पटना: लॉकडाउन का असर हर किसी पर देखने को मिल रहा है. हर कोई इससे आर्थिक और मानसिक स्तर से जूझ रहा है. वहीं, एक तबका ऐसा भी है, जिससे उच्च मध्यम वर्गीय परिवार और उच्च श्रेणी के लोगों की जरूरतें जुड़ी हैं. जिनपर ऐसे लोगों के घर के साथ-साथ रसोई तक निर्भर होती है. जी, हम बात कर रहे हैं घर में काम करने वाले नौकर या हेल्पर की. इसके साथ ही बाल श्रम को लेकर ईटीवी भारत ने विभागीय मंत्री और अधिकारियों से जानकारी जुटाई.
कोरोना महामारी के दौरान लागू हुए लॉकडाउन में सबकुछ बंद नजर आया. तो वहीं, संक्रमण के दौर में घर में काम करने वाले नौकर भी अपने गांव चले गए. एक तो मालिक को कोरोना संक्रमण का खतरा था. दूसरा, आर्थिक तंगी. जो कुछ बचे उनके ऊपर काम का अतिरिक्त दबाव पड़ा या नहीं. इस बारे में आपको बताएंगे. लेकिन इन कामगारों पर कोरोना के चलते दुखों का पहाड़ आन पड़ा.
ऐसे छिना काम
- होटल और रेस्टोरेंट में काम करने वाले नौकर, इनके बंद होते ही घर चले गये.
- फुटपाथ या चौपाटी पर लगने वाले ठेले पर बर्तन मांजने या साफ-सफाई करने वालों का काम छिन गया.
- घरों में काम करने वाले नौकरों को संक्रमण के डर से मालिक ने मना कर दिया.बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग
नौकर या बाल उत्पीड़न की शिकायतों पर हमने जब बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. प्रमिला कुमारी प्रजापति ने बताया कि लॉक डाउन के दौरान घरेलू नौकरों का काम बढ़ गया. लेकिन इस दौरान देखने को भी मिल रहा है कि ज्यादातर घर के पुरुष भी इस लॉकडाउन में अपने परिवार और नौकरों का सहयोग कर रहे हैं. सारा काम सिर्फ नौकरों के ऊपर नहीं छोड़ दिया गया.
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नहीं मिली शिकायत- प्रमिला
साथ ही उनका कहना है कि ज्यादातर परिवारों ने इस लॉकडाउन के दौरान बाहर से आने वाले नौकरों को छुट्टी दे दी. क्योंकि वे कहां से आते हैं और किस तरह से आते हैं उन्हें भी लॉकडाउन के दौरान आने में कठिनाइयां हो रही थीं. साथ ही ज्यादातर परिवार वालों ने सभी नौकरों का पेमेंट भी दे दिया है. अभी तक ऐसी कोई शिकायत हमारे पास नहीं आई है.

'शेल्टर होम भेजे जाते हैं बच्चे'
प्रमिला ने बताया कि निम्न वर्गीय परिवार, जो आर्थिक तंगी की वजह से छोटे बच्चों को काम पर लगा देते हैं. हमें जैसे ही उनकी शिकायतें मिलती है. हम उन्हें मुक्त करवाकर, उनकी पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ उनके रहने खाने-पीने की व्यवस्था भी करते हैं. जो भी दोषी पाए जाते हैं उनके खिलाफ जल्द से जल्द करवाई भी होती है. बच्चों को शेल्टर होम भेज दिया जाता है. लॉकडाउन के दौरान बाल उत्पीड़न की कोई शिकायत नहीं मिली है.
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क्या कहते हैं श्रम संसाधन मंत्री
बिहार सरकार के श्रम संसाधन मंत्री विजय सिन्हा ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान घरेलू नौकरों के ऊपर उत्पीड़न का मामला सामने नहीं आया है. अगर इसकी जानकारी उन्हें या विभाग को मिलती है, तो सभी जिलों में प्रखंड में पदाधिकारी होते हैं. वह निश्चित रूप से ऐसे लोगों पर कार्रवाई करेंगे. उत्पीड़न कहीं न हो, इसका पूरा ध्यान रखा जाता है.
उन्होंने बताया कि लॉक डाउन के दौरान जानकारी देने वाले और जिनके ऊपर अत्याचार हो रहा है. वह भी घर में कैद हैं. शायद यही वजह है कि अब तक एक भी मामला सामने नहीं आया है, जो भी परिवार दोषी पाए जाएंगे. कानून के तहत उन पर करवाई की होगी. वहीं पुलिस मुख्यालय की मानें, तो अब तक घरेलू नौकरों के उत्पीड़न से जुड़ा मामला बिहार के किसी भी थाने में दर्ज नहीं करवाया गया है.