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Bihar Politics: बिहार में दलित वोटरों को लेकर Tension..! HAM के अलग होने से JDU के सामने बड़ी चुनौती

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Published : Jun 20, 2023, 8:46 PM IST

Updated : Jun 20, 2023, 11:01 PM IST

बिहार में महागठबंधन से जीतन राम मांझी अलग हो गए. इसके बाद दलित वोट को लेकर सियासत शुरू हो गई है. संतोष सुमन की भारपाई करने के लिए JDU ने रत्नेश सदा को मंत्री बनाया है, लेकिन इसस JDU भारपाई नहीं कर पाएगी. जीतन राम मांझी दलितों के नेता माने जाते हैं, ऐसे में लोकसभा चुनाव में काफी असर पड़ने वाला है. पढ़ें पूरी खबर...

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बिहार में दलित वोटरों को लेकर सियासत

पटनाः लोकसभा चुनाव 2024 से पहले जीतन राम मांझी महागठबंधन से अलग हो गए. इसके बाद दलित वोट बैंक अपने पाले में करने के लिए महागठबंधन के साथ साथ सभी पार्टी पूरी जोर लगाई हुई है. दलित वोट किसके पाले में जाएगा, इसको लेकर नेता लगातार दावा कर रहे हैं. बिहार में 16% दलित वोटर हैं. महागठबंधन में एक दर्जन दलित नेता हैं, लेकिन बिहार में दलितों के बड़े नेता के रूप में जीतन राम मांझी और चिराग पासवान की पहचान होती है.

यह भी पढ़ेंः Opposition Unity Meeting: 'सीएम आवास में नीतीश कुमार कर रहे हैं बारातियों का जुटान, दूल्हा तय नहीं'.. सुशील कुमार मोदी

दलित वोट पर पड़ेगा असरः 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी एकजुटता की बात हो रही है, लेकिन बिहार में लोकसभा की 6 सीटें दलितों के लिए रिजर्व है. मांझी के महागठबंधन से निकलने का बड़ा असर हो सकता है. एक दर्जन सीटों पर जहां दलित हार जीत तय करते हैं, इससे प्रभाव पड़ सकता है. बता दें कि रामविलास पासवान के रहते ही जीतन राम मांझी दलितों के बड़े नेता होने का दावा करते रहे हैं. चिराग पासवान बड़े दलित नेता के रूप में पहचान बना चुके हैं.

6 सीट दलित के लिए रिजर्वः चिराग पहले नीतीश से दूर हैं. अब जीतन राम ने भी दूरी बना ली. 40 सीटों में से 6 सीट हाजीपुर, समस्तीपुर, जमुई, गोपालगंज, सासाराम, और गया दलितों के लिए रिजर्व है. हाजीपुर समस्तीपुर और जमुई रामविलास परिवार के कब्जे में है. सासाराम सीट बीजेपी के पास है तो गोपालगंज और गया सीट जदयू के पास है. 2019 लोस चुनाव में जीतन राम मांझी गया से चुनाव लड़े थे, लेकिन जदयू के उम्मीदवार ने उन्हें लगभग डेढ़ लाख मतों से पराजित कर दिया था. इसके बावजूद दलित के बीच जीतन राम मांझी की विशेष पहचान है. मगध क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ है.

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भरपाई एक बड़ी चुनौतीः वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहते हैं कि जीतन राम मांझी के महागठबंधन से निकलने के कारण दलित वोट बैंक को लेकर एक बड़ा गैप महागठबंधन में बन गया है, जिसकी भरपाई एक बड़ी चुनौती है. निश्चित रूप से 2024 के चुनाव में 6 सीट है जो दलितों के लिए रिजर्व है, जिसमें तीन सीट रामविलास पासवान के परिवार में है. ऐसे में तीन सीट के लिए दोनों गठबंधन को पूरी शक्ति लगानी पड़ेगी.

"लोकसभा चुनाव में 6 सीट दलितों के लिए रिजर्व है. इन 6 सीटों ने तीन सीट रामविलास पासवाल के परिवार के पास है. जीतन राम मांझी के महागठबंधन से निकलने के कारण दलित वोट बैंक को लेकर एक बड़ा गैप महागठबंधन में बन गया, जिसकी भारपाई करना चुनौती बनेगी." -रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

दावा करने से कोई फर्क नहींः हाल में संतोष सुमन के इस्तीफा के बाद नीतीश कुमार ने रत्नेश सदा को मंत्री बनाया. रत्नेश ने कहा कि दावा करने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. अभी हमने ऐलान कर दिया है कि 15 जुलाई तक में 38 जिला के महादलित वोटर हमारे सीएम के नेतृत्व को स्वीकार करेगा. पहले वे कहते थे कि BJP गरीब के हितैसी नहीं है, लेकिन आज वही मिलने गए हैं. आज BJP कैसे हितैसी हो गई. जीतन राम मांझी अपने स्वार्थ के हित के लिए वहां गए हैं. जीतन राम मांझी पर जाने का कोई असर लोकसभा चुनाव में नहीं पड़ेगा.

