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ASER Report 2022: बिहार के सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में आई गिरावट, हिंदी का पाठ पढ़ने में बच्चे अक्षम

एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER Report-2022) यानी कि ASER ने हाल ही में साल 2022 की वार्षिक शैक्षिक स्थिति की रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट के अनुसार देशभर के ग्रामीण स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों के पढ़ने लिखने की क्षमता में काफी गिरावट देखी गई है और बिहार में गिरावट काफी अधिक है.

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Published : Jan 20, 2023, 8:29 PM IST

बिहार में गिरा स्कूली शिक्षा का स्तर

पटनाः बिहार में स्कूली शिक्षा के स्तर में गिरावट (level of school education dropped in Bihar) दर्ज की जा रही है. एएसईआर रिपोर्ट 2022 जारी होने के बाद पता चला है कि बिहार के सराकरी स्कूलों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की घोर कमी है. 2012 की रिपोर्ट की तुलना में हिंदी और अंग्रेजी पढ़ने की क्षमता में गिरावट आई है. साथ ही बच्चों की गणित के सवाल हल करने की क्षमता भी कम हुई है. इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि शिक्षा में गिरावट की प्रमुख वजह कॉन्ट्रैक्ट टीचर की नियुक्ति है.

ये भी पढ़ेंः 39191 करोड़ रुपये का शिक्षा बजट: सदन में आश्वसन के बाद भी कई मुद्दे ठंडे बस्ते में..

2012 की तुलना में अभी शिक्षा के स्तर में गिरावटः एएसईआर रिपोर्ट 2022 616 जिलों के 19060 गांव में 7 लाख से अधिक बच्चों के मूल्यांकन के आधार पर तैयार की गई है. इस रिपोर्ट की माने तो कक्षा 1 के देशभर में 43.9% बच्चे अक्षर पढ़ने में अक्षम है और 1 से 9 तक के अंको की सही पहचान भी नहीं कर पाते. ऐसे में अगर ASER की बिहार की रिपोर्ट को देखें तो साल 2012 के रिपोर्ट्स की तुलना में काफी गिरावट देखी गई है. जबकि स्कूल के अलावा अलग से टयूशन पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी भी हुई है.

सिर्फ नामांकन के आंकड़ों में दिखी बढ़तः इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार के सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और साल 2018 में जो 78.1% बच्चों का स्कूलों में नामांकन था वहीं 2022 में 82.2% हो गया है, हालांकि 2010 में 89.9% नामांकन की रिपोर्ट दर्ज की गई थी. ASER की रिपोर्ट के तहत बच्चों में अंग्रेजी के अक्षर और वाक्य पढ़ने की क्षमता, हिंदी के अक्षर और वाक्य पढ़ने की क्षमता और गणित में घटाव और भाग करने की क्षमता जांची गई है.

हिंदी पढ़ने में भी कमजोर निकले बच्चेः ASER 2022 की रिपोर्ट को देखे तो बिहार में पांचवी कक्षा के 42.5% छात्र ही कक्षा दो स्तर का हिंदी में पाठ पढ़ सकते हैं. इसमें निजी स्कूल के 73.4% छात्र और सरकारी स्कूल के 37.1% छात्र हीं हिंदी में कक्षा 2 का पाठ पढ़ने में सक्षम है. यहां सरकारी और निजी स्कूल के छात्रों के पाठ पढ़ने की क्षमता में काफी अंतर है. साल 2012 में सरकारी स्कूल के 43.1% छात्र कक्षा 2 का पाठ पढ़ने में सक्षम थे. जबकि साल 2014 में 44.6 % छात्र सक्षम थे. रिपोर्ट यह भी बताता है कि आठवीं कक्षा के 71.2% छात्र कक्षा 2 का हिंदी में पाठ पढ़ने में सक्षम हैं. इसमें सरकारी विद्यालय के 69.7% छात्र और निजी विद्यालय के 89.3% छात्र शामिल है. इस रिपोर्ट के अनुसार 30.3% सरकारी विद्यालय के आठवीं कक्षा के छात्र कक्षा 2 का हिंदी में पाठ भी नहीं पढ़ सकते.

