पटना: बिहार की राजधानी पटना स्थित पीएमसीएच में एक ऐसा मरीज भर्ती है, जो दुर्घटना में अपने दोनों पांव गंवाने (male dancer lost his leg in accident) के बाद एक अलग ही लड़ाई लड़ रहा है. दरअसल, अस्पताल के कागजों में गलती से पुरुष के बदले महिला के रूप में उसका नाम दर्ज हो गया है. अब वह खुद को कागजों में पुरुष साबित करने की लड़ाई लड़ रहा है. लगभग एक महीना पहले 14 दिसंबर को सीतामढ़ी के संतोष साह नाम के एक 35 वर्षीय डांसर का आरा के भदौर में एक्सीडेंट हो गया था. इसमें उसका दोनों पांव बुरी तरह से जख्मी हो गया था, जिसे बाद में काटना पड़ गया.
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लड़की की पोशाक में परफॉर्मेंस देने जाते वक्त हुआ था हादसाः संतोष ने बताया कि कोई प्रोग्राम करने जा रहे थे और इस दौरान वह प्रोग्राम के लिए महिला के कपड़ों में था. ऐसे में एक्सीडेंट के बाद जब लोगों ने उन्हें आरा सदर अस्पताल में एडमिट कराया तो एडमिट कराते समय उनका नाम खुशबू कुमारी लिख दिया गया. इसके बाद संतोष को स्थिति गंभीर होने पर पीएमसीएच रेफर किया गया और पीएमसीएच में भी इसी नाम से एडमिट किया गया और 20 दिसंबर को सर्जरी करके संतोष के घुटने के ऊपर से दोनों पैर काट दिए गए. इसके बाद से लगभग 1 महीने होने जा रहे हैं संतोष दोनों पैर कटे होने पर भी खुद को मर्द साबित करने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
पीएमसीएच में भर्ती है संतोष: संतोष इन दिनों पीएमसीएच के राजेंद्र सर्जिकल वार्ड में डॉ भरत सिंह के यूनिट में एडमिट है. डॉ भरत सिंह के यूनिट में उनका इलाज चल रहा है और इलाज की व्यवस्था से वह संतुष्ट हैं. ईटीवी से बातचीत में संतोष ने बताया कि 14 दिसंबर को आरा के भदौर में उनका एक्सीडेंट हो गया. संतोष ने बताया कि 14 दिसंबर को भी वह परफॉर्मेंस देने के लिए जा रहे थे इसलिए महिला के पोशाक में थे. ऐसे में एक्सीडेंट के बाद जब लोगों ने सदर अस्पताल में एडमिट कराया तो वहां उनका नाम खुशबू कुमारी लिख दिया गया.
"वह प्रोग्राम के लिए महिला के कपड़ों में थे. ऐसे में एक्सीडेंट के बाद जब लोगों ने उन्हें आरा सदर अस्पताल में एडमिट कराया तो एडमिट कर आते समय उनका नाम खुशबू कुमारी लिख दिया गया. स्थिति गंभीर होने पर पीएमसीएच रेफर किया गया और पीएमसीएच में भी इसी नाम से एडमिट किया गया और 20 दिसंबर को सर्जरी करके संतोष के घुटने के ऊपर से दोनों पैर काट दिए गए. इसके बाद से लगभग 1 महीने होने जा रहे हैं" - संतोष साह, पीड़ित
परिजन ने नाम में सुधार करवाने की बहुत कोशिश कीः संतोष ने बताया कि उनकी मां और उनके भाई अन्य लोग घटना के दिन सदर अस्पताल पहुंचे और वहां बताया कि नाम गलत है, लेकिन वहां कोई सुधार नहीं हुआ. स्थिति गंभीर थी तो पीएमसीएच रेफर कर दिया गया. नाम में बिना सुधार कराए परिजन उनकी जान बचाने के लिए पीएमसीएच लेकर पहुंचे. यहां 14 दिसंबर को रात में एडमिट हुए और एडमिट करते वक्त आधार कार्ड का जो फोटो दिखाया गया कि आधार कार्ड में संतोष साह नाम है, तो भी नहीं सुना गया.
