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Independence Day 2023 : ये घर है 'आजादी वाला'.. पटना के इस घर में गांधी, नेहरू और राजेंद्र प्रसाद करते थे गुप्त मीटिंग - अनुग्रह भवन के तहखाने में गुप्त मीटिंग

भारत की आजादी में बिहार का अहम योगदान रहा है. महात्मा गांधी ने बिहार के चंपारण से ही सत्याग्रह की शुरुआत की थी. उस आंदोलन के दौरान अनुग्रह नारायण सिन्हा को बेतिया ऑफिस का इंचार्ज बनाया गया था. वहीं अनुग्रह बाबू का पटना स्थित आवास किसी 'वॉर रूम' से कम नहीं था. उसी घर के तहखाने में क्रांतिकारियों की गुप्त मीटिंग हुआ करती थी. जहां बापू के अलावे पंडित नेहरू और राजेंद्र प्रसाद जुटते थे और क्रांति को धार देने के लिए रणनीति बनाते थे.

भारत की आजादी में बिहार का अहम योगदान
भारत की आजादी में बिहार का अहम योगदान
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Published : Aug 13, 2023, 6:04 AM IST

देखें अनुग्रह नारायण सिन्हा के घर से पूरी रिपोर्ट.

पटना: देश को आजाद हुए 76 साल हो गए. यह आजादी किन संघर्षों से मिली है, उसे याद करने की जरूरत है. भारत की आजादी के लिए कई वीर सपूतों ने अपनी जान की आहुति दे दी. कई ऐसे रणबांकुरे थे, जिन्होंने भारत को आजाद कराने की बीड़ा उठा रखी थी. वो आजादी के लिए अलग-अलग रणनीतियां बनाया करते थे कि कैसे अंग्रेज भारत छोडें. इसको लेकर बैठकें होती थी, वह भी गुप्त तरीके से. जब देश में आजादी को लेकर माहौल बना हुआ था, तब 1917 में बिहार में भी महात्मा गांधी ने चंपारण में जाकर इसकी लौ जला दी थी. स्थिति यह थी कि पूरे बिहार में भारत को आजाद करने के लिए अलग-अलग तरीके से लोग खड़े हो गए. इन्हीं में से एक थे पटना के अनुग्रह नारायण सिन्हा. अनुग्रह नारायण का पटना का आवास आजादी के दीवानों के लिए केंद्र हुआ करता था.

ये भी पढ़ें: August Kranti: पटना सचिवालय में तिरंगा फहराने के लिए शहीद हो गए थे सात युवा क्रांतिकारी, सीने पर खाई गोलियां

"अनुग्रह नारायण सिन्हा ने 1936 में इस घर को बनवाया था. यहां एक तहखाना हुआ करता था, जिसे अब हमलोगों ने बंद करवा दिया है. उस तहखाने में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और राजेंद्र प्रसाद जैसे क्रांतिकारी गुप्त मीटिंग करते थे. इसी घर से पूरे बिहार के लिए आजादी के आंदोलन की रणनीति बनती थी. इस घर को उसी तरह से इसलिए रखा गया है ताकि जब भी इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो इस घर की भूमिका लोगों को समझ में आए"- राकेश कुमार, अनुग्रह नारायण सिंह के प्रपौत्र

गुप्त मीटिंग के लिए गुप्त तहखाना: पटना के कदमकुआं में यह आवास आज भी स्थित है. कभी इस घर में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और राजेंद्र प्रसाद जैसे बड़े-बड़े नेता गुप्त मीटिंग करते थे और इसी घर से आजादी की रणनीति बनाई जाती थी. यह घर था उस समय के मशहूर अधिवक्ता अनुग्रह नारायण सिन्हा का. उन्होंने 1936 में इस घर का ऐसा डिजाइन किया था कि जो स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े लोग थे, उनकी बैठक गुप्त तरीके से हो सके. इसके लिए उन्होंने अपने घर में एक तहखाना बनाया था, जिसमें 100 से लेकर 150 तक लोग मीटिंग कर सकते थे. उस समय पटना में गुप्त मीटिंग करने के लिए सबसे सुरक्षित स्थान कदमकुआं का अनुग्रह भवन ही माना जाता था.