"जुलाई में महादलित परिवार पूरी तरह से जदयू में शामिल हो जाएगा. जीतन राम मांझी को बड़ा नेता मानने से भी इंकार कर रहे हैं. जीतन राम मांझी अपने स्वार्थ के लिए अलग होकर वहां गए हैं. पहले कहते थे कि BJP गरीबों का हितैसी नहीं है, लेकिन आज हितैसी हो गई है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है." -रत्नेश सदा, मंत्री, बिहार सरकार

हमारे वोट से घबरा गएः इधर HAM के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष सुमन ने कहा कि ये सच्चाई है कि जीतन राम मांझी बड़े नेता हैं. जीतन राम मांझी के पास गरीबों का अपार समर्थन है. जब लोगों के समर्थन से आगे आने लगे तो इसे देखर बौखलाहट होने लगा. ये लोग झूठे तौर पर नेता बने हुए हैं. उन्हें डर था कि उनकी पोल खुल जाएगी और हम उनसे आगे निकल जाएंगे, इसलिए ऐसा हुआ. हमलोग जहां रहेंगे, सड़क पर संघर्ष करेंगे. लोगों के बीच जाएंगे.

"जीतन राम मांझी बड़े नेता है और उनके समर्थन के कारण जिस प्रकार से पार्टी आगे बढ़ रही थी, उसी के कारण बेचैनी थी. इसलिए चाहते थे कि हमारा शट डाउन कर दें. इसलिए हमलोग अलग हो गए. हम लोग जनता के बीच जाएंगे और अपनी बात रखेंगे. सड़क पर संघर्ष करेंगे." -संतोष सुमन, राष्ट्रीय अध्यक्ष, HAM

जीतन-चिराग महागठबंधन के लिए चुनौतीः विस चुनाव 2025 की बात करें तो इसमें भी दलित वोट बैंक को लेकर असर पड़ने वाला है. 243 सीट में 39 सीटों पर दलित विधायक हैं. इसमें भाजपा के 11, जदयू के आठ, राजद के आठ, कांग्रेस के 5, हम के तीन, माले के तीन और सीपीआई के एक हैं. इसमें महागठबंधन का पलड़ा भारी है. लोकसभा रिजल्ट 6 सीटों की बात करें तो गठबंधन के पास केवल 2 सीट है. जीतन राम मांझी मुसहर समाज से आते हैं 16 प्रतिशत दलित वोट बैंक में लगभग 4 से 5% मुसहर समाज है. पासवान समाज भी 5% के करीब है. ऐसे में जीतन राम और चिराग महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती हैं.

बिहार में दलित वोटरों को लेकर सियासत

पटनाः लोकसभा चुनाव 2024 से पहले जीतन राम मांझी महागठबंधन से अलग हो गए. इसके बाद दलित वोट बैंक अपने पाले में करने के लिए महागठबंधन के साथ साथ सभी पार्टी पूरी जोर लगाई हुई है. दलित वोट किसके पाले में जाएगा, इसको लेकर नेता लगातार दावा कर रहे हैं. बिहार में 16% दलित वोटर हैं. महागठबंधन में एक दर्जन दलित नेता हैं, लेकिन बिहार में दलितों के बड़े नेता के रूप में जीतन राम मांझी और चिराग पासवान की पहचान होती है.

यह भी पढ़ेंः Opposition Unity Meeting: 'सीएम आवास में नीतीश कुमार कर रहे हैं बारातियों का जुटान, दूल्हा तय नहीं'.. सुशील कुमार मोदी

दलित वोट पर पड़ेगा असरः 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी एकजुटता की बात हो रही है, लेकिन बिहार में लोकसभा की 6 सीटें दलितों के लिए रिजर्व है. मांझी के महागठबंधन से निकलने का बड़ा असर हो सकता है. एक दर्जन सीटों पर जहां दलित हार जीत तय करते हैं, इससे प्रभाव पड़ सकता है. बता दें कि रामविलास पासवान के रहते ही जीतन राम मांझी दलितों के बड़े नेता होने का दावा करते रहे हैं. चिराग पासवान बड़े दलित नेता के रूप में पहचान बना चुके हैं.

6 सीट दलित के लिए रिजर्वः चिराग पहले नीतीश से दूर हैं. अब जीतन राम ने भी दूरी बना ली. 40 सीटों में से 6 सीट हाजीपुर, समस्तीपुर, जमुई, गोपालगंज, सासाराम, और गया दलितों के लिए रिजर्व है. हाजीपुर समस्तीपुर और जमुई रामविलास परिवार के कब्जे में है. सासाराम सीट बीजेपी के पास है तो गोपालगंज और गया सीट जदयू के पास है. 2019 लोस चुनाव में जीतन राम मांझी गया से चुनाव लड़े थे, लेकिन जदयू के उम्मीदवार ने उन्हें लगभग डेढ़ लाख मतों से पराजित कर दिया था. इसके बावजूद दलित के बीच जीतन राम मांझी की विशेष पहचान है. मगध क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ है.

