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नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार की रैकिंग सबसे खराब, स्वास्थ्य व्यवस्था क्यों है बदहाल

नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट के बाद नीतीश सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक बिहार 21 बड़े प्रदेशों की रैकिंग में 20वें पायदान पर खड़ा है.

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Published : Jun 26, 2019, 9:13 PM IST

Updated : Jun 26, 2019, 9:37 PM IST

पटना: नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट ने बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है. मुजफ्फरपुर में एईएस से कई बच्चों की मौत को लेकर फजीहत झेल रही बिहार सरकार के लिये नीति आयोग की आयी रिपोर्ट ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. सवाल ये कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था की ऐसी हालत क्यों है.

नीति आयोग ने विश्व बैंक, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर 21 बड़े राज्यों की रैंकिंग जारी की है. इसमें सबसे पहले नंबर पर केरल है, जबकि सबसे आखरी नंबर पर उत्तर प्रदेश और बिहार हैं. उत्तर प्रदेश से ठीक ऊपर 20वें नंबर पर बिहार है. वहीं, रिपोर्ट का ऐसे समय में आना, जब बिहार में एईएस बीमारी के चलते तक 186 बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं. ऐसे में इस रिपोर्ट की चर्चा बहुत जरूरी है. एक नजर नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट पर डालते हैं.

नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट
राज्य की रैंक 2015-16 में स्कोर 2017-18 में स्कोर
01.केरल 76.55 74.01
02.आंध्र प्रदेश 60.16 65.13
03.महाराष्ट्र 61.07 63.99
04.गुजरात 63.52 61.99
05.पंजाब 65.52 63.01
06.हिमाचल प्रदेश 61.20 62.41
07.जम्मू कश्मीर 60.35 62.37
08.कर्नाटक 58.70 61.14
09.तमिलनाडु 63.38 58.70
10.तेलंगाना 55.39 59.00
11.पश्चिम बंगाल 58.25 57.17
12.हरियाणा 46.97 53.51
13.छत्तीसगढ़ 52.02 53.36
14.झारखंड 45.33 51.33
15.असम 44.13 48.85
16.राजस्थान 36.79 43.10
17.उत्तराखंड 45.22 40.20
18.मध्य प्रदेश 40.09 38.39
19.उड़ीसा 39.43 35.97
20.बिहार 38.46 32.11
21.उत्तर प्रदेश 33.69

28.61


मुफ्फरपुर में एसकेएमसीएच हो, गया का एनएमसीएच या फिर पटना का पीएमसीएच, हर जगह स्थिति चिंताजनक है. इसलिए इस रिपोर्ट से कोई आश्चर्य तो नहीं होता.

सर्वेक्षण के बाद सामने आए आंकड़े
बिहार में पिछले 14 सालों से सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार के पास कोई जवाब नहीं है क्योंकि अगर वो चाहते तो बिहार में स्वास्थ्य की स्थिति इतनी बदतर नहीं होती. चाहे मेडिकल कॉलेजों की बात हो या फिर अस्पताल में दवाइयों के इंतजाम की बात या फिर डॉक्टरों की कमी की. इन सभी मोर्चे पर सरकार का स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह विफल साबित हुआ है. इन सभी मोर्चों पर जब नीति आयोग ने सर्वेक्षण किया, तो जाहिर तौर पर यह आंकड़े सामने आए हैं.

खास रिपोर्ट

विपक्ष का हमला
विपक्ष इस मामले को लेकर आक्रामक दिख रहा है. विपक्ष के प्रमुख नेता और प्रमुख विपक्षी दल के प्रधान महासचिव आलोक कुमार मेहता ने कहा कि आगामी विधानसभा सत्र में इस मुद्दे को विपक्ष पूरे जोर-शोर से उठाएगा. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री को को ये सब नहीं दिखाई दे रहा है. उन्हें तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए.

स्थिति ऐसी भी...
बिहार के 2019-20 के बजट में सरकार ने महज 9622.76 करोड़ रुपये का प्रावधान स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए किया है. मुजफ्फरपुर और गया के सरकारी अस्पताल में शिशु रोग के लिए पीजी की पढ़ाई उपलब्ध नहीं है. सिर्फ मुजफ्फरपुर, गया ही नहीं बल्कि बिहार के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है. अस्पतालों में दवा की भारी कमी है, साथ ही एंबुलेंस और अन्य जरूरी स्वास्थ्य उपकरणों की भी ज्यादातर अस्पतालों में व्यवस्था नहीं है. इसके साथ साथ नर्स कंपाउंडर समेत अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की भी अस्पतालों में किल्लत है.

