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5 राज्यों में से JDU केवल 2 राज्यों में लड़ रही चुनाव, ऐसे कैसे पूरा होगा राष्ट्रीय पार्टी बनने का सपना

देश के 5 राज्यों में चुनावी प्रक्रिया चल रही है. बंगाल और असम का चुनाव चर्चा में हैं. दोनों जगह पर बिहार की सत्ताधारी दल जदयू चुनाव लड़ रही है. लेकिन चुनाव प्रचार में नीतीश कुमार और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के साथ बड़े नेता नहीं जा रहे हैं. एक तरफ पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने की बात नीतीश कुमार और दल के वरिष्ठ नेता करते रहे हैं लेकिन प्रचार से भी दूर हैं. ऐसे में क्षेत्रीय नेताओं के भरोसे पार्टी कैसे मुकाम हासिल करेगी.

पटना
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Published : Apr 4, 2021, 6:01 PM IST

पटना: देश में अभी 7 पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा चुनाव आयोग ने दे रखा है. वहीं, 35 राज्य स्तरीय दलों को मान्यता भी चुनाव आयोग ने दी है. 300 से अधिक क्षेत्रीय दल भी हैं. पश्चिम बंगाल और असम चुनाव में जदयू ने भी कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. पहले जदयू के तेवर अलग दिख रहे थे. जदयू ने बंगाल में 75 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन अब काफी कम सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ रही है.

राष्ट्रीय पार्टी बनने का सपना
राष्ट्रीय पार्टी बनने का सपना

ये भी पढ़ें- 'पश्चिम बंगाल चुनाव' में नीतीश डटे पर 'प्रचार' से क्यों हटे ?

राष्ट्रीय पार्टी बनने का अधूरा सपना
असम में पार्टी कुछ सीटों पर लड़ रही हैं, लेकिन राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद में जदयू नेताओं ने पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने की बात कही थी. ऐसे में जब देश के पांच राज्यों में चुनाव हो रहा है और पार्टी दिखाने के लिए केवल 2 राज्यों में चुनाव लड़ रही है और पार्टी के शीर्ष नेताओं ने इन चुनावों से दूरी बना रखी है.

जेडीयू का प्रशिक्षण कार्यक्रम
जेडीयू का प्रशिक्षण कार्यक्रम

सीएम नीतीश ने प्रचार से बनाई दूरी
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनाव प्रचार से दूरी बना रखी है. वहीं, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता भी चुनाव प्रचार में नहीं दिख रहे हैं. बिहार के मंत्री और पार्टी के सांसद भी इस बार चुनाव प्रचार में नहीं लगाए गए हैं, तो राष्ट्रीय पार्टी का सपना कैसे पूरा होगा.

''मिजोरम और अरुणाचल में भी पार्टी के नेता चुनाव प्रचार में नहीं गए थे, लेकिन वहां हमारी उपस्थिति हुई तो पार्टी के उन राज्यों के नेता पूरी ताकत से चुनाव मैदान में हैं और बेहतर रिजल्ट देंगे''- श्रवण कुमार, जदयू मंत्री

पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने साफ कर दिया है कि नीतीश कुमार चुनाव प्रचार में नहीं जाएंगे. वहीं, अपने बारे में उन्होंने बताया कि अभी तो मैं बिहार में पार्टी संगठन के काम को देख रहा हूं. प्रशिक्षण कार्यक्रम में लगा हूं.

जेडीयू का प्रशिक्षण कार्यक्रम
जेडीयू का प्रशिक्षण कार्यक्रम

''नीतीश कुमार पहले भी झारखंड, दिल्ली, कर्नाटक और कई राज्यों में चुनाव प्रचार कर चुके हैं, लेकिन वहां जदयू का खाता तक नहीं खुला. जब बिहार में नीतीश कुमार को लोगों ने नापसंद कर दिया, तो दूसरे राज्यों में जनता इन्हें क्यों पसंद करेगी. तेजस्वी यादव की आज कई राज्यों में लोकप्रियता देखने को मिल रही है. चुनाव प्रचार में काफी भीड़ उमड़ रही है. जदयू के लोग कुछ भी दावा करें, लेकिन बिहार की जनता ने बिहार में ही इन्हें तीन नंबर की पार्टी बना दिया है, तो दूसरे राज्यों में जाकर ये क्या करेंगे''-मृत्युंजय तिवारी, प्रवक्ता, आरजेडी

केवल बिहार में ही जदयू का प्रदर्शन बेहतर
जदयू का गठन 30 अक्टूबर 2003 को शरद गुट, लोक शक्ति पार्टी और समता पार्टी के विलय के साथ हुआ था. 2005 से नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में जदयू का सिक्का चल रहा है. हालांकि, बीजेपी से अलग होने पर 2014 में जदयू को केवल लोकसभा में 2 सीट ही मिली थी. वहीं, 2020 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ रहने पर भी पार्टी को केवल 43 सीट ही मिली है. इसके बावजूद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने हुए हैं.