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भरपाई एक बड़ी चुनौतीः वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहते हैं कि जीतन राम मांझी के महागठबंधन से निकलने के कारण दलित वोट बैंक को लेकर एक बड़ा गैप महागठबंधन में बन गया है, जिसकी भरपाई एक बड़ी चुनौती है. निश्चित रूप से 2024 के चुनाव में 6 सीट है जो दलितों के लिए रिजर्व है, जिसमें तीन सीट रामविलास पासवान के परिवार में है. ऐसे में तीन सीट के लिए दोनों गठबंधन को पूरी शक्ति लगानी पड़ेगी.

"लोकसभा चुनाव में 6 सीट दलितों के लिए रिजर्व है. इन 6 सीटों ने तीन सीट रामविलास पासवाल के परिवार के पास है. जीतन राम मांझी के महागठबंधन से निकलने के कारण दलित वोट बैंक को लेकर एक बड़ा गैप महागठबंधन में बन गया, जिसकी भारपाई करना चुनौती बनेगी." -रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

दावा करने से कोई फर्क नहींः हाल में संतोष सुमन के इस्तीफा के बाद नीतीश कुमार ने रत्नेश सदा को मंत्री बनाया. रत्नेश ने कहा कि दावा करने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. अभी हमने ऐलान कर दिया है कि 15 जुलाई तक में 38 जिला के महादलित वोटर हमारे सीएम के नेतृत्व को स्वीकार करेगा. पहले वे कहते थे कि BJP गरीब के हितैसी नहीं है, लेकिन आज वही मिलने गए हैं. आज BJP कैसे हितैसी हो गई. जीतन राम मांझी अपने स्वार्थ के हित के लिए वहां गए हैं. जीतन राम मांझी पर जाने का कोई असर लोकसभा चुनाव में नहीं पड़ेगा.

"जुलाई में महादलित परिवार पूरी तरह से जदयू में शामिल हो जाएगा. जीतन राम मांझी को बड़ा नेता मानने से भी इंकार कर रहे हैं. जीतन राम मांझी अपने स्वार्थ के लिए अलग होकर वहां गए हैं. पहले कहते थे कि BJP गरीबों का हितैसी नहीं है, लेकिन आज हितैसी हो गई है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है." -रत्नेश सदा, मंत्री, बिहार सरकार

हमारे वोट से घबरा गएः इधर HAM के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष सुमन ने कहा कि ये सच्चाई है कि जीतन राम मांझी बड़े नेता हैं. जीतन राम मांझी के पास गरीबों का अपार समर्थन है. जब लोगों के समर्थन से आगे आने लगे तो इसे देखर बौखलाहट होने लगा. ये लोग झूठे तौर पर नेता बने हुए हैं. उन्हें डर था कि उनकी पोल खुल जाएगी और हम उनसे आगे निकल जाएंगे, इसलिए ऐसा हुआ. हमलोग जहां रहेंगे, सड़क पर संघर्ष करेंगे. लोगों के बीच जाएंगे.

"जीतन राम मांझी बड़े नेता है और उनके समर्थन के कारण जिस प्रकार से पार्टी आगे बढ़ रही थी, उसी के कारण बेचैनी थी. इसलिए चाहते थे कि हमारा शट डाउन कर दें. इसलिए हमलोग अलग हो गए. हम लोग जनता के बीच जाएंगे और अपनी बात रखेंगे. सड़क पर संघर्ष करेंगे." -संतोष सुमन, राष्ट्रीय अध्यक्ष, HAM

जीतन-चिराग महागठबंधन के लिए चुनौतीः विस चुनाव 2025 की बात करें तो इसमें भी दलित वोट बैंक को लेकर असर पड़ने वाला है. 243 सीट में 39 सीटों पर दलित विधायक हैं. इसमें भाजपा के 11, जदयू के आठ, राजद के आठ, कांग्रेस के 5, हम के तीन, माले के तीन और सीपीआई के एक हैं. इसमें महागठबंधन का पलड़ा भारी है. लोकसभा रिजल्ट 6 सीटों की बात करें तो गठबंधन के पास केवल 2 सीट है. जीतन राम मांझी मुसहर समाज से आते हैं 16 प्रतिशत दलित वोट बैंक में लगभग 4 से 5% मुसहर समाज है. पासवान समाज भी 5% के करीब है. ऐसे में जीतन राम और चिराग महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती हैं.

Last Updated : Jun 20, 2023, 11:01 PM IST
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