पुराने रुप में ही है आज भी ये मकान: पटना के कदमकुआं में स्थित इस आवास के ठीक बगल में कांग्रेस मैदान भी है. अनुग्रह नारायण सिंह की चौथी पीढ़ी यानी कि उनके प्रपौत्र राकेश कुमार सिंह उर्फ पप्पू सिंह बताते हैं कि अनुग्रह नारायण ने कांग्रेस को यह मैदान दान कर दिया था. कांग्रेस मैदान की भी भूमिका देश की आजादी में रही है. राकेश कुमार बताते हैं कि उनके पूर्वज अनुग्रह नारायण ने इस घर को 1936 में बनाया था और जिस तरह से उन्होंने इस भवन का निर्माण किया था, आज भी यह भवन उसी वेशभूषा में स्थित है. आज भी जो दीवारें हैं, वह पुरानी है और आजादी के दिनों की याद दिलाती है.

आजादी से जुड़े कई नेता आ चुके हैं यहां: आज भी अनुग्रह भवन की दीवारों पर वह तस्वीरें लगी हुई है, जो इस बात की गवाही देती हैं कि राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी सरीखे नेता इस घर में आया करते थे और यहां बैठक किया करते थे. अनुग्रह बाबू भारत की आजादी के अग्रिम नेताओं में शामिल हो गए थे. श्रीकृष्ण सिंह के साथ मिलकर अनुग्रह नारायण सिंह ने बिहार में कई आंदोलन चलाए.

अनुग्रह नारायण सिन्हा का जीवन: 18 जून 1887 को अनुग्रह नारायण सिन्हा का जन्म औरंगाबाद जिले के पोइमा गांव में हुआ था. उनकी शुरुआती पढ़ाई औरंगाबाद में ही हुई. कॉलेज की पढ़ाई पटना कॉलेज में हुई. उसके बाद वह पढ़ने के लिए कोलकाता विश्वविद्यालय चले गए. जहां से उन्होंने एमए और एलएलबी की पढ़ाई की. वह पढ़ने में काफी तेज थे. उन्होंने पढ़ाई के दौरान ही छात्र राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी थी. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने भागलपुर के टीएनजे कॉलेज में इतिहास पढ़ाया. 16 महीने तक नौकरी करने के बाद वह पटना आए और यहां उन्होंने हाईकोर्ट में वकालत शुरू कर दी.

महात्मा गांधी से प्रभावित थे अनुग्रह बाबू: उनके प्रपौत्र राकेश कुमार बताते हैं कि अनुग्रह बाबू के जीवन में 1917 में तब क्रांतिकारी बदलाव आया, जब महात्मा गांधी चंपारण आए थे. चंपारण आंदोलन के दौरान उन्हें बेतिया ऑफिस का इंचार्ज बनाया गया था. महात्मा गांधी चंपारण आए तो अनुग्रह नारायण उनके करीब चले गए. राकेश कुमार बताते हैं कि किसानों के आंदोलन को आगे बढ़ाने और अंग्रेजों के दमन के विरोध में कानूनी लड़ाई के लिए, महात्मा गांधी का साथ देने के लिए पटना के 5 वकीलों ने अपनी निजी वकालत छोड़ने का फैसला लिया था, जिसमें अनुग्रह नारायण सिन्हा भी शामिल थे.

गांधी जी अनुग्रह बाबू से काफी प्रभावित हुए: राकेश कुमार बताते हैं कि महात्मा गांधी अनुग्रह नारायण सिन्हा से काफी प्रभावित हुए. स्वभाव से अनुग्रह बाबू काफी मृदुभाषी थे. उस समय राजेंद्र प्रसाद के निर्देश में बिहार के अलग-अलग जगह में कांग्रेस के संगठन का विस्तार हो रहा था, जिसमें अनुग्रह नारायण सिन्हा की अहम भूमिका थी.

