पटनाः 'बिहार में का बा' फेम लोक गायिका नेहा सिंह राठौर (Bihar Mein Ka Ba Fame Neha Singh Rathore) अपनी गीतों को लेकर चर्चा में रहती हैं. समाज, संस्कृति और राजनीति सहित अन्य मुद्दों पर वो गीत गाती हैं. इसी कड़ी में नेहा सिंह राठौर ने एक और गीत गाया है. यह गीत सीधे तौर पर राजनीति से नहीं जुड़ी है, बल्कि नेहा ने इसे किसानों के लिए गाया है. गीत के माध्यम से किसानों के दर्द (Neha Singh Rathore Kisan Song) और परेशानियों को दिखाने की कोशिश है.
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किसानों पर नेहा की गीत के बोल है 'भादो, आषाढ़ चाहे जेठ के घाम केहू बूझे नाही..... बारहो महीना नाही कारे आराम केहू बूझे नाहीं.... खेतवा के रोपनी किसनवां करे ला हो... खून पसीना से माटी के सींचे ला हो...बद से बदतर बा हो पानी-बिजली के झाम हो.... केहू बूझे नाही हो..... बारहो महीना नाही करे आराम केहू बेझे नाही...'
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आगे कि पंक्तियां इस प्रकार हैं 'घरवा दुआर छोड़ सीवाने में सुते ला हो.. रात भर जागे ला हो.... फसल के नाही मिले नाही उचित दाम.... केहू बूझे नाही हो....मंत्री विधायक नेता डिलिंग मारे लें हो.. कुर्सी पर बैठ के कुर्सी तोड़ेला हो...गूंग बहिर होई जावें जब पड़े काम.... केहू बूझे नाही..... भाहरो महीना नाही करे आराम केहू बूझे नाही..'.
नेहा सिंह राठौर का यह नया गीत भी पॉलिकिल सटायर ही है. उन्होंने किसान गीत में भी मंत्री, विधायक या कहें कि सरकार को निशाने पर लिया है. बिजली और सिंचाई को लेकर भी सवाल हैं. किसानों को लेकर सरकार की नीति का जिक्र है. गीत में उन्होंने मंत्री-विधायक-नेता को डिलिंगबाज बताया है और कुर्सी तोड़ने वाला बताया है.
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