को कभी प्रकृति से अलग करके नहीं देखा. प्रकृति हमारे जीवन का एक हिस्सा है एक महत्वपूर्ण अंग है. उन्होंने कहा कि हम अगर प्रकृति से कटकर रहते हैं तो अपने आप को सीमित ही नहीं करते बल्कि अपने आप को आधा अधूरा महसूस करते हैं.
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