पटना: कोरोना महामारी के कारण राज्य में लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाल स्थिति के कारण मरीजों को इलाज करवाने में भी बहुत समस्याएं हुई. कोरोना मरीजों को इलाज के लिए पहले अस्पताल में बेड नहीं मिले तो बाद में अस्पताल पहुंचने के लिए एंबुलेंस की सुविधा भी नदारद रही. ये समस्या राज्य के किसी गांव या छोटे शहर की नहीं बल्कि राजधानी पटना, मुजफ्फरपुर और गया जैसे बड़े शहरों में दिखी. वहीं, राज्य के दूसरे जिलों दरभंगा, छपरा और बक्सर समेत कई जगहों पर बड़ी संख्या में एंबुलेंस रखे-रखे खराब हो रहे हैं.
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राज्य में सिर्फ एंबुलेंस ही नहीं पिछले कई सालों से वेंटिलेटर की सुविधा और अन्य स्वास्थ्य उपकरण स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के कारण रखे-रखे खराब हो गए. आखिर क्यों लोगों के जीवन से जुड़े इतने महत्वपूर्ण स्वास्थ्य उपकरणों की अनदेखी हो रही है ? क्या है इसके पीछे की वजह ? ईटीवी भारत आपको राज्य में पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम की जानकारी दे रहा है.
ये रहा घटनाक्रम
1. पिछले दिनों जाप संरक्षक और पूर्व सांसद पप्पू यादव ने सारण जिले के अमनौर में वर्तमान सांसद राजीव प्रताप रूड़ी के आवास पर 40 से ज्यादा एंबुलेंस के लंबे समय से यूं ही पड़े रहने का खुलासा किया. उन्होंने मीडिया के सामने बताया कि ये एंबुलेंस सांसद कोष से कुछ साल पहले उपलब्ध करवाए गए थे, लेकिन आज तक इसका उपयोग नहीं किया गया. ड्राइवर की कमी का बहाना बना कर इसे यूं ही छोड़ दिया गया. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि उस समय 70 एंबुलेंस खरीदे गए थे लेकिन 30 एंबुलेंस ही उपयोग में लाए गए.
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2. दरभंगा के डीएमसीएच के आसपास कई एंबुलेंस ऐसे ही सांसद और विधायक निधि से खरीदे जाने के बाद बेकार पड़े हैं. इनमें से ज्यादातर एंबुलेंस लाइफ सपोर्ट सिस्टम के साथ है. लेकिन इन एंबुलेंसों को देखने वाला कोई नहीं है. स्वास्थ्य विभाग और डीएमसीएच प्रशासन की ओर से इन एंबुलेंस को चलाने के लिए ड्राइवर तक की व्यवस्था नहीं की गई है. कोरोना महामारी जैसे जरूरत के समय में ये एंबुलेंस किसी मरीज के काम नहीं आ रहा है. खासकर तब जब कोविड-19 से लोग घर और अस्पताल के बीच लाइफ सपोर्ट सिस्टम के बगैर दम तोड़ रहे हैं.
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3. इन सब के बीच केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे पर एक ही एंबुलेंस को 4 बार उद्घाटन करने का आरोप लगा. बताया जा रहा है कि एंबुलेंस खरीदने के बाद इसे चालने के लिए ड्राइवर और रखरखाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई. इस वजह से एक ही एंबुलेंस को बार-बार नए तरीक से उद्घाटन कर सिर्फ वाहवाही लूटी गई.
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4. कोरोना महामारी के समय राज्य के कई जिलों में पीएम केयर्स फंड से 207 वेंटीलेटर्स दिए गए. लेकिन ये वेंटीलेटर भी बेकार पड़ें हैं. अस्पताल प्रशासन की ओर से कहा जाता है कि इसको ऑपरेट करने के लिए तकनीशियन की कमी है, जिस कारण से ये पड़ा हुआ है. वहीं, बिना वेंटीलेटर के राज्य में कई मरीज दम तोड़ रहे हैं.
5. एक बार फिर बिहार सरकार ने बिहार विधानमंडल के तमाम सदस्यों के जनप्रतिनिधि कोष से 22 करोड़ रुपये स्वास्थ्य विभाग को देने का निश्चय किया है. इन रुपयों से स्वास्थ्य विभाग मरीजों के इलाज के लिए कई उपकरण खरीद करेगा, लेकिन एक बार फिर से इस बात की चर्चा है कि जो उपकरण या एंबुलेंस खरीदे जाएंगे उसकी देखरेख और रखरखाव की जिम्मेदारी किसकी होगी.
