ETV Bharat / state

तब बिहार यात्रा पर आए प्रेमचंद ने कहा था- 'पटना के श्रोताओं जैसी दरियादिली मैंने कहीं नहीं देखी'

author img

By

Published : Jul 31, 2022, 3:52 PM IST

Updated : Jul 31, 2022, 6:44 PM IST

मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म (Munshi Premchand Birth Anniversary) आज ही के दिन सन 1880 में हुआ था. हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार के नामों की सूची में उनका नाम प्रमुख है. आज उनके जन्मदिवस पर पटना कॉलेज के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर तरूण कुमार उनके पटना आने के कुछ दिलचस्प किस्से बताए हैं. पढ़ें पूरी खबर..

मुंशी प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद

पटना: आज मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन (Munshi Premchand Birthday) है. 31 जुलाई 1880 को प्रेमचंद्र का जन्म हुआ था. हीरा और मोती बैल की अमर कहानी हो या फिर ईदगाह का हमीद, गोदान हो या फिर नमक का दारोगा. केवल कहानियों के शीर्षक का नाम लेते ही जेहन में जिसका नाम दौड़ जाता है, वह नाम है मुंशी प्रेमचंद का. हिंदी साहित्य में वैसे तो एक से बढ़कर एक कई महान लेखक हुए लेकिन कथा सम्राट की उपलब्धि अगर किसी लेखक को मिली तो वह केवल मुंशी प्रेमचंद थे. आज हम आपको धनपत राय के बिहार आने की कहानी बताएंगे.

ये भी पढ़ें-जब मुंशी प्रेमचंद ने अपने कमरे में लगाई पत्नी की फोटो, फिर हुई बहस, पढ़िए किस्सा

प्रेमचंद्र की बिहार यात्रा: बहुत कम लोग जानते हैं कि मुंशी प्रेमचंद पटना भी आए थे और तब उन्होंने अपने संबोधन में कहा था कि पटना के श्रोताओं को देखकर मन खुश हो गया. यहां के श्रोता बहुत प्रबुद्ध हैं. मुंशी प्रेमचंद के पटना आने और उनके व्याख्यान को लेकर काफी रिसर्च कर चुके पटना कॉलेज के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर तरुण कुमार कहते हैं कि मुंशी प्रेमचंद जितने बड़े लेखक थे, उतने ही बड़े सादगी की मूर्ति भी थे. मुंशी प्रेमचंद 22 नवंबर 1931 को पटना कॉलेज में आए थे. तब उन्हें कॉलेज के अंदर स्थित जिम्नेजियम हॉल में पटना कॉलेज की हिंदी साहित्य परिषद की तरफ से आयोजित किए गए एक प्रोग्राम में आमंत्रित किया गया था.

पटना कॉलेज आए थे मुंशी जी: मुंशी प्रेमचंद जब इस कॉलेज में अपना व्याख्यान देने आए थे उन्हीं दिनों में इस कॉलेज में हिंदी के मूर्धन्य लेखक रामधारी सिंह दिनकर और कलेक्टर सिंह केसरी अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. मुंशी प्रेमचंद के पटना आने को लेकर काफी रिसर्च कर चुके पटना कॉलेज के हिंदी विभाग के एचओडी प्रोफेसर तरुण कुमार कहते हैं, मुंशी जी जितनी ही उच्च कोटि के लेखक थे, उससे ज्यादा वह सादगी की प्रतिमूर्ति भी थे. प्रोफेसर तरुण बताते हैं कि मुंशी प्रेमचंद 22 नवंबर 1931 को पटना कॉलेज में आए थे. उस दिन रविवार था और शाम को 6:45 बजे के करीब 1921 में बने जिम्नेशियम हॉल में व्याख्यान था.