बिहार विभूति से चर्चित हुए अनुग्रह बाबू: बिहार विभूति के नाम से जाने जाने वाले अनुग्रह नारायण सिन्हा के बारे में राकेश कुमार बताते हैं कि जब आजादी से पहले बिहार के प्रधानमंत्री श्री कृष्ण सिंह बने थे तो उप प्रधानमंत्री अनुग्रह नारायण सिन्हा को बनाया गया था. बाद में जब देश आजाद हुआ तो श्री कृष्ण सिंह बिहार के मुख्यमंत्री बने और अनुग्रह नारायण सिन्हा बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री बने थे. उस समय अनुग्रह बाबू के पास वित्त विभाग सहित 13 विभागों की जिम्मेदारी थी.

आजादी से पहले और बाद में भी अनुग्रह भवन का महत्व: राकेश कुमार बताते हैं देश की आजादी में अनुग्रह नारायण सिन्हा के परिवार की अहम भूमिका रही है. देश की आजादी के बाद भी यह पूरा परिवार कांग्रेस से ही जुड़ा रहा. आज सभी सदस्य कांग्रेस के साथ ही जुड़े हैं. इस परिवार में कई बड़े नेता हुए. राकेश कुमार बताते हैं अनुग्रह नारायण सिंह के दो पुत्र और एक पुत्री थी. पुत्र जितेंद्र नारायण सिंह और सत्येंद्र नारायण सिन्हा थे. बाद में सत्येंद्र नारायण सिन्हा बिहार के मुख्यमंत्री बने.

इस घर से मुख्यमंत्री और कई सांसद बने: सत्येंद्र सिन्हा की पत्नी किशोरी सिन्हा बिहार के वैशाली लोक सभा क्षेत्र से सांसद रह चुकी हैं. उनके पुत्र निखिल कुमार दिल्ली के पुलिस कमिश्नर और बाद में औरंगाबाद से सांसद रहे थे. कांग्रेस की सरकार में वह केरला और नागालैंड के राज्यपाल भी रहे. निखिल कुमार की पत्नी श्यामा सिन्हा भी औरंगाबाद से सांसद रह चुकी हैं. वहीं बड़े पुत्र जितेंद्र सिंह के दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुई. पुत्र प्रमोद कुमार सिंह और विनोद कुमार सिंह हुए. प्रमोद कुमार सिंह के पुत्र राकेश कुमार अभी अनुग्रह भवन में रहते हैं. उन्होंने इस भवन को उसी तरह से हेरिटेज के रूप में रखा है.

देखें अनुग्रह नारायण सिन्हा के घर से पूरी रिपोर्ट.

पटना: देश को आजाद हुए 76 साल हो गए. यह आजादी किन संघर्षों से मिली है, उसे याद करने की जरूरत है. भारत की आजादी के लिए कई वीर सपूतों ने अपनी जान की आहुति दे दी. कई ऐसे रणबांकुरे थे, जिन्होंने भारत को आजाद कराने की बीड़ा उठा रखी थी. वो आजादी के लिए अलग-अलग रणनीतियां बनाया करते थे कि कैसे अंग्रेज भारत छोडें. इसको लेकर बैठकें होती थी, वह भी गुप्त तरीके से. जब देश में आजादी को लेकर माहौल बना हुआ था, तब 1917 में बिहार में भी महात्मा गांधी ने चंपारण में जाकर इसकी लौ जला दी थी. स्थिति यह थी कि पूरे बिहार में भारत को आजाद करने के लिए अलग-अलग तरीके से लोग खड़े हो गए. इन्हीं में से एक थे पटना के अनुग्रह नारायण सिन्हा. अनुग्रह नारायण का पटना का आवास आजादी के दीवानों के लिए केंद्र हुआ करता था.