बीजेपी का बयान
बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि नीति आयोग की रिपोर्ट को मैं नकार नहीं रहा हूं. बिहार में गरीबी है. बिहार की जनसंख्या ज्यादा है. यहां सरकारी अस्पतालों में लोग ज्यादा से ज्यादा जा रहे हैं क्योंकि लोगों का विश्वास बढ़ा है. लिहाजा, सरकारी अस्पतालों में इलाज में दिक्कतें आती हैं. हम और बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं.

पटना: नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट ने बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है. मुजफ्फरपुर में एईएस से कई बच्चों की मौत को लेकर फजीहत झेल रही बिहार सरकार के लिये नीति आयोग की आयी रिपोर्ट ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. सवाल ये कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था की ऐसी हालत क्यों है.

नीति आयोग ने विश्व बैंक, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर 21 बड़े राज्यों की रैंकिंग जारी की है. इसमें सबसे पहले नंबर पर केरल है, जबकि सबसे आखरी नंबर पर उत्तर प्रदेश और बिहार हैं. उत्तर प्रदेश से ठीक ऊपर 20वें नंबर पर बिहार है. वहीं, रिपोर्ट का ऐसे समय में आना, जब बिहार में एईएस बीमारी के चलते तक 186 बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं. ऐसे में इस रिपोर्ट की चर्चा बहुत जरूरी है. एक नजर नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट पर डालते हैं.

नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट
राज्य की रैंक 2015-16 में स्कोर 2017-18 में स्कोर
01.केरल 76.55 74.01
02.आंध्र प्रदेश 60.16 65.13
03.महाराष्ट्र 61.07 63.99
04.गुजरात 63.52 61.99
05.पंजाब 65.52 63.01
06.हिमाचल प्रदेश 61.20 62.41
07.जम्मू कश्मीर 60.35 62.37
08.कर्नाटक 58.70 61.14
09.तमिलनाडु 63.38 58.70
10.तेलंगाना 55.39 59.00
11.पश्चिम बंगाल 58.25 57.17
12.हरियाणा 46.97 53.51
13.छत्तीसगढ़ 52.02 53.36
14.झारखंड 45.33 51.33
15.असम 44.13 48.85
16.राजस्थान 36.79 43.10
17.उत्तराखंड 45.22 40.20
18.मध्य प्रदेश 40.09 38.39
19.उड़ीसा 39.43 35.97
20.बिहार 38.46 32.11
21.उत्तर प्रदेश 33.69

28.61


मुफ्फरपुर में एसकेएमसीएच हो, गया का एनएमसीएच या फिर पटना का पीएमसीएच, हर जगह स्थिति चिंताजनक है. इसलिए इस रिपोर्ट से कोई आश्चर्य तो नहीं होता.

सर्वेक्षण के बाद सामने आए आंकड़े
बिहार में पिछले 14 सालों से सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार के पास कोई जवाब नहीं है क्योंकि अगर वो चाहते तो बिहार में स्वास्थ्य की स्थिति इतनी बदतर नहीं होती. चाहे मेडिकल कॉलेजों की बात हो या फिर अस्पताल में दवाइयों के इंतजाम की बात या फिर डॉक्टरों की कमी की. इन सभी मोर्चे पर सरकार का स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह विफल साबित हुआ है. इन सभी मोर्चों पर जब नीति आयोग ने सर्वेक्षण किया, तो जाहिर तौर पर यह आंकड़े सामने आए हैं.

खास रिपोर्ट

विपक्ष का हमला
विपक्ष इस मामले को लेकर आक्रामक दिख रहा है. विपक्ष के प्रमुख नेता और प्रमुख विपक्षी दल के प्रधान महासचिव आलोक कुमार मेहता ने कहा कि आगामी विधानसभा सत्र में इस मुद्दे को विपक्ष पूरे जोर-शोर से उठाएगा. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री को को ये सब नहीं दिखाई दे रहा है. उन्हें तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए.

