पटनाः जातीय जनगणना (Caste Census) को लेकर जिस तरीके की सियासत बिहार (Bihar Politics) में शुरू हुई है, उससे एक बात तो साफ है कि बिहार से 'खेला' होना है. चाचा-भतीजे की सियासत (Nitish-Tejaswi Politics) एक बार फिर एक मुद्दे पर कम से कम एक लाइन पकड़ कर चल रही है. जिसमें चाचा ने जो कहा था, भतीजे ने उसका समर्थन किया था. अब भतीजा जो चाह रहा है, उस पर चाचा क्या करेंगे, यह सबसे अहम है. यहीं से चाचा की सियासत भी राजनीति में वह जगह दे जाएगी, जो नीतीश की मूल सियासत सैद्धांतिकवाद, बिहार का विकास, बिहार के लिए नीति, बिहार की योजना और बिहार के गरीबों के हक हुकूक की बात-बात को लिए खड़ा होगा.
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बिहार विधानसभा के मानसून सत्र में विपक्ष लगातार इस बात को उठा रहा है कि बिहार में जातीय जनगणना होनी चाहिए. वास्तव में इस बात को आधार इसलिए मिल गया कि केंद्र में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने यह कह दिया कि सभी जातियों की जाति जनगणना नहीं होगी. केंद्र के इस बयान के बाद ही बिहार की सियासत गर्म हो गई.
इस बात की चर्चा भी शुरू हो गई कि बिहार के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से बिहार में जातीय जनगणना को लेकर अपना जनमत दिया था कि बिहार में जातीय जनगणना होनी चाहिए. नीतीश कुमार इसके लिए सदन में बोले भी थे और उनको यह राय दी थी कि उनकी पुरानी मांग है.
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लेकिन अब केंद्र की तरफ से जब यह कह दिया गया कि जातीय जनगणना नहीं होगी. ऐसे में नीतीश सरकार का निर्णय क्या होगा, यह सवालों में है. और भतीजा इसी का उत्तर चाचा से मांगता फिर रहा है.
तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की मुलाकात में यह तो तय है कि जातीय जनगणना पर सरकार के निर्णय और सदन के एकमत से पारित होने पर कोई अंतर तो नहीं है. लेकिन सियासत में गठबंधन की मजबूरी नीतीश कुमार को भले ही चुप रहने के लिए मजबूर कर दे.
तेजस्वी यादव नीतीश कुमार से मिलकर यह बात उनसे करवाना चाहते हैं कि बिहार में जाति जनगणना होनी चाहिए. नीतीश कुमार गरीब बयान देते हैं तो निश्चित तौर पर केंद्र और बिहार के बीच एक और विभेद की राजनीति वाली दीवार खींचेगी और यहीं से बिहार में नए सियासी खेल को जगह भी मिल जाएगी.
तेजस्वी यादव चाचा नीतीश पर यह आरोप लगाते रहते हैं कि बिहार में चल रही सरकार चोर दरवाजे से बनी है. नीतीश कुमार ने अपने सिद्धांतों से समझौता कर लिया है. जब बिहार की बात आती है तो नीतीश पलट जाते हैं. ऐसे में नीतीश को अपनी छवि भी बचानी है कि जब दोनों सदनों से जाति जनगणना के लिए जनमत बटोर लिए हैं. फिर जनगणना से पीछे हटने का कारण क्या होगा?
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नीतीश के लिए इसका जवाब देना भी टेढ़ी खीर है. क्योंकि इस मुद्दे पर जिस तरीके से विपक्ष ने नीतीश को घेरा है. नीतीश के लिए एक तरफ गठबंधन को बचाने के लिए एकजुट करने वाली सियासत वाली मजबूरी है. अगर इसके विरोध में जाते हैं तो पूरे बिहार को नीतीश कुमार की मजबूर सियासत को विपक्ष जनता के सामने रखने में कामयाब होगा.
जातीय जनगणना पर केंद्र ने जल्दबाजी में जवाब दिया या जल्दी बयान दे दिया. अब यह सियासत में चर्चा का विषय बन रही है. लेकिन बिहार में सियासत इसी विषय पर आ गई है कि नीतीश कुमार इसके पक्ष में खड़े होते हैं या फिर पलट जाते हैं.
क्योंकि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में नीतीश की छवि विपक्ष निश्चित तौर पर बचाने की कोशिश करेगी. और तेजस्वी यादव इस बात को पूरे तौर पर रखेंगे कि नीतीश कुमार अपने फायदे के लिए बिहार के सदन द्वारा पास किए गए नियम का भी पालन करने से गुरेज कर जाते हैं. क्योंकि कुर्सी पर बैठे रहना उनकी मजबूरी है.
तेजस्वी यादव के लिए अगर इसमें कोई अतिवाद की सियासत नहीं आई तो निश्चित तौर पर जातीय जनगणना और बिहार में वर्तमान में जो हालात हैं, उसको लेकर ऐसा तुरूप का पत्ता हाथ लगा है कि बिहार से खेला होगा. यह तेजस्वी की सियासत तय कर सकती है. जो पूरे बिहार के सामने रखी भी जा सकती है. क्योंकि चाचा की सियासत को भतीजे ने डोर की तरह बांध जो लिया है.
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