ये भी पढ़ें: August Kranti: पटना सचिवालय में तिरंगा फहराने के लिए शहीद हो गए थे सात युवा क्रांतिकारी, सीने पर खाई गोलियां

"अनुग्रह नारायण सिन्हा ने 1936 में इस घर को बनवाया था. यहां एक तहखाना हुआ करता था, जिसे अब हमलोगों ने बंद करवा दिया है. उस तहखाने में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और राजेंद्र प्रसाद जैसे क्रांतिकारी गुप्त मीटिंग करते थे. इसी घर से पूरे बिहार के लिए आजादी के आंदोलन की रणनीति बनती थी. इस घर को उसी तरह से इसलिए रखा गया है ताकि जब भी इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो इस घर की भूमिका लोगों को समझ में आए"- राकेश कुमार, अनुग्रह नारायण सिंह के प्रपौत्र

गुप्त मीटिंग के लिए गुप्त तहखाना: पटना के कदमकुआं में यह आवास आज भी स्थित है. कभी इस घर में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और राजेंद्र प्रसाद जैसे बड़े-बड़े नेता गुप्त मीटिंग करते थे और इसी घर से आजादी की रणनीति बनाई जाती थी. यह घर था उस समय के मशहूर अधिवक्ता अनुग्रह नारायण सिन्हा का. उन्होंने 1936 में इस घर का ऐसा डिजाइन किया था कि जो स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े लोग थे, उनकी बैठक गुप्त तरीके से हो सके. इसके लिए उन्होंने अपने घर में एक तहखाना बनाया था, जिसमें 100 से लेकर 150 तक लोग मीटिंग कर सकते थे. उस समय पटना में गुप्त मीटिंग करने के लिए सबसे सुरक्षित स्थान कदमकुआं का अनुग्रह भवन ही माना जाता था.

पुराने रुप में ही है आज भी ये मकान: पटना के कदमकुआं में स्थित इस आवास के ठीक बगल में कांग्रेस मैदान भी है. अनुग्रह नारायण सिंह की चौथी पीढ़ी यानी कि उनके प्रपौत्र राकेश कुमार सिंह उर्फ पप्पू सिंह बताते हैं कि अनुग्रह नारायण ने कांग्रेस को यह मैदान दान कर दिया था. कांग्रेस मैदान की भी भूमिका देश की आजादी में रही है. राकेश कुमार बताते हैं कि उनके पूर्वज अनुग्रह नारायण ने इस घर को 1936 में बनाया था और जिस तरह से उन्होंने इस भवन का निर्माण किया था, आज भी यह भवन उसी वेशभूषा में स्थित है. आज भी जो दीवारें हैं, वह पुरानी है और आजादी के दिनों की याद दिलाती है.

आजादी से जुड़े कई नेता आ चुके हैं यहां: आज भी अनुग्रह भवन की दीवारों पर वह तस्वीरें लगी हुई है, जो इस बात की गवाही देती हैं कि राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी सरीखे नेता इस घर में आया करते थे और यहां बैठक किया करते थे. अनुग्रह बाबू भारत की आजादी के अग्रिम नेताओं में शामिल हो गए थे. श्रीकृष्ण सिंह के साथ मिलकर अनुग्रह नारायण सिंह ने बिहार में कई आंदोलन चलाए.

अनुग्रह नारायण सिन्हा का जीवन: 18 जून 1887 को अनुग्रह नारायण सिन्हा का जन्म औरंगाबाद जिले के पोइमा गांव में हुआ था. उनकी शुरुआती पढ़ाई औरंगाबाद में ही हुई. कॉलेज की पढ़ाई पटना कॉलेज में हुई. उसके बाद वह पढ़ने के लिए कोलकाता विश्वविद्यालय चले गए. जहां से उन्होंने एमए और एलएलबी की पढ़ाई की. वह पढ़ने में काफी तेज थे. उन्होंने पढ़ाई के दौरान ही छात्र राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी थी. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने भागलपुर के टीएनजे कॉलेज में इतिहास पढ़ाया. 16 महीने तक नौकरी करने के बाद वह पटना आए और यहां उन्होंने हाईकोर्ट में वकालत शुरू कर दी.

