पटना: चिकित्सकों के मुताबिक कोरोना का सबसे अधिक साइड इफेक्ट फेफड़े में ही देखने को मिल रहा है. ऐसे में होम आइसोलेशन में रह रहे मरीजों का नियमित मेडिकल चेकअप नहीं हो पा रहा. जब अचानक मरीज को सांस लेने में तकलीफ हो रही है तब उन्हें अस्पताल लाया जा रहा है. ऐसे में अधिकांश मरीजों की अस्पताल आने के बाद इलाज के दौरान मौत हो जा रही है.
होम आइसोलेशन ने बढ़ायी चिंता
डॉक्टर अरुण अजय ने कहा कि सभी सरकारी अस्पतालों में कोरोना के मरीजों के लिए पर्याप्त व्यवस्था है. और पीएमसीएच के कोविड-19 वार्ड में लगभग 75 फीसद बेड खाली है. उन्होंने कहा कि अगर कोई सिंप्टोमेटिक पेशेंट है तो वह होम आइसोलेशन के बजाय अस्पताल में आकर इलाज कराएं. यहां डॉक्टरों की टीम लगातार पेशेंट के हेल्थ कंडीशन की मॉनिटरिंग करते रहती है. जरूरत के अनुसार उनका मेडिकेशन किया जाता है. होम आइसोलेशन में रहने वाले कई पेशेंट अपने पास ऑक्सीजन सिलेंडर की सुविधा रखते हैं मगर यह पर्याप्त नहीं है.
कोरोना पॉजिटिव को फौरन अस्पताल जाने की सलाह
डॉक्टर के अनुसार घर में ऑक्सीजन सिलेंडर से उस फ्लो में ऑक्सीजन नहीं सप्लाई किया जा सकता जितना कि अस्पताल में हाई फ्लो मास्क और पाइप लाइन सिस्टम के माध्यम से किया जा सकता है. यहां 20 लीटर से 50 लीटर तक ऑक्सीजन की सप्लाई की जा सकती है. मरीज का ऑक्सीजन सैचुरेशन 90 के नीचे आता है तो उन्हें डॉक्टरों की देखरेख में रहने की आवश्यकता है और ऑक्सीजन सैचुरेशन 70 से नीचे जाता है तो यह कोविड-19 के मरीजों के लिए काफी खतरनाक स्थिति मानी जाती है.
हो जाइये सावधान!
फेफड़े में इंफेक्शन अगर बहुत ज्यादा हो जाय तो मरीजों की बात करते-करते मौत हो रही है और इसकी वजह है कि जब मरीज का ऑक्सीजन सैचुरेशन अचानक नीचे आ रहा है तो उसकी जान चली जा रही है. ऐसे में मरीजों को होम आइसोलेशन के बजाय अस्पताल में डॉक्टरों की देखरेख में रहने की जरूरत है और सरकार ने भी सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों और बड़े अस्पतालों में इसके लिए पर्याप्त व्यवस्था की है.