आंकड़ों में स्कूली शिक्षा का हाल
आंकड़ों में स्कूली शिक्षा का हाल

सरकारी स्कूल के 14.4% बच्चे ही पढ़ पाते हैं अंग्रेजीः अंग्रेजी में वाक्य को पढ़ने की क्षमता को गौर करें तो यह रिपोर्ट बताती है कि साल 2022 में प्रदेश के पांचवी कक्षा तक के 22.5% छात्र ही अंग्रेजी के वाक्य पढ़ने में सक्षम है जिसमें निजी विद्यालय के 68.6% छात्र हैं और सरकारी विद्यालय की 14.4% छात्र हैं. साल 2012 में बिहार के सरकारी विद्यालय के पांचवी कक्षा के 14.6% छात्र अंग्रेजी में वाक्य पढ़ने में सक्षम थे. वही प्रदेश के आठवीं कक्षा के 43.9% छात्र ही अंग्रेजी में वाक्य पढ़ने को लेकर सक्षम है जिसमें निजी विद्यालय के 78.3% छात्र और सरकारी विद्यालय के 41% छात्र हैं. साल 2012 में बिहार के सरकारी विद्यालयों के आठवीं कक्षा के 47.8% छात्र अंग्रेजी में वाक्य पढ़ने में सक्षम थे.

गणित में भाग तक करने में फंस रहे बच्चेः ASER 2022 की ताजा रिपोर्ट की माने तो पांचवी कक्षा के 35.6% छात्र ही गणित में भाग के सवालों को हल करने में सक्षम हैं. इसमें निजी विद्यालय के छात्रों की संख्या 67.1% और सरकारी विद्यालयों के छात्रों की संख्या 30% है. साल 2012 में 30% और साल 2014 में 31.4% प्रदेश के पांचवी कक्षा के छात्र गणित में भाग के सवालों को हल करने में सक्षम थे. वहीं प्रदेश के आठवीं कक्षा के 59.5% छात्र गणित में भाग के सवालों को हल करने में सक्षम है जिसमें निजी विद्यालय के 77.9% छात्र और सरकारी विद्यालय के 58% छात्र शामिल हैं. इस रिपोर्ट की मानें तो साल 2012 में प्रदेश के सरकारी विद्यालय की आठवीं कक्षा के 66.4% छात्र गणित में भाग के सवालों को हल करने में सक्षम थे.


74.8% प्राथमिक विद्यालयों में दो कक्षाओं के बच्चे एक साथ बैठकर पढ़ते हैंः रिपोर्ट यह भी बताता है कि प्रदेश में 74.8% प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा 2 के बच्चे एक या अन्य कक्षाओं के साथ बैठकर पढ़ते हैं वही कक्षा 4 के बच्चे 71.3% विद्यालयों में 1 या अन्य कक्षाओं के साथ बैठकर पढ़ते हैं. साल 2010 में 67.6% विद्यालयों में कक्षा 2 के छात्र एक या अन्य कक्षाओं के साथ बैठकर पढ़ते थे और कक्षा 4 के 63.7 प्रतिशत छात्र एक या अन्य कक्षा के साथ बैठकर पढ़ते थे. वहीं यह रिपोर्ट यह भी बताता है कि प्रदेश के 4.8% सरकारी विद्यालयों में पेयजल की सुविधा उपलब्ध नहीं है 7.9% विद्यालयों में पेयजल की सुविधा है पर पेयजल उपलब्ध नहीं है और 87.3% विद्यालयों में पेयजल की सुविधा है.

63.8% विद्यालयों में लड़कियों के लिए शौचालय नहींः शौचालय की सुविधा को लेकर यह रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के 2.6% सरकारी विद्यालयों में शौचालय की कोई सुविधा नहीं है. 26.6% विद्यालयों में शौचालय हैं, परंतु प्रयोग के योग्य नहीं है. वहीं लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की बात करें तो प्रदेश के 11.3% विद्यालयों में लड़कियों के लिए अलग से कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. 25% विद्यालयों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की सुविधा है, लेकिन शौचालय प्रयोग के योग्य नहीं है. प्रदेश में मात्र 63.8% विद्यालयों में लड़कियों के लिए प्रयोग करने योग्य शौचालय उपलब्ध है.