आरा सदर अस्पताल से ही खुशबु कुमारी नाम लिखा आ गयाः आरा सदर अस्पताल से खुशबू कुमारी के नाम पर उन्हें रेफर किया गया था. ऐसे में यहां भी उनका नाम खुशबू कुमारी ही रहा उनकी सर्जरी भी हुई तो खुशबू कुमारी नाम पर हुई. संतोष ने बताया कि उनका एक 2 साल का बेटा है एक 3 साल का बेटा है. अब वह इस बात से चिंतित है कि अब वह अपने बच्चों का भरण पोषण कैसे करेंगे. जिस पैर के बदौलत थिरककर पैसा कमाते थे वह पैर ही अब खत्म हो गया और ऑपरेशन भी हुआ तो नाम संतोष साह की जगह महिला खुशबू कुमारी कर दिया गया.
अब नाम बदलवाने में हो रही परेशानीः ऐसे में वह अपने नाम को सुधार लाने के लिए बहुत परेशान है और नाम सुधर नहीं रहा है. उन्हें अब डर है कि नाम गलत रहेगा तो कैसे उन्हें कोई भी सरकारी योजना का लाभ मिल पाएगा और जब कोई सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलेगा तो पहले से गरीब हैं और अब उनका घर परिवार कैसे चलेगा. पीएमसीएच में संतोष से के साथ मौजूद उनके भाई रामा शंकर शाह ने बताया कि वह लोग सीतामढ़ी जिले के रंजीतपुर के रहने वाले हैं. सड़क दुर्घटना में उनके भाई का दोनों पैर चला गया है और उनके भाई को पुरुष के जगह कागजों में महिला बना दिया गया है.
डाॅक्टरों ने कहा था आसानी से बदल जाएगा नामः रामा शंकर शाह ने बताया कि पीएमसीएच में एडमिट कर आते समय डॉक्टरों ने बोला था कि नाम आसानी से सुधर जाएगा, लेकिन ऑपरेशन के बाद कई दिनों से वह नाम सुधार लाने के लिए दौड़ लगा रहे हैं, लेकिन नाम सुधर नहीं रहा है. पीएमसीएच में उनके भाई डॉ भरत सिंह की निगरानी में है और डॉ भरत सिंह ने भी लिखकर यह दे दिया है कि भूलवश संतोष शाह की जगह खुशबू कुमारी नाम हो गया है और इसे सुधार कर दिया जाए. लेकिन कोई अधिकारी सुन नहीं रहे.
सरकारी कार्यालय में यहां से वहां दौड़ाया जा रहाः रामाशंकर ने बताया कि वह लोग काफी गरीब परिवार से हैं और चाहते हैं कि नाम सुधार हो जाए ताकि यहां से कुछ सरकारी लाभ भी मिल सके. नाम सुधरवाने के लिए वह वह सरकारी कार्यालयों का 10 दिन से अधिक समय से चक्कर लगा रहे हैं लेकिन कोई लाभ नहीं हो रहा है और वह लोग काफी परेशान है. कोर्ट एफिडेविट भी कराने जाते हैं तो एसडीओ ऑफिस के लिए भेज दिया जाता है और एसडीओ ऑफिस जाते हैं तो वहां से फाइल ही लौटा दी जाती है और कहा जाता है कि यह आरा का मामला बनता है यहां का नहीं.
"लोग काफी गरीब परिवार से हैं और चाहते हैं कि नाम सुधार हो जाए ताकि यहां से कुछ सरकारी लाभ भी मिल सके. नाम सुधरवाने के लिए वह वह सरकारी कार्यालयों का 10 दिन से अधिक समय से चक्कर लगा रहे हैं लेकिन कोई लाभ नहीं हो रहा है. हमलोग काफी परेशान हैं"- रामाशंकर शाह, मरीज के भाई