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पटना: PU में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर सेमिनार का आयोजन, वक्ताओं ने रखी अपनी बात

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Published : Jul 25, 2019, 10:30 PM IST

प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि शिक्षा सरकार के चरित्र को प्रभावित करती है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के दावे और हकीकत में भारी अंतर्विरोध है. रोग की पहचान करना और निदान करने में भारी फर्क है.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर सेमिनार

पटना: ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की ओर से पटना विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के सेमिनार हॉल में सेमिनार का आयोजन किया गया. इसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के दावे, हकीकत और चुनौतियां जैसी विषय पर चर्चा हुई. इस कार्यक्रम में अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ के राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर अरुण कुमार और इतिहास विभाग के एचओडी डीजे नारायण समेत कई शिक्षाविद शामिल हुए.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारे में बतातीं प्रोफेसर डेजी नारायण

'शिक्षा नीति के दावे और हकीकत में अंतर'
प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि शिक्षा सरकार के चरित्र को प्रभावित करती है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के दावे और हकीकत में भारी अंतर्विरोध है. रोग की पहचान करना और निदान करने में भारी फर्क है. भारत बदलने की बात करने वाली शिक्षा नीति, छात्र और शिक्षकों के हितैषी होने की बात करती है. लेकिन ये छात्र, शिक्षक और जन विरोधी है.

'सरकार नहीं कर रही पहल'
इतिहास विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डेजी नारायण ने कहा कि प्रस्तावित शिक्षा नीति आरक्षण और सामाजिक न्याय जैसे मसले पर खामोश है. आरक्षण छीनने की कोशिश हो रही है. इतिहास पर सबसे अधिक खतरा मंडरा रहा है. उन्होंने कहा कि मॉडल स्कूल, कॉलेज बनाने की बजाय सब स्कूलों को बेहतर करने के लिए सरकार को कोई ठोस पहल करनी चाहिए. लेकिन सरकार पहल नहीं कर रही है.

'भाषा के सवाल पर दक्षिणी राज्यों का विरोध सैद्धांतिक'
गौरतलब है कि आयोजित सेमिनार में वक्ताओं ने अपनी बात रखी. बताया गया कि पूरी शिक्षा व्यवस्था को केंद्रीय और खास राजनीतिक शक्तियों की कठपुतली बनाने की मंशा जाहिर कर रही है. उन्होंने कहा कि भाषा के सवाल पर दक्षिणी राज्यों का विरोध सैद्धांतिक है. 1968 में जब त्रिभाषा के फॉर्मूला को पहली बार लाया गया था, तो यह तैयार किया गया था कि उत्तर भारत की भाषाएं दक्षिण भारत में एवं दक्षिण भारत की भाषाएं उत्तर भारत में पढ़ाए जाएंगे. लेकिन दक्षिण भारत में तमिलनाडु को छोड़ कर जितनी ईमानदारी से उत्तर भारतीय भाषाओं को पढ़ाया जाता है, हम उत्तर भारत में दक्षिण की भाषाओं को कहां सीख रहे हैं?

पटना: ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की ओर से पटना विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के सेमिनार हॉल में सेमिनार का आयोजन किया गया. इसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के दावे, हकीकत और चुनौतियां जैसी विषय पर चर्चा हुई. इस कार्यक्रम में अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ के राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर अरुण कुमार और इतिहास विभाग के एचओडी डीजे नारायण समेत कई शिक्षाविद शामिल हुए.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारे में बतातीं प्रोफेसर डेजी नारायण

'शिक्षा नीति के दावे और हकीकत में अंतर'
प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि शिक्षा सरकार के चरित्र को प्रभावित करती है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के दावे और हकीकत में भारी अंतर्विरोध है. रोग की पहचान करना और निदान करने में भारी फर्क है. भारत बदलने की बात करने वाली शिक्षा नीति, छात्र और शिक्षकों के हितैषी होने की बात करती है. लेकिन ये छात्र, शिक्षक और जन विरोधी है.

