पटना: 5 जून को ही दिवंगत जयप्रकाश नारायण ने पटना के गांधी मैदान से संपूर्ण क्रांति का नारा बुलंद किया था. गुजरात के कॉलेजों से निकली चिंगारी संपूर्ण क्रांति की आधार बनी. आंदोलन की अगुवाई करने वाला बिहार आज जेपी के वारिसों के हाथ में है. लेकिन अब परिदृश्य काफी बदल गए हैं. आज उनके ऊपर भी आए दिन कई सवाल खड़े होते रहते हैं.
समाज के बुद्धिजीवी वर्ग आज भी कहते हैं कि संपूर्ण क्रांति से उपजे कई नेता आज सवालों के घेरे में खड़े हैं. सामाजिक कार्यकर्ता व चिंतक प्रेम कुमार मणि का मानना है कि अगर जेपी आज होते तो हालात देखकर उदास होते. क्योंकि उन्होंने जिस विचारधारा को लेकर आंदोलन किया था, आज वह कहीं नहीं दिखता है.
'सत्ता सुख भोग रहे हैं जेपी के शिष्य'
प्रेम कुमार मणि ने कहा कि सबसे ज्यादा जेपी का जोर शिक्षा व्यवस्था सुधारने को लेकर था. लेकिन पिछले 30 वर्षों में जेपी के शिष्यों ने शिक्षा को चौपट कर दिया है. जेपी के चेले उनके आदर्शों को छोड़ सिर्फ सत्ता सुख पर केंद्रित हो गए हैं. संपूर्ण क्रांति का नारा देने वाले नेता आज राज्य से लेकर केंद्र तक सत्ता का सुख भोग रहे हैं. लेकिन संपूर्ण क्रांति जिस मांगों पर आधारित था आज भी वे मांग पूरे नहीं हो सकी हैं.
'जेपी होते तो फिर से क्रांति की आगाज होती'
मणि कहते हैं कि कहा कि लॉकडाउन के दौरान जिस तरह से आम जनता और मजदूरों को परेशानी झेलनी पड़ी है. उससे साफ दिखता है कि वर्तमान की राजनीति कितनी स्तरहीन हो चुकी है. उन्होंने कहा कि वर्तमान राजनीतिक दलों में लोकतंत्र समाप्त हो चुका है. आज अगर जेपी जीवित होते तो फिर से एक क्रांति की आगाज होती.
'जेपी के वारिसों पर बड़ा प्रश्नचिन्ह'
वहीं, संपूर्ण क्रांति को याद करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर डीएम दिवाकर कहते हैं कि यह दिन सिर्फ रस्म अदायगी तक ही सीमित रह गया है. जहां, तक संपूर्ण क्रांति के विचारों की बात है, तो जेपी ने राइट टू रिकॉल की मांग की थी. जबकि इसके उलट उनके आंदोलन की उपज आज सत्ता में काबिज होते हुए भी तमाम चीजों को भूल चुके हैं. उन्होंने कहा कि जिस तरह से लॉकडाउन के दौरान आम जनता को सड़कों पर निसहाय छोड़ने के बाद भी किसीका सवाल तक नहीं उठाना, जेपी के वारिसों पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है.