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स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर लगातार सरकार की किरकिरी
राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति को लेकर विपक्ष लगातार सरकार को घेर रहा है. कांग्रेस और राजद नेता लगातार सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस और राजद ने आरोप लगाया है कि सरकार इस कोरोना काल में मरीजों का इलाज करवाने में विफल साबित हुई है. किसी भी आपदा के समय में सरकार लोगों की मदद नहीं कर पाती है.
"कोरोना काल में बिहार में पर्याप्त संख्या में एंबुलेंस की कमी ने कई कठिनाइयों को जन्म दिया. इसलिए कांग्रेस पार्टी ने यह निर्णय लिया है कि 21 मई को पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांध की पुण्यतिथी पर बिहार कांग्रेस के सभी सांसद, विधायक और विधान पार्षद अपने-अपने ऐच्छिक कोष से अपने कार्य क्षेत्र में 2-2 एंबुलेंस जो लाइफ सपोर्ट सिस्टम से युक्त होगा वो सरकार को देंगे. लेकिन बिहार की परिस्थितियां वैसी नहीं है कि हम एंबुलेंस देने चाहें और कल से शुरू हो जाए. एंबुलेंस को लेकर सरकार की पॉलिसी काफी चिंताजनक है. एंबुलेंस का मेनटेनेंस को कौन देखेगा, पेट्रोल डीजल का खर्चा कौन उठाएगा, ड्राइवर को उसकी सैलरी कौन देगा. इन सभी प्रावधानों का घोर अभाव है. इसलिए मैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आग्रह करना चाहता हुं कि जब कांग्रेस के लोग बिहार के विभिन्न अस्पतालों को लगभग 50 एंबुलेंस देना चाहते हैं तो इसके लिए आगे की क्या व्यवस्था होनी चाहिए, उस पर वो तत्काल निर्णय लें."-प्रेमचंद्र मिश्र, कांग्रेस नेता
"जनप्रतिनिधियों से जो एंबुलेंस और मेडिकल उपकरण मिलते हैं, उलसे रख-रखाव के लिए या उसके ऊपर कौन खर्च वहन करेगा, पेट्रोल कौन देगा, उसके ड्राइवर का खर्च कौन देगा और कहां पार्किंग किया जाएगा. इन सारी चीजों की ठोस पॉलिसी सरकार के पास नहीं है. इसी अभाव में एंबुलेंस कहीं धूल फांक रहा है. कई जगहों पर ये भी देखने को मिला है कि वेंटिलेटर की सुविधा है लेकिन ऑपरेटर नहीं होने के कारण उसे चालू नहीं किया गया है. मेडिकल उपकरण और एंबुलेंस की सुविधा रहते हुए भी लोगों की जान जा रही है और सरकार हाथ पर हाथ रखकर बैठी हुई है."- मृत्युंजय तिवारी, प्रवक्ता, राजद
ऐसे एंबुलेंस और उपकरणों के लिए नहीं है कोई पॉलिस
दरअसल बिहार में सांसद, विधायक या किसी जनप्रतिनिधि के ऐच्छिक कोष से मिले एंबुलेंस, वेंटिलेटर या अन्य किसी भी स्वास्थ्य उपकरण के रखरखाव और उनके परिचालन के लिए कोई पॉलिसी ही नहीं है. आमतौर पर यह जिम्मेदारी सिविल सर्जन और जिला पदाधिकारी के पास होती है, लेकिन परेशानी फिर भी वही होती है कि वो किस फंड से ऐसे वाहनों के लिए ड्राइवर रखें और ऐसे स्वास्थ उपकरणों के रखरखाव कराएं. सिर्फ यही नहीं, एंबुलेंस किस जगह खड़ी होगी और स्वास्थ्य उपकरण कहां रखे जाएंगे यह तक तय नहीं होता है. ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं है कि आखिर क्यों छपरा और दरभंगा में फुल लाइफ सपोर्ट सिस्टम के साथ सांसद और जनप्रतिनिधि कोष से मिले एंबुलेंस रखे-रखे खराब हो गए.
'स्वास्थ्य विभाग को रखना चाहिए ख्याल'
हालांकि इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बिहार के उपाध्यक्ष डॉ. अजय कुमार कहते हैं कि जनप्रतिनिधियों से जो भी स्वास्थ्य उपकरण और अन्य कोई भी चीज उनके कोष से दी जाती है, उसका पूरा ख्याल स्वास्थ्य विभाग को रखना चाहिए. स्वास्थ्य विभाग को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे विधायक और सांसदों के कोष से मिले एंबुलेंस, वेंटिलेटर और अन्य स्वास्थ्य उपकरण का पूरा-पूरा उपयोग जनता के हित में हो सके.