1929 में व्याख्यान देने आए थे प्रेमचंद्र: प्रोफेसर तरुण बताते हैं कि पटना कॉलेज के हिंदी साहित्य परिषद की स्थापना 1929 में हुई थी. उस दौरान के हिंदी साहित्य के छात्रों ने मुंशी प्रेमचंद को आमंत्रित किया था. जिसके बाद पहली बार और संभवत अंतिम बार मुंशी प्रेमचंद पटना आए थे. प्रोफेसर तरुणी के अनुसार मुंशी जी का जब व्याख्यान चल रहा था, तब हॉल की क्षमता बहुत कम थी. सौ डेढ़ सौ के करीब लोग उसमें आ सकते थे, लेकिन बाहर भी श्रोताओं की भीड़ लगी हुई थी. अपने संबोधन के दरमियां ही मुंशी प्रेमचंद ने कहा था कि यूपी में भी मीटिंग होती है लेकिन वहां ज्यादा से ज्यादा 100-200 लोग ही होते हैं, उन्होंने कहा था कि जैसी दरियादिली मैंने बिहार के लोगों में देखी वैसी दरियादिली हमने कहीं नहीं देखी.

दिलचस्प है पटना आने की कहानी: प्रोफेसर तरुण कहते हैं कि मुंशी प्रेमचंद की पटना आने की कहानी और भी दिलचस्प है. वह कहते हैं कि मुंशी प्रेमचंद 21 नवंबर 1931 को ही पटना आ गए थे. उस दिन शनिवार था. उनको लाने के लिए 2-4 छात्र गए थे. उन्होंने मुंशी प्रेमचंद को कभी देखा भी नहीं था. जिस ट्रेन से मुंशी प्रेमचंद आने वाले थे उस टाइम में छात्रों ने पटना रेलवे स्टेशन पर छानबीन की लेकिन वह नहीं दिखे. इसके बाद छात्र वहां से निराश होकर लौट आए. अगले दिन सुबह छात्रों को लगा कि हमने इतना बड़ा आयोजन ठान लिया है और अगर अब मुंशी प्रेमचंद नहीं आएंगे तो बहुत जगहंसाई होगी. उन छात्रों ने सोचा कि सुबह फिर चलते हैं. बनारस से उस समय ट्रेन आती थी, हो सकता है कि वह बनारस वाली ट्रेन से आएं.

जंक्शन के मुशाफिर खाने में बिताई थी रात: इधर, मुंशी जी एक दिन पहले ही पंजाब मेल से रात में 8 बजे पटना आ चुके थे. मुंशी जी ने अपनी रात पटना जंक्शन के मुसाफिर खाने में ही गुजार दिया. अगले दिन करीब ढ़ाई बजे के करीब एक ट्रेन लखनऊ की तरफ जा रही थी. तब मुंशी जी ने सोचा कि जब पटना में उनको जानने वाला ही कोई नहीं है तो बेहतर होगा कि वह लखनऊ क्यों ना लौट जाएं. फिर मुंशी जी ने सोचा कि नहीं यह नौजवान लोग हैं, उनका दिल टूट जाएगा. थोड़ा इंतजार कर लेता हूं.

सुबह छात्र फिर पटना रेलवे स्टेशन पर गए. जब काफी खोजबीन के बाद छात्र थक गए तो एक छात्र उनको खोजने के लिए संयोगवश मुसाफिर खाने की तरफ बढ़े, तभी छात्रों ने देखा कि एक आदमी हाथ में लोटा लिए हुए है और कुली उनका सामान लिए हुए है. कुली उनसे पूछता है कि आखिर कहां चले तो प्रेमचंद कुछ नहीं बता पा रहे थे कि उनको जाना कहां है? तभी वह छात्र उनके पास पहुंचे और उन्होंने पूछा है कि आप प्रेमचंद हैं? आप लखनऊ से आए हैं? जैसे ही उस आदमी ने हां कहा. तब जाकर लड़कों की जान में जान आई.

प्रोफेसर बताते हैं कि तब मुंशी जी ने लड़कों से कहा कि जब मैं तुम्हें नहीं जान रहा था, तूम मुझे नहीं पहचान रहे थे, तो तुम मुझे प्रेमचंद- प्रेमचंद कह के बुला लेते, क्या मैं उससे छोटा हो जाता? आयोजकों ने मुंशी जी से कहा कि आप कहां रहना पसंद करेंगे क्योंकि लोग आपको लेकर उतावले हैं. तब मुंशी जी ने कहा कि मैं कहीं नहीं जाऊंगा. तुम छात्र हो. तुमने मुझे बुलाया है. तुम्हारे साथ रहूंगा. प्रोफेसर तरुण बताते हैं कि रविवार को मुंशी प्रेमचंद पटना म्यूजियम भी गए थे और जब उनको म्यूजियम में बिहार की खास चीजें दिखाई पड़ी तो उनको अलग से आनंद आया.

