पटना: 90 के दशक में बिहार की छवि अपहरण उद्योग के रूप में स्थापित हुई थी. इसको लेकर नामी गिरामी निर्देशक प्रकाश झा ने अपहरण नाम से फिल्म बनाई.अपहरण फिल्म इसलिए सुर्खियों में रही क्योंकि यह फिल्म उस समय बिहार का आईना था. उस समय बिहार में अपहरण के धंधे में कई ऐसे गिरोह सक्रिय थे जिनका राजनेताओं से या तो कनेक्शन था या फिर वो खुद जनप्रतिनिधि थे.
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जब बिहार में अपहरण बन गया था उद्योग: अपहरण के डर से डॉक्टर नौ बजे रात के बाद मरीज देखना छोड़ चुके थे और आम लोग अपने बच्चे को पूर्ण सुरक्षा में स्कूल भेजने लगे थे. स्वाभाविक है जिस बात को लेकर सबसे ज्यादा डर हो उसको लेकर पूरा प्रदेश सशंकित रहता था. बिहार में जितने भी अपहरण की घटनाएं हुई, उनमें से ज्यादातर फिरौती देकर वापस लौटे लेकिन कई ऐसे मामले भी हुए जिसमें अपहृत की जान लेकर फिरौती मांगी गयी और फिरौती की रकम देने के बाद उसकी डेड बॉडी रिकवर हुई. लेकिन कुछ ऐसे मामले भी है जिसकी गुत्थी आज तक नहीं सुलझ सकी है कि अपहरण के बाद अपहृत कहां और किस हाल में है, जिन्दा भी है या उन्हें मार कर कहीं फेंक दिया गया है.
पटना के राजा बाजार के रहने वाले आकाश का अपहरण: पटना के राजा बाजार के मछली गली में रहने वाला आकाश सुबह सात बजे स्कूल के लिए वैन से निकला ही था कि जेडी विमेन्स कॉलेज के सामने वाली गली में पहले से घात लगाए अपराधियों ने हथियार के बल पर उसे उठा लिया. बिहार में नीतीश कुमार की सरकार बनी ही थी. दिन दहाड़े इस अपहरण के बाद सरकार की खूब फजीहत हुई थी और आकाश की बरामदगी के लिए करीब 4 माह तक काई विशेष टीमें लगी रही,लेकिन परिणाम आज तक नहीं आ पाया है. अप्रैल 2008 में आकाश के अपहरण के बाद पुलिस ने बहुत खाक छानी लेकिन आज तक आकाश के अपहरण की गुत्थी नहीं सुलझ पायी है. आकाश के पिता योगेन्द्र पाण्डेय आज भी अपने इकलौते बेटे के इंतजार में पलकें बिछाए बैठे हैं. योगेन्द्र पाण्डेय की मानें तो अपहरण के तत्काल बाद पुलिस सही दिशा में अनुसंधान को आगे नहीं बढ़ाई, इस वजह से उनका बेटा बरामद नहीं हो सका.
मुजफ्फरपुर की नवरुणा का अपहरण: ऐसे ही एक मामला मुजफ्फरपुर की बेटी नवरुणा का है. 17-18 सितम्बर 2012 की रात मुजफ्फरपुर के नगर थाना क्षेत्र के जवाहरलाल रोड स्थित आवास से सोयी हुई अवस्था में 13 वर्षीय नवरुणा को अगवा कर लिया गया था. शुरु में इसकी जांच बिहार पुलिस ने की और बाद में सीआईडी को इस मामले की जांच का जिम्मा दिया गया. जब कोई सफलता नहीं मिली तो मामले की जांच सीबीआई को दे दिया गया. सीबीआई भी इस मामले को करीब 6 साल तक देखी और आखिर में बिना नतीजे पर आये 24 नवम्बर 2020 को विशेष कोर्ट में अंतिम प्रपत्र दाखिल कर दिया. 46 पेज के अपने अंतिम प्रपत्र में कोई साक्ष्य न मिलने का हवाला देकर सीबीआई ने इस मामले की जांच बंद कर दी. अभी भी नवरुणा के माता पिता कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.
मुजफ्फरपुर की खुशी का अपहरण: बिहार की एक और पांच वर्षीय बेटी खुशी कुमारी का अब तक कोई सुराग नहीं मिल पाया है. मुजफ्फरपुर के ब्रह्मपुरा थाना क्षेत्र के लक्ष्मी चौक के पमरिया टोला के सब्जी विक्रेता राजन साह की पाच वर्षीय बेटी खुशी 16 फरवरी 2021 से लापता है. खुशी की बरामदगी के लिए मुजफ्फरपुर पुलिस और सीआईडी खाक चुकी है लेकिन अब तक इस मामले का निष्पादन नहीं सका है. कई बार इस मामले को लेकर कोर्ट ने भी निर्देश दिया लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात.अब हाई कोर्ट के निर्देश पर इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है और जानकारी देने वाले को पांच लाख रुपये इनाम देने की घोषणा की है. खुशी के माता पिता अभी भी अपनी बेटी के इंतजार में हैं.
हाजीपुर में पदस्थापित दारोगा का अपहरण: वर्ष 2004 में हाजीपुर के सदर थाने में पदस्थापित दारोगा विशेश्वर राम ड्यूटी कर घर लौटने के क्रम में अगवा कर लिए गए थे. विशेश्वर के पास उसका सर्विस रिवाल्वर भी था लेकिन आज तक न दारोगा का कोई सुराग मिल पाया न ही सर्विस रिवाल्वर ही बरामद हो सका. दारोगा के परिजन डीजीपी और मुख्यमंत्री से कई बार गुहार लगा चुके हैं लेकिन मामले की गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी है. विशेश्वर राम की बेटी की मानें तो पुलिस की लापरवाही की वजह से उसके पिता नहीं मिल पाये.
अररिया से नाबालिग लड़की का अपहरण:अररिया जिले के ताराबाड़ी थाना क्षेत्र में रहने वाली महिला अपनी नाबालिग बेटी के अपहरण के बाद दर-दर की ठोकरें खा रही हैं. 9 जुलाई 2022 को उसकी नाबालिग बेटी का अपहरण हो गया था लेकिन अब तक कोई सुराग नहीं मिल पाया है. लड़की की मां ने ताडवाडी थाना अध्यक्ष पर गंभीर आरोप लगाए हैं.
मधेपुरा से नाबालिग का अपहरण: दिसम्बर 2022 में मधेपुरा नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड नम्बर 15 में रहने वाले राजेश पासवान की बेटी ज्योति को कोई सुराग नहीं मिल पाया है. थाने में अपहरण का मुकदमा दर्ज है लेकिन अब तक लड़की का कोई अता-पता नहीं है. परिजन अपनी बेटी की घर वापसी के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं लेकिन अभी तक पुलिस अनुसंधान जारी है.
ऐसे मामले बने बड़ी चुनौती: अपहृत को जिन्दा या मुर्दा बरामद करना पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती होती है. ऐसा नहीं होने की वजह से केस को क्लोज करना मुश्किल होता है. बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक अभयानंद की मानें तो ऐसे मामले में पुलिस एफआरटी (नो क्लू) कर रिपोर्ट कोर्ट को भेज देती है. ये पुलिस के लिए फेल्योर माना जाता है.