मात्र 1.5% विद्यालयों में कंप्यूटर का उपयोग ः पुस्तकालय की बात करें तो प्रदेश की 34% विद्यालयों में पुस्तकालय नहीं है, 30.6% विद्यालयों में पुस्तकालय है परंतु बच्चों के उपयोग के लिए कोई किताबें नहीं है और मात्र 35.4% विद्यालयों में ही पुस्तकालय है जहां की किताबें बच्चों द्वारा उपयोग में लाई जा रही हैं. इन सबके अलावा कंप्यूटर शिक्षा की बात करें तो प्रदेश के 92.4% विद्यालयों में कंप्यूटर नहीं है जबकि 6.1% विद्यालय में कंप्यूटर है परंतु उसका कोई उपयोग नहीं होता है और मात्र 1.5% विद्यालयों में ही कंप्यूटर का उपयोग बच्चों द्वारा हो रहा है. यह रिपोर्ट यह भी बताता है कि साल 2010 में सरकारी विद्यालय के जहां कक्षा 1 से 8 तक के 47.7% छात्र ही स्कूल के अलावा अलग से ट्यूशन लेते थे वही अब 71.6% छात्र स्कूल के अलावा अलग से ट्यूशन ले रहे हैं.

स्कूलों में नामांकन की स्थिति
स्कूलों में नामांकन की स्थिति
कॉन्ट्रैक्ट टीचर के कारण शिक्षा में गिरावट :प्रदेश में शिक्षा की गिरते स्तर पर प्रकाश डालते हुए एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के प्रोफेसर और प्रख्यात समाज शास्त्री प्रोफ़ेसर बीएन प्रसाद ने बताया कि प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में जो गिरावट आई है, उसका प्रमुख कारण सरकारी विद्यालयों में कॉन्ट्रैक्ट टीचर की नियुक्ति है. उन्होंने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट टीचर को वेतन सामान्य शिक्षक से कम मिलता है और जब तक इनके जॉब की गारंटी ना हो तो, ऐसे शिक्षक कभी भी शिद्दत से बच्चों को नहीं पढ़ा सकते.

मोबाइल के कारण पढ़ाई हो रही खराबः बीएन प्रसाद ने बताया कि आज समाज में उपभोक्तावाद हावी है और सभी को मोबाइल मेंटेन करना है, बाइक मेंटेन करना है और इन जरूरतों को लोग ईएमआई चुका कर मेंटेन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यही कारण है कि शिक्षक अब स्कूल में बच्चों को बेहतर पढ़ाने के बजाय बच्चों को अपने यहां ट्यूशन में बुला रहे हैं. यही वजह है कि ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है, जो यह रिपोर्ट की पुष्टि कर रही है. इसके अलावा कोरोना के कारण बीते दो-तीन वर्षों में बच्चों में लिखने और पढ़ने की क्षमता घटी है. इसकी वजह है मोबाइल पर पढ़ाई, मोबाइल पर पढ़ाई के दौरान कई सारे नोटिफिकेशन आते हैं जो ध्यान डिस्ट्रैक्ट करता है और कोरोना के दौरान पढ़ाई काफी प्रभावित हुई और बच्चों के लिखने की आदत कम हुई.

छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की भारी कमीः प्रोफेसर बीएन प्रसाद ने बताया कि शिक्षा व्यवस्था के तीन पिलर हैं और तीनों का मजबूत होना बेहतर शिक्षा व्यवस्था के लिए जरूरी है. पहला है विद्यार्थी, दूसरे हैं शिक्षक और तीसरा इंफ्रास्ट्रक्चर. प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है. यह एक अच्छी खबर है, लेकिन विद्यार्थियों के अनुपात में शिक्षकों की संख्या में भारी कमी है. इन सबके अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर में भी काफी कमी है. इसमें लाइब्रेरी का आभाव, बच्चों के लिए शौचालय का अभाव, शुद्ध पेयजल की व्यवस्था, खेलकूद की व्यवस्था इत्यादि तमाम चीजें आती हैं.

सरकारी और निजी स्कूल के बच्चों में काफी अंतरः उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों में खेलकूद की भी सुविधा उपलब्ध नहीं है. वहीं निजी विद्यालयों में छात्रों के अनुपात में अच्छी संख्या में शिक्षकों की उपलब्धता है. इसके अलावा खेलकूद के बीच संसाधन उपलब्ध रहते हैं और खेलकूद से इधर कोई कला संस्कृति में कुछ करना चाहता है तो उसके लिए भी पर्याप्त मौके रखते हैं. प्रोफेसर बीएन प्रसाद ने बताया कि शिक्षा को लेकर जो यह रिपोर्ट बता रहा है उसमें सरकारी और निजी विद्यालयों के छात्रों के शिक्षा के स्तर में भारी अंतर देखने को मिल रहा है.