ये भी पढ़ें-Birth Anniversary : जामिया कुलपति के आग्रह पर मुंशी प्रेमचंद ने की 'कफन' की रचना, जानें उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें

पटना: आज मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन (Munshi Premchand Birthday) है. 31 जुलाई 1880 को प्रेमचंद्र का जन्म हुआ था. हीरा और मोती बैल की अमर कहानी हो या फिर ईदगाह का हमीद, गोदान हो या फिर नमक का दारोगा. केवल कहानियों के शीर्षक का नाम लेते ही जेहन में जिसका नाम दौड़ जाता है, वह नाम है मुंशी प्रेमचंद का. हिंदी साहित्य में वैसे तो एक से बढ़कर एक कई महान लेखक हुए लेकिन कथा सम्राट की उपलब्धि अगर किसी लेखक को मिली तो वह केवल मुंशी प्रेमचंद थे. आज हम आपको धनपत राय के बिहार आने की कहानी बताएंगे.

ये भी पढ़ें-जब मुंशी प्रेमचंद ने अपने कमरे में लगाई पत्नी की फोटो, फिर हुई बहस, पढ़िए किस्सा

प्रेमचंद्र की बिहार यात्रा: बहुत कम लोग जानते हैं कि मुंशी प्रेमचंद पटना भी आए थे और तब उन्होंने अपने संबोधन में कहा था कि पटना के श्रोताओं को देखकर मन खुश हो गया. यहां के श्रोता बहुत प्रबुद्ध हैं. मुंशी प्रेमचंद के पटना आने और उनके व्याख्यान को लेकर काफी रिसर्च कर चुके पटना कॉलेज के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर तरुण कुमार कहते हैं कि मुंशी प्रेमचंद जितने बड़े लेखक थे, उतने ही बड़े सादगी की मूर्ति भी थे. मुंशी प्रेमचंद 22 नवंबर 1931 को पटना कॉलेज में आए थे. तब उन्हें कॉलेज के अंदर स्थित जिम्नेजियम हॉल में पटना कॉलेज की हिंदी साहित्य परिषद की तरफ से आयोजित किए गए एक प्रोग्राम में आमंत्रित किया गया था.

पटना कॉलेज आए थे मुंशी जी: मुंशी प्रेमचंद जब इस कॉलेज में अपना व्याख्यान देने आए थे उन्हीं दिनों में इस कॉलेज में हिंदी के मूर्धन्य लेखक रामधारी सिंह दिनकर और कलेक्टर सिंह केसरी अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. मुंशी प्रेमचंद के पटना आने को लेकर काफी रिसर्च कर चुके पटना कॉलेज के हिंदी विभाग के एचओडी प्रोफेसर तरुण कुमार कहते हैं, मुंशी जी जितनी ही उच्च कोटि के लेखक थे, उससे ज्यादा वह सादगी की प्रतिमूर्ति भी थे. प्रोफेसर तरुण बताते हैं कि मुंशी प्रेमचंद 22 नवंबर 1931 को पटना कॉलेज में आए थे. उस दिन रविवार था और शाम को 6:45 बजे के करीब 1921 में बने जिम्नेशियम हॉल में व्याख्यान था.

1929 में व्याख्यान देने आए थे प्रेमचंद्र: प्रोफेसर तरुण बताते हैं कि पटना कॉलेज के हिंदी साहित्य परिषद की स्थापना 1929 में हुई थी. उस दौरान के हिंदी साहित्य के छात्रों ने मुंशी प्रेमचंद को आमंत्रित किया था. जिसके बाद पहली बार और संभवत अंतिम बार मुंशी प्रेमचंद पटना आए थे. प्रोफेसर तरुणी के अनुसार मुंशी जी का जब व्याख्यान चल रहा था, तब हॉल की क्षमता बहुत कम थी. सौ डेढ़ सौ के करीब लोग उसमें आ सकते थे, लेकिन बाहर भी श्रोताओं की भीड़ लगी हुई थी. अपने संबोधन के दरमियां ही मुंशी प्रेमचंद ने कहा था कि यूपी में भी मीटिंग होती है लेकिन वहां ज्यादा से ज्यादा 100-200 लोग ही होते हैं, उन्होंने कहा था कि जैसी दरियादिली मैंने बिहार के लोगों में देखी वैसी दरियादिली हमने कहीं नहीं देखी.