स्थानीय नेताओं के भरोसे पार्टी को उम्मीद
स्थानीय नेताओं के भरोसे पार्टी को उम्मीद

ये भी पढ़ें- ममता का नंदीग्राम से चुनाव लड़ना बड़ी गलती साबित हुई : प्रधानमंत्री

विधानसभा चुनाव में जदयू का परफॉर्मेंस

वर्षचुनाव लड़े जीतेवोट प्रतिशत
2005 139 88 20.5
2010 141 115 22.9
2015 101 71 16.83
2020 115 43 13.5

लोकसभा चुनाव में जदयू का परफॉर्मेंस

वर्षचुनाव लड़ेजीते वोट प्रतिशत
2004 2406 22.36
2009 2520 24.04
2014 3802 16.04
2019 1716 -

दूसरे राज्यों में जदयू की कोई उपलब्धि नहीं
बिहार छोड़कर पार्टी का ऐसे दूसरे राज्यों में बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं रही है. कुछ राज्यों में जरूर पार्टी के विधायक बने हैं, लेकिन चुनाव में पार्टी का बड़े राज्यों में अब तक प्रदर्शन खास नहीं रहा है. उत्तर प्रदेश, झारखंड, दिल्ली, कर्नाटक, गुजरात सहित अन्य राज्यों की बात करें, तो जदयू के उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए.

देखिए ये रिपोर्ट

कैसे मिलता है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा?
कुछ अलग परिस्थितियों में अरुणाचल में जदयू के जरूर 7 विधायक चुनाव जीते थे. लेकिन उसमें से 6 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए हैं. नागालैंड में भी पार्टी का एक विधायक है, जो सरकार में शामिल हैं. राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए तीन शर्त है. जो पार्टी इन तीन शर्तों पर खरा उतरती है, उसे चुनाव आयोग राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देती है.

  • 3 राज्यों के लोकसभा चुनाव में कम से कम 2 फीसदी सीटें जीते.
  • 4 लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा या विधानसभा चुनाव में 6 फीसदी वोट मिलना चाहिए.
  • कोई पार्टी 4 या इससे अधिक राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मान्यता रखें.
  • राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद चुनाव आयोग पूरे देश में पार्टी के लिये एक चिन्ह दे देता है.

सपने को पूरा करने से जदयू काफी दूर
फिलहाल जदयू ने बिहार के अलावा किसी बड़े राज्य में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है. कुछ छोटे राज्यों में कुछ सीटें जरूर जीती हैं. लेकिन उससे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा जदयू को नहीं मिल पाया है. बिहार के अलावा जदयू को अरुणाचल में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिला हुआ है. लेकिन, कम से कम चार राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिलेगा, तभी जदयू को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल सकता है. जिससे जदयू अभी काफी दूर है.

अपनी ही घोषणा को कैसे पूरा करेगी जदयू
नीतीश कुमार ने अब उपेंद्र कुशवाहा को भी अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है और पार्टी के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष भी बनाया है. उसके बावजूद पार्टी पांच राज्यों के चुनाव से अपने शीर्ष नेताओं को दूर रखा है, तो यह बड़ा सवाल है कि आखिर पार्टी की जो घोषणा है, राष्ट्रीय पार्टी बनने की, वो कैसे पूरा होगा.

स्थानीय नेताओं के भरोसे पार्टी को उम्मीद
राजनीतिक पंडित भी कहते हैं कि बीजेपी ने असम और बंगाल में पूरी ताकत लगा रखी है. बिहार में नीतीश कुमार की विधानसभा चुनाव में जो स्थिति हुई उसके बावजूद बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया है, तो हो सकता है कि बीजेपी को नीतीश कुमार नाराज नहीं करना चाहते हैं. दूसरा नीतीश कुमार वहां जाकर बीजेपी के विरोधी नेताओं को भी नाराज करने से बचना चाहते हैं, जिससे आगे अगर सियासत बदले तो उसमें उन्हें कोई मुश्किल नहीं हो.

ये भी पढ़ें- बीजेपी प्रदेश कार्यालय में वाणिज्य प्रकोष्ठ के राज्य कार्यकारिणी की बैठक

अब भी सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब पार्टी के शीर्ष नेता ही प्रचार में नहीं जाएंगे, तो पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने का सपना कैसे पूरा होगा और इसका