स्थिति ऐसी भी...
बिहार के 2019-20 के बजट में सरकार ने महज 9622.76 करोड़ रुपये का प्रावधान स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए किया है. मुजफ्फरपुर और गया के सरकारी अस्पताल में शिशु रोग के लिए पीजी की पढ़ाई उपलब्ध नहीं है. सिर्फ मुजफ्फरपुर, गया ही नहीं बल्कि बिहार के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है. अस्पतालों में दवा की भारी कमी है, साथ ही एंबुलेंस और अन्य जरूरी स्वास्थ्य उपकरणों की भी ज्यादातर अस्पतालों में व्यवस्था नहीं है. इसके साथ साथ नर्स कंपाउंडर समेत अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की भी अस्पतालों में किल्लत है.

बीजेपी का बयान
बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि नीति आयोग की रिपोर्ट को मैं नकार नहीं रहा हूं. बिहार में गरीबी है. बिहार की जनसंख्या ज्यादा है. यहां सरकारी अस्पतालों में लोग ज्यादा से ज्यादा जा रहे हैं क्योंकि लोगों का विश्वास बढ़ा है. लिहाजा, सरकारी अस्पतालों में इलाज में दिक्कतें आती हैं. हम और बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं.

Intro:मुजफ्फरपुर में एइएस से कई बच्चों की मौत को लेकर फजीहत झेल रही बिहार सरकार के लिये नीति आयोग की ताजातरीन रिपोर्ट ने जैसे कोढ़ में खाज का काम किया है। नीति आयोग के हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट ने बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है। लेकिन बड़ा सवाल ये कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था की ऐसी हालत क्यों है। पेश ही खास रिपोर्ट।


Body:बिहार स्वास्थ्य के मामलों में फिसड्डी राज्यों में शामिल है। नीति आयोग ने विश्व बैंक और केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर 21 बड़े राज्यों की रैंकिंग जारी की है जिनमें सबसे पहले नंबर पर केरल है जबकि सबसे आखरी नंबर पर उत्तर प्रदेश और बिहार उत्तर प्रदेश से ठीक पहले 20वें नंबर पर है। स्वास्थ्य के मामले में बिहार फिसड्डी साबित हुआ है। इस रिपोर्ट की चर्चा इसलिए जरूरी है क्योंकि यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब बिहार में चमकी बुखार से बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हो चुकी है। मुजफ्फरपुर में एसकेएमसीएच हो या फिर गया का एनएमसीएच या फिर पटना का पीएमसीएच, हर जगह स्थिति चिंताजनक है, इसलिए इस रिपोर्ट से कोई आश्चर्य तो नहीं होता। बिहार में पिछले 14 सालों से सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार के पास कोई जवाब नहीं है क्योंकि अगर वह चाहते तो बिहार में स्वास्थ्य की स्थिति इतनी बदतर नहीं होती। चाहे मेडिकल कॉलेजों की बात हो या फिर अस्पताल में दवाइयों के इंतजाम की बात या फिर डॉक्टरों की कमी। इन सभी मोर्चे पर सरकार का स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह विफल साबित हुआ है और इन सभी मोर्चों पर जब नीति आयोग ने सर्वेक्षण किया तो जाहिर तौर पर यह आंकड़े सामने आए।
विपक्ष इस मामले को लेकर जबरदस्त आक्रामक दिख रहा है। विपक्ष के प्रमुख नेता और प्रमुख विपक्षी दल के प्रधान महासचिव आलोक कुमार मेहता ने कहा कि आगामी विधानसभा सत्र में यह मामला विपक्ष पूरे जोर-शोर से उठाएगा। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री को होने दिखता के आधार पर तुरंत इस्तीफा देना चाहिए।


Conclusion:बिहार के 2019-20 के बजट में भी सरकार ने महज 9622.76 करोड़ का प्रावधान स्वास्थ्य के लिए किया है। मुजफ्फरपुर और गया जैसे वाली सरकार अस्पताल में शिशु रोग के लिए पीजी की पढ़ाई उपलब्ध नहीं है। सिर्फ मुजफ्फरपुर, गया ही नहीं बल्कि बिहार के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है। अस्पतालों में दवा की भारी कमी है साथी एंबुलेंस और अन्य जरूरी स्वास्थ्य उपकरणों की भी ज्यादातर अस्पतालों में व्यवस्था नहीं है इसके साथ साथ नर्स कंपाउंडर समेत अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की भी अस्पतालों में किल्लत है।

बाइट आलोक कुमार मेहता प्रधान महासचिव, राजद
प्रेम रंजन पटेल बीजेपी नेता
पीटीसी
Last Updated : Jun 26, 2019, 9:37 PM IST
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