शिक्षा के स्तर में सुधार नहीं होने से बढ़ेगी गरीब और अमीर की खाईः प्रदेश में 80% से अधिक बच्चे सरकारी विद्यालय में जाते हैं और लगभग 20% बच्चे निजी विद्यालयों में जाते हैं. ऐसे ही में शिक्षा का अगर ऐसा अंतर है तो निश्चित है कि सरकारी विद्यालयों में बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित हो रहे हैं. इसका परिणाम आने वाला समय में यह होगा कि उच्च नौकरियों में सरकारी विद्यालयों से पढ़ने वाले छात्रों की संख्या काफी कम होगी. यह छात्र चपरासी और अन्य लोअर लेवल के नौकरियों को ही ज्वाइन कर पाएंगे. वहीं निजी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलने के कारण यहां के बच्चे आईआईटी, यूपीएससी, जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं में स्थान प्राप्त करेंगे. स्थिति यही रही तो समाज में आने वाले दिनों में गरीब और अमीर के बीच एक बड़ा अंतर पैदा हो जाएगा.

"प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में जो गिरावट आई है, उसका प्रमुख कारण सरकारी विद्यालयों में कॉन्ट्रैक्ट टीचर की नियुक्ति है. कॉन्ट्रैक्ट टीचर को वेतन सामान्य शिक्षक से कम मिलता है और जब तक इनके जॉब की गारंटी ना हो तो, ऐसे शिक्षक कभी भी शिद्दत से बच्चों को नहीं पढ़ा सकते. शिक्षक अब स्कूल में बच्चों को बेहतर पढ़ाने के बजाय बच्चों को अपने यहां ट्यूशन में बुला रहे हैं. यही वजह है कि ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है, जो यह रिपोर्ट की पुष्टि कर रही है. इसके अलावा कोरोना के कारण बीते दो-तीन वर्षों में बच्चों में लिखने और पढ़ने की क्षमता घटी है" - प्रोफेसर डॉ बीएन प्रसाद, समाजशास्त्री

बिहार में गिरा स्कूली शिक्षा का स्तर

पटनाः बिहार में स्कूली शिक्षा के स्तर में गिरावट (level of school education dropped in Bihar) दर्ज की जा रही है. एएसईआर रिपोर्ट 2022 जारी होने के बाद पता चला है कि बिहार के सराकरी स्कूलों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की घोर कमी है. 2012 की रिपोर्ट की तुलना में हिंदी और अंग्रेजी पढ़ने की क्षमता में गिरावट आई है. साथ ही बच्चों की गणित के सवाल हल करने की क्षमता भी कम हुई है. इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि शिक्षा में गिरावट की प्रमुख वजह कॉन्ट्रैक्ट टीचर की नियुक्ति है.

ये भी पढ़ेंः 39191 करोड़ रुपये का शिक्षा बजट: सदन में आश्वसन के बाद भी कई मुद्दे ठंडे बस्ते में..

2012 की तुलना में अभी शिक्षा के स्तर में गिरावटः एएसईआर रिपोर्ट 2022 616 जिलों के 19060 गांव में 7 लाख से अधिक बच्चों के मूल्यांकन के आधार पर तैयार की गई है. इस रिपोर्ट की माने तो कक्षा 1 के देशभर में 43.9% बच्चे अक्षर पढ़ने में अक्षम है और 1 से 9 तक के अंको की सही पहचान भी नहीं कर पाते. ऐसे में अगर ASER की बिहार की रिपोर्ट को देखें तो साल 2012 के रिपोर्ट्स की तुलना में काफी गिरावट देखी गई है. जबकि स्कूल के अलावा अलग से टयूशन पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी भी हुई है.

