पटना: इन दिनों पूरे प्रदेश में नवरात्र (Navratri 2021) की धूम देखी जा रही है. दुर्गा पूजा का नाम सुनते ही मन में बंगाली समुदाय से जुड़ी हुई दुर्गा पूजा की तस्वीरें सामने आ जाती हैं. राजधानी पटना में भी अब धीरे-धीरे बंगाली विधि से मां दुर्गा की पूजा करने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. पटना में कुल 12 स्थानों पर बंगाली रीति रिवाज के साथ मां दुर्गा की पूजा की जाती है. इनमें से लंगर टोली इलाके में स्थापित बंगाली अखाड़ा (Bangali Akhada Of Patna) सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है, इसका इतिहास इसे और प्रसिद्धि दिलाता है.
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पटना के लंगर टोली इलाके में स्थापित बंगाली अखाड़े में 1893 से विधिवत बंगाली विधि से मां दुर्गा की पूजा की शुरुआत की गई थी. संक्रमण के स्तर में थोड़ी कमी आने के बाद एक बार फिर से पटना के चौक चौराहों पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जा रही है.
अगर हम बात करें बंगाली रीति रिवाज से मां दुर्गा की विशेष पूजा की, तो पटना के बंगाली अखाड़ा के कोषाध्यक्ष समीर रॉय बताते हैं कि आज जहां बंगाली अखाड़ा है, वहां 1874 में लोग अखाड़ा खेला करते थे. इसी बहाने आजादी के दीवाने स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति यहां बैठकर बनाया करते थे. हालांकि उस दौरान अंग्रेजों की हुकूमत थी.
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"अखाड़ा खेलने वाले लोगों पर जब अंग्रेजी पुलिसिया दबाव बढ़ने लगा तो 1893 में यहां अखाड़ा खेलने वाले बंगाली लोगों ने दुर्गा पूजा की स्थापना की और आज पिछले 129 सालों से लगातार बंगाली पद्धति से यहां मां दुर्गा की पूजा होती चली आ रही है."- समीर रॉय, कोषाध्यक्ष,बंगाली अखाड़ा
बंगाली अखाड़ा के कोषाध्यक्ष समीर रॉय बताते हैं की बंगाली पूजा के अनुसार बंगाली अखाड़ा में पंचमी के दिन कलश स्थापन होती है. सप्तमी को भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में खिचड़ी का वितरण किया जाता है तो वहीं अष्टमी और नवमी को भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में पुलाव का वितरण होता है. दशमी को विसर्जन और सिंदूर खेला की परंपरा वर्षों से चली आ रही है.
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दरअसल, बंगाली रीति रिवाज के अनुसार विवाहित महिलाएं मां दुर्गा की विदाई के समय सिंदूर खेला करती हैं. इस रिवाज का निर्वाह वर्षों से होता आ रहा है. समीर बताते हैं कि पूरे पटना में कुल 12 जगह बंगाली पद्धति से मां दुर्गा की पूजा की जाती है, जिसमें पहला स्थान मारूफगंज है तो दूसरा स्थान बंगाली अखाड़े का है.
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वहीं तीसरे स्थान पर है यारपुर, चौथा देवेंद्र कुटीर, पांचवा आर ब्लॉक चौराहा, छठा पीडब्ल्यूडी और सातवां सैदपुर इलाके का है. इसके साथ ही अन्य कई स्थानों पर भी बंगाली रीति रिवाज के साथ मां दुर्गा की पूजा की जा रही है. समीर बताते हैं कि इस वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान बंगाली अखाड़ा में आने वाले भक्तजनों के लिए पंडाल में एयर सैनिटाइजेशन की व्यवस्था की गई है. बंगाली अखाड़ा पूजा पंडाल में आने वाले भक्तजनों को 5 फीट दूर से ही मां दुर्गा के दर्शन करने के प्रबंध किए गए हैं.
पूजा के दौरान जो भक्त मां दुर्गा की प्रतिमा पर पुष्पांजलि करना चाहते हैं, उन्हें अपने साथ ही इस वर्ष फूल माला लाने को कहा गया है. संक्रमण को देखते हुए इस वर्ष थोड़ी एहतियात बरती जा रही है.
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वहीं पिछले आठ नौ सालों से पटना के बंगाली अखाड़ा, बंगाल के विष्णुपुर से चलकर पहुंचने वाले पंडित गुरदास कहते हैं कि पटना के बंगाली अखाड़ा में दुर्गा पूजा का खास महत्व है. इसकी ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है.
पहले यहां पूजा करवाने के लिए बंगाल से चलकर हमारे गुरुजी तारा पदों भट्टाचार्य आया करते थे. लेकिन उनके देहांत के बाद गुरुजी के आदेश मिलने के बाद अब गुरदास बंगाल से चलकर हर वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान बंगाली अखाड़ा पहुंचते हैं और यहां के पुजारियों के साथ सम्मिलित होकर, वह भी मां का विधि विधान से पूजा और पाठ करते हैं.- गुरुदास बल्लभ,पंडित
अखाड़े में मां की प्रतिमा बनाने का भी अपना गौरवमयी इतिहास रहा है. शिल्पकार संजीव पॉल कहते हैं कि उनके दादा धर्मपाल के बाद उनके पिता सुनील पाल और उसके बाद वो बंगाली अखाड़े में स्थापित होने वाली मां दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण करते आ रहे हैं.
पिता का हाथ पकड़कर मैं पटना के बंगाली अखाड़ा पहुंचा था और उन्हीं के साथ मैंने बांग्ला मूर्ति जिसमें देवी की भावनाओं की कला भरी जाती हैं उसका निर्माण करना सीखा.- संजीव पाल, शिल्पकार
पटना के लंगरटोली स्थित बंगाली अखाड़ा में मनाए जाने वाले दुर्गा पूजा की कई विशेषताएं हैं. कहा जाता है कि यहां मां दुर्गा की प्रतिमा को काट-छांट किए बिना ही साड़ी पहनाई जाती है. सप्तमी और नवमी तक आरती के समय धुनुची नृत्य यहां आने वाले लोगों के लिए खास आकर्षण होता है. बड़ी पटन देवी के बाद बंगाली अखाड़े का भी काफी महत्व है. नवरात्रि के महीने में तो बंगाली अखाड़ा आकर्षण का केंद्र बना रहता है.