दिलचस्प है पटना आने की कहानी: प्रोफेसर तरुण कहते हैं कि मुंशी प्रेमचंद की पटना आने की कहानी और भी दिलचस्प है. वह कहते हैं कि मुंशी प्रेमचंद 21 नवंबर 1931 को ही पटना आ गए थे. उस दिन शनिवार था. उनको लाने के लिए 2-4 छात्र गए थे. उन्होंने मुंशी प्रेमचंद को कभी देखा भी नहीं था. जिस ट्रेन से मुंशी प्रेमचंद आने वाले थे उस टाइम में छात्रों ने पटना रेलवे स्टेशन पर छानबीन की लेकिन वह नहीं दिखे. इसके बाद छात्र वहां से निराश होकर लौट आए. अगले दिन सुबह छात्रों को लगा कि हमने इतना बड़ा आयोजन ठान लिया है और अगर अब मुंशी प्रेमचंद नहीं आएंगे तो बहुत जगहंसाई होगी. उन छात्रों ने सोचा कि सुबह फिर चलते हैं. बनारस से उस समय ट्रेन आती थी, हो सकता है कि वह बनारस वाली ट्रेन से आएं.

जंक्शन के मुशाफिर खाने में बिताई थी रात: इधर, मुंशी जी एक दिन पहले ही पंजाब मेल से रात में 8 बजे पटना आ चुके थे. मुंशी जी ने अपनी रात पटना जंक्शन के मुसाफिर खाने में ही गुजार दिया. अगले दिन करीब ढ़ाई बजे के करीब एक ट्रेन लखनऊ की तरफ जा रही थी. तब मुंशी जी ने सोचा कि जब पटना में उनको जानने वाला ही कोई नहीं है तो बेहतर होगा कि वह लखनऊ क्यों ना लौट जाएं. फिर मुंशी जी ने सोचा कि नहीं यह नौजवान लोग हैं, उनका दिल टूट जाएगा. थोड़ा इंतजार कर लेता हूं.

सुबह छात्र फिर पटना रेलवे स्टेशन पर गए. जब काफी खोजबीन के बाद छात्र थक गए तो एक छात्र उनको खोजने के लिए संयोगवश मुसाफिर खाने की तरफ बढ़े, तभी छात्रों ने देखा कि एक आदमी हाथ में लोटा लिए हुए है और कुली उनका सामान लिए हुए है. कुली उनसे पूछता है कि आखिर कहां चले तो प्रेमचंद कुछ नहीं बता पा रहे थे कि उनको जाना कहां है? तभी वह छात्र उनके पास पहुंचे और उन्होंने पूछा है कि आप प्रेमचंद हैं? आप लखनऊ से आए हैं? जैसे ही उस आदमी ने हां कहा. तब जाकर लड़कों की जान में जान आई.

प्रोफेसर बताते हैं कि तब मुंशी जी ने लड़कों से कहा कि जब मैं तुम्हें नहीं जान रहा था, तूम मुझे नहीं पहचान रहे थे, तो तुम मुझे प्रेमचंद- प्रेमचंद कह के बुला लेते, क्या मैं उससे छोटा हो जाता? आयोजकों ने मुंशी जी से कहा कि आप कहां रहना पसंद करेंगे क्योंकि लोग आपको लेकर उतावले हैं. तब मुंशी जी ने कहा कि मैं कहीं नहीं जाऊंगा. तुम छात्र हो. तुमने मुझे बुलाया है. तुम्हारे साथ रहूंगा. प्रोफेसर तरुण बताते हैं कि रविवार को मुंशी प्रेमचंद पटना म्यूजियम भी गए थे और जब उनको म्यूजियम में बिहार की खास चीजें दिखाई पड़ी तो उनको अलग से आनंद आया.

ये भी पढ़ें-Birth Anniversary : जामिया कुलपति के आग्रह पर मुंशी प्रेमचंद ने की 'कफन' की रचना, जानें उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें

Last Updated : Jul 31, 2022, 6:44 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.