'सरकार नहीं कर रही पहल'
इतिहास विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डेजी नारायण ने कहा कि प्रस्तावित शिक्षा नीति आरक्षण और सामाजिक न्याय जैसे मसले पर खामोश है. आरक्षण छीनने की कोशिश हो रही है. इतिहास पर सबसे अधिक खतरा मंडरा रहा है. उन्होंने कहा कि मॉडल स्कूल, कॉलेज बनाने की बजाय सब स्कूलों को बेहतर करने के लिए सरकार को कोई ठोस पहल करनी चाहिए. लेकिन सरकार पहल नहीं कर रही है.

'भाषा के सवाल पर दक्षिणी राज्यों का विरोध सैद्धांतिक'
गौरतलब है कि आयोजित सेमिनार में वक्ताओं ने अपनी बात रखी. बताया गया कि पूरी शिक्षा व्यवस्था को केंद्रीय और खास राजनीतिक शक्तियों की कठपुतली बनाने की मंशा जाहिर कर रही है. उन्होंने कहा कि भाषा के सवाल पर दक्षिणी राज्यों का विरोध सैद्धांतिक है. 1968 में जब त्रिभाषा के फॉर्मूला को पहली बार लाया गया था, तो यह तैयार किया गया था कि उत्तर भारत की भाषाएं दक्षिण भारत में एवं दक्षिण भारत की भाषाएं उत्तर भारत में पढ़ाए जाएंगे. लेकिन दक्षिण भारत में तमिलनाडु को छोड़ कर जितनी ईमानदारी से उत्तर भारतीय भाषाओं को पढ़ाया जाता है, हम उत्तर भारत में दक्षिण की भाषाओं को कहां सीख रहे हैं?

Intro:राष्ट्रीय शिक्षा नीति के दावे और हकीकत के अंतर्विरोध चुनौतियां गंभीर
पटना विश्वविद्यालय के दरभंगा हाउस में सेमिनार का आयोजन


Body:ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के तत्वधान में आज पटना विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के सेमिनार हॉल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 की दावे, हकीकत एवं चुनौतियां विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसमें अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ के राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर अरुण कुमार एवं इतिहास विभाग के एचओडी डीजे नारायण समेत कई शिक्षाविद कार्यक्रम में शामिल हुए, प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि शिक्षा सरकार के चरित्र को प्रभावित करता है, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के दावे और हकीकत में भारी अंतर विरोध है, रोग की पहचान करना और निदान करने में भारी फर्क है, भारत बदलने की बात करने वाली शिक्षा नीति छात्र और शिक्षकों के हितैषी होने की बात करती है, लेकिन छात्र शिक्षक विरोधी एवं जन विरोधी है, वही इतिहास विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डीजे नारायण ने कहा कि प्रस्तावित शिक्षा नीति आरक्षण और सामाजिक न्याय जैसे मसले पर खामोश है, आरक्षण छीनने की कोशिश है इतिहास पर सबसे अधिक खतरा मंडरा रहा है, मॉडल स्कूल कॉलेज बनाने की बजाय सब स्कूलों को बेहतर करने के लिए सरकार को कोई ठोस कदम पहल करनी चाहिए, लेकिन सरकार पहल क्यों नहीं करती, शिक्षा बजट में कटौती कर आपकी से बेदखल करना चाहते हैं यह जाहिर है।


Conclusion: गौरतलब है कि आयोजित सेमिनार में विभिन्न वक्ताओं ने अपनी बात रखी
बताया गया कि पूरी शिक्षा व्यवस्था को केंद्रीय कृत एवं खास राजनीतिक शक्तियों की कठपुतली बनाने की मंशा जाहिर करती है, उन्होंने कहा कि भाषा के सवाल पर दक्षिणी राज्यों का विरोध सैद्धांतिक है, 1968 में जब त्रिभाषा के फॉर्मूला को जब पहली बार लाया गया था, तो यह तैयार किया गया था, कि उत्तर भारत की भाषाएं दक्षिण भारत में एवं दक्षिण भारत की भाषाएं उत्तर भारत में पढ़ाए जाएंगे लेकिन दक्षिण भारत में तमिलनाडु को छोड़ जितनी इमानदारी से उत्तर भारतीय भाषाओं को पढ़ाया जाता है हम उत्तर भारत में दक्षिण की भाषाओं को कहां सीख रहे हैं।



बाईट:-डीजे नारायण
विभागाध्यक्ष, इतिहास, पटना विश्वविद्यालय
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