पटना: मोहर्रम त्योहार को लेकर मुस्लिम समुदाय के लोग सादगीपूर्ण तरीके से मना रहे हैं. इस बार सरकार की गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए सोशल डिस्टेसिंग का पालन भी किया जा रहा है. वहीं मनेर में मोहर्रम खास होता है. इस पर्व पर हिंदू-मुस्लिम एक साथ मिलकर धूमधाम से ताजिया और जुलूस निकालते हैं और आपसी भाईचारे का संदेश देते हैं. लेकिन इस बार मोहर्रम पर्व के मौके पर इमामबाड़े पर सन्नाटा पसरा हुआ है. कोरोना महामारी के कारण सरकार ने ताजिया और जुलूस पर रोक लगा दी है.
हसन हुसैन की शहादत की याद
बता दें कि मोहर्रम ईमाम हसन हुसैन की शहादत की याद में मनाते हैं. जो इस्लाम धर्म के लिए कुर्बान हो गए थे. इस्लामिक साल के पहले महीने मोहर्रम पर्व पर शिया और सुन्नी समुदायों के लोग अपने -अपने तरीके से मनाते हैं. मोहर्रम के मौके पर दोनों समुदाय की ओर से हाथी और घोड़ों के साथ ताजिया जुलूस तो निकाला ही जाता हैं. साथ ही सामाजिक एकता और भाईचारे का पैगाम देते हुए मुस्लिम समुदाय के लोग हिंदू समाज के लोगों को खास हरी रंग की पगड़ी देते हैं. जिसकी परंपरा लगभग 90 साल से चली आ रही हैं. हालांकि ऐसा पहली बार हुआ है कि इस बार मोहर्रम के पर्व पर ताजिया नहीं निकलेगी. कोरोना महामारी को देखते हुए सरकार ने इस पर रोक लगा रखी है.
इमामबाड़े पर पसरा सन्नाटा
मोहर्रम पर इमामबाड़ा गुलजार रहता है. मुस्लिम समुदाय के लोग ताजिया रख इमामबाड़े को सजाते हैं. वहां हर शाम महफिल मिलाद और शर्बत फातिहा कर लोगों को बांटते हैं, लेकिन इस साल कोरोना को लेकर इस बार कोई भी विशेष प्रकार का कार्यक्रम नहीं किया जा रहा है. जिसकी वजह से इमामबाड़ों पर सन्नाटा पसरा दिखाई दे रहा है. वहीं मखदूमिया मोहर्रम कमेटी के सदस्य रिजवान खान ने बताया कि मोहर्रम का पर्व मुस्लिम समुदाय के लिए पावन पर्व के रूप में मनाया जाता है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब बिल्कुल सादगी तरीके से मनाया जा रहा है. कोरोना महामारी के चलते मोहर्रम पर्व पर ताजिया और जुलूस नहीं निकाला जाएगा.