सिर्फ नामांकन के आंकड़ों में दिखी बढ़तः इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार के सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और साल 2018 में जो 78.1% बच्चों का स्कूलों में नामांकन था वहीं 2022 में 82.2% हो गया है, हालांकि 2010 में 89.9% नामांकन की रिपोर्ट दर्ज की गई थी. ASER की रिपोर्ट के तहत बच्चों में अंग्रेजी के अक्षर और वाक्य पढ़ने की क्षमता, हिंदी के अक्षर और वाक्य पढ़ने की क्षमता और गणित में घटाव और भाग करने की क्षमता जांची गई है.

हिंदी पढ़ने में भी कमजोर निकले बच्चेः ASER 2022 की रिपोर्ट को देखे तो बिहार में पांचवी कक्षा के 42.5% छात्र ही कक्षा दो स्तर का हिंदी में पाठ पढ़ सकते हैं. इसमें निजी स्कूल के 73.4% छात्र और सरकारी स्कूल के 37.1% छात्र हीं हिंदी में कक्षा 2 का पाठ पढ़ने में सक्षम है. यहां सरकारी और निजी स्कूल के छात्रों के पाठ पढ़ने की क्षमता में काफी अंतर है. साल 2012 में सरकारी स्कूल के 43.1% छात्र कक्षा 2 का पाठ पढ़ने में सक्षम थे. जबकि साल 2014 में 44.6 % छात्र सक्षम थे. रिपोर्ट यह भी बताता है कि आठवीं कक्षा के 71.2% छात्र कक्षा 2 का हिंदी में पाठ पढ़ने में सक्षम हैं. इसमें सरकारी विद्यालय के 69.7% छात्र और निजी विद्यालय के 89.3% छात्र शामिल है. इस रिपोर्ट के अनुसार 30.3% सरकारी विद्यालय के आठवीं कक्षा के छात्र कक्षा 2 का हिंदी में पाठ भी नहीं पढ़ सकते.

आंकड़ों में स्कूली शिक्षा का हाल
आंकड़ों में स्कूली शिक्षा का हाल

सरकारी स्कूल के 14.4% बच्चे ही पढ़ पाते हैं अंग्रेजीः अंग्रेजी में वाक्य को पढ़ने की क्षमता को गौर करें तो यह रिपोर्ट बताती है कि साल 2022 में प्रदेश के पांचवी कक्षा तक के 22.5% छात्र ही अंग्रेजी के वाक्य पढ़ने में सक्षम है जिसमें निजी विद्यालय के 68.6% छात्र हैं और सरकारी विद्यालय की 14.4% छात्र हैं. साल 2012 में बिहार के सरकारी विद्यालय के पांचवी कक्षा के 14.6% छात्र अंग्रेजी में वाक्य पढ़ने में सक्षम थे. वही प्रदेश के आठवीं कक्षा के 43.9% छात्र ही अंग्रेजी में वाक्य पढ़ने को लेकर सक्षम है जिसमें निजी विद्यालय के 78.3% छात्र और सरकारी विद्यालय के 41% छात्र हैं. साल 2012 में बिहार के सरकारी विद्यालयों के आठवीं कक्षा के 47.8% छात्र अंग्रेजी में वाक्य पढ़ने में सक्षम थे.

गणित में भाग तक करने में फंस रहे बच्चेः ASER 2022 की ताजा रिपोर्ट की माने तो पांचवी कक्षा के 35.6% छात्र ही गणित में भाग के सवालों को हल करने में सक्षम हैं. इसमें निजी विद्यालय के छात्रों की संख्या 67.1% और सरकारी विद्यालयों के छात्रों की संख्या 30% है. साल 2012 में 30% और साल 2014 में 31.4% प्रदेश के पांचवी कक्षा के छात्र गणित में भाग के सवालों को हल करने में सक्षम थे. वहीं प्रदेश के आठवीं कक्षा के 59.5% छात्र गणित में भाग के सवालों को हल करने में सक्षम है जिसमें निजी विद्यालय के 77.9% छात्र और सरकारी विद्यालय के 58% छात्र शामिल हैं. इस रिपोर्ट की मानें तो साल 2012 में प्रदेश के सरकारी विद्यालय की आठवीं कक्षा के 66.4% छात्र गणित में भाग के सवालों को हल करने में सक्षम थे.