महात्मा गांधी से प्रभावित थे अनुग्रह बाबू: उनके प्रपौत्र राकेश कुमार बताते हैं कि अनुग्रह बाबू के जीवन में 1917 में तब क्रांतिकारी बदलाव आया, जब महात्मा गांधी चंपारण आए थे. चंपारण आंदोलन के दौरान उन्हें बेतिया ऑफिस का इंचार्ज बनाया गया था. महात्मा गांधी चंपारण आए तो अनुग्रह नारायण उनके करीब चले गए. राकेश कुमार बताते हैं कि किसानों के आंदोलन को आगे बढ़ाने और अंग्रेजों के दमन के विरोध में कानूनी लड़ाई के लिए, महात्मा गांधी का साथ देने के लिए पटना के 5 वकीलों ने अपनी निजी वकालत छोड़ने का फैसला लिया था, जिसमें अनुग्रह नारायण सिन्हा भी शामिल थे.

गांधी जी अनुग्रह बाबू से काफी प्रभावित हुए: राकेश कुमार बताते हैं कि महात्मा गांधी अनुग्रह नारायण सिन्हा से काफी प्रभावित हुए. स्वभाव से अनुग्रह बाबू काफी मृदुभाषी थे. उस समय राजेंद्र प्रसाद के निर्देश में बिहार के अलग-अलग जगह में कांग्रेस के संगठन का विस्तार हो रहा था, जिसमें अनुग्रह नारायण सिन्हा की अहम भूमिका थी.

बिहार विभूति से चर्चित हुए अनुग्रह बाबू: बिहार विभूति के नाम से जाने जाने वाले अनुग्रह नारायण सिन्हा के बारे में राकेश कुमार बताते हैं कि जब आजादी से पहले बिहार के प्रधानमंत्री श्री कृष्ण सिंह बने थे तो उप प्रधानमंत्री अनुग्रह नारायण सिन्हा को बनाया गया था. बाद में जब देश आजाद हुआ तो श्री कृष्ण सिंह बिहार के मुख्यमंत्री बने और अनुग्रह नारायण सिन्हा बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री बने थे. उस समय अनुग्रह बाबू के पास वित्त विभाग सहित 13 विभागों की जिम्मेदारी थी.

आजादी से पहले और बाद में भी अनुग्रह भवन का महत्व: राकेश कुमार बताते हैं देश की आजादी में अनुग्रह नारायण सिन्हा के परिवार की अहम भूमिका रही है. देश की आजादी के बाद भी यह पूरा परिवार कांग्रेस से ही जुड़ा रहा. आज सभी सदस्य कांग्रेस के साथ ही जुड़े हैं. इस परिवार में कई बड़े नेता हुए. राकेश कुमार बताते हैं अनुग्रह नारायण सिंह के दो पुत्र और एक पुत्री थी. पुत्र जितेंद्र नारायण सिंह और सत्येंद्र नारायण सिन्हा थे. बाद में सत्येंद्र नारायण सिन्हा बिहार के मुख्यमंत्री बने.

इस घर से मुख्यमंत्री और कई सांसद बने: सत्येंद्र सिन्हा की पत्नी किशोरी सिन्हा बिहार के वैशाली लोक सभा क्षेत्र से सांसद रह चुकी हैं. उनके पुत्र निखिल कुमार दिल्ली के पुलिस कमिश्नर और बाद में औरंगाबाद से सांसद रहे थे. कांग्रेस की सरकार में वह केरला और नागालैंड के राज्यपाल भी रहे. निखिल कुमार की पत्नी श्यामा सिन्हा भी औरंगाबाद से सांसद रह चुकी हैं. वहीं बड़े पुत्र जितेंद्र सिंह के दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुई. पुत्र प्रमोद कुमार सिंह और विनोद कुमार सिंह हुए. प्रमोद कुमार सिंह के पुत्र राकेश कुमार अभी अनुग्रह भवन में रहते हैं. उन्होंने इस भवन को उसी तरह से हेरिटेज के रूप में रखा है.

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