74.8% प्राथमिक विद्यालयों में दो कक्षाओं के बच्चे एक साथ बैठकर पढ़ते हैंः रिपोर्ट यह भी बताता है कि प्रदेश में 74.8% प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा 2 के बच्चे एक या अन्य कक्षाओं के साथ बैठकर पढ़ते हैं वही कक्षा 4 के बच्चे 71.3% विद्यालयों में 1 या अन्य कक्षाओं के साथ बैठकर पढ़ते हैं. साल 2010 में 67.6% विद्यालयों में कक्षा 2 के छात्र एक या अन्य कक्षाओं के साथ बैठकर पढ़ते थे और कक्षा 4 के 63.7 प्रतिशत छात्र एक या अन्य कक्षा के साथ बैठकर पढ़ते थे. वहीं यह रिपोर्ट यह भी बताता है कि प्रदेश के 4.8% सरकारी विद्यालयों में पेयजल की सुविधा उपलब्ध नहीं है 7.9% विद्यालयों में पेयजल की सुविधा है पर पेयजल उपलब्ध नहीं है और 87.3% विद्यालयों में पेयजल की सुविधा है.

63.8% विद्यालयों में लड़कियों के लिए शौचालय नहींः शौचालय की सुविधा को लेकर यह रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के 2.6% सरकारी विद्यालयों में शौचालय की कोई सुविधा नहीं है. 26.6% विद्यालयों में शौचालय हैं, परंतु प्रयोग के योग्य नहीं है. वहीं लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की बात करें तो प्रदेश के 11.3% विद्यालयों में लड़कियों के लिए अलग से कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. 25% विद्यालयों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की सुविधा है, लेकिन शौचालय प्रयोग के योग्य नहीं है. प्रदेश में मात्र 63.8% विद्यालयों में लड़कियों के लिए प्रयोग करने योग्य शौचालय उपलब्ध है.


मात्र 1.5% विद्यालयों में कंप्यूटर का उपयोग ः पुस्तकालय की बात करें तो प्रदेश की 34% विद्यालयों में पुस्तकालय नहीं है, 30.6% विद्यालयों में पुस्तकालय है परंतु बच्चों के उपयोग के लिए कोई किताबें नहीं है और मात्र 35.4% विद्यालयों में ही पुस्तकालय है जहां की किताबें बच्चों द्वारा उपयोग में लाई जा रही हैं. इन सबके अलावा कंप्यूटर शिक्षा की बात करें तो प्रदेश के 92.4% विद्यालयों में कंप्यूटर नहीं है जबकि 6.1% विद्यालय में कंप्यूटर है परंतु उसका कोई उपयोग नहीं होता है और मात्र 1.5% विद्यालयों में ही कंप्यूटर का उपयोग बच्चों द्वारा हो रहा है. यह रिपोर्ट यह भी बताता है कि साल 2010 में सरकारी विद्यालय के जहां कक्षा 1 से 8 तक के 47.7% छात्र ही स्कूल के अलावा अलग से ट्यूशन लेते थे वही अब 71.6% छात्र स्कूल के अलावा अलग से ट्यूशन ले रहे हैं.

स्कूलों में नामांकन की स्थिति
स्कूलों में नामांकन की स्थिति
कॉन्ट्रैक्ट टीचर के कारण शिक्षा में गिरावट :प्रदेश में शिक्षा की गिरते स्तर पर प्रकाश डालते हुए एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के प्रोफेसर और प्रख्यात समाज शास्त्री प्रोफ़ेसर बीएन प्रसाद ने बताया कि प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में जो गिरावट आई है, उसका प्रमुख कारण सरकारी विद्यालयों में कॉन्ट्रैक्ट टीचर की नियुक्ति है. उन्होंने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट टीचर को वेतन सामान्य शिक्षक से कम मिलता है और जब तक इनके जॉब की गारंटी ना हो तो, ऐसे शिक्षक कभी भी शिद्दत से बच्चों को नहीं पढ़ा सकते.

मोबाइल के कारण पढ़ाई हो रही खराबः बीएन प्रसाद ने बताया कि आज समाज में उपभोक्तावाद हावी है और सभी को मोबाइल मेंटेन करना है, बाइक मेंटेन करना है और इन जरूरतों को लोग ईएमआई चुका कर मेंटेन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यही कारण है कि शिक्षक अब स्कूल में बच्चों को बेहतर पढ़ाने के बजाय बच्चों को अपने यहां ट्यूशन में बुला रहे हैं. यही वजह है कि ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है, जो यह रिपोर्ट की पुष्टि कर रही है. इसके अलावा कोरोना के कारण बीते दो-तीन वर्षों में बच्चों में लिखने और पढ़ने की क्षमता घटी है. इसकी वजह है मोबाइल पर पढ़ाई, मोबाइल पर पढ़ाई के दौरान कई सारे नोटिफिकेशन आते हैं जो ध्यान डिस्ट्रैक्ट करता है और कोरोना के दौरान पढ़ाई काफी प्रभावित हुई और बच्चों के लिखने की आदत कम हुई.

छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की भारी कमीः प्रोफेसर बीएन प्रसाद ने बताया कि शिक्षा व्यवस्था के तीन पिलर हैं और तीनों का मजबूत होना बेहतर शिक्षा व्यवस्था के लिए जरूरी है. पहला है विद्यार्थी, दूसरे हैं शिक्षक और तीसरा इंफ्रास्ट्रक्चर. प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है. यह एक अच्छी खबर है, लेकिन विद्यार्थियों के अनुपात में शिक्षकों की संख्या में भारी कमी है. इन सबके अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर में भी काफी कमी है. इसमें लाइब्रेरी का आभाव, बच्चों के लिए शौचालय का अभाव, शुद्ध पेयजल की व्यवस्था, खेलकूद की व्यवस्था इत्यादि तमाम चीजें आती हैं.

सरकारी और निजी स्कूल के बच्चों में काफी अंतरः उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों में खेलकूद की भी सुविधा उपलब्ध नहीं है. वहीं निजी विद्यालयों में छात्रों के अनुपात में अच्छी संख्या में शिक्षकों की उपलब्धता है. इसके अलावा खेलकूद के बीच संसाधन उपलब्ध रहते हैं और खेलकूद से इधर कोई कला संस्कृति में कुछ करना चाहता है तो उसके लिए भी पर्याप्त मौके रखते हैं. प्रोफेसर बीएन प्रसाद ने बताया कि शिक्षा को लेकर जो यह रिपोर्ट बता रहा है उसमें सरकारी और निजी विद्यालयों के छात्रों के शिक्षा के स्तर में भारी अंतर देखने को मिल रहा है.

शिक्षा के स्तर में सुधार नहीं होने से बढ़ेगी गरीब और अमीर की खाईः प्रदेश में 80% से अधिक बच्चे सरकारी विद्यालय में जाते हैं और लगभग 20% बच्चे निजी विद्यालयों में जाते हैं. ऐसे ही में शिक्षा का अगर ऐसा अंतर है तो निश्चित है कि सरकारी विद्यालयों में बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित हो रहे हैं. इसका परिणाम आने वाला समय में यह होगा कि उच्च नौकरियों में सरकारी विद्यालयों से पढ़ने वाले छात्रों की संख्या काफी कम होगी. यह छात्र चपरासी और अन्य लोअर लेवल के नौकरियों को ही ज्वाइन कर पाएंगे. वहीं निजी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलने के कारण यहां के बच्चे आईआईटी, यूपीएससी, जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं में स्थान प्राप्त करेंगे. स्थिति यही रही तो समाज में आने वाले दिनों में गरीब और अमीर के बीच एक बड़ा अंतर पैदा हो जाएगा.

"प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में जो गिरावट आई है, उसका प्रमुख कारण सरकारी विद्यालयों में कॉन्ट्रैक्ट टीचर की नियुक्ति है. कॉन्ट्रैक्ट टीचर को वेतन सामान्य शिक्षक से कम मिलता है और जब तक इनके जॉब की गारंटी ना हो तो, ऐसे शिक्षक कभी भी शिद्दत से बच्चों को नहीं पढ़ा सकते. शिक्षक अब स्कूल में बच्चों को बेहतर पढ़ाने के बजाय बच्चों को अपने यहां ट्यूशन में बुला रहे हैं. यही वजह है कि ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है, जो यह रिपोर्ट की पुष्टि कर रही है. इसके अलावा कोरोना के कारण बीते दो-तीन वर्षों में बच्चों में लिखने और पढ़ने की क्षमता घटी है" - प्रोफेसर डॉ बीएन प्रसाद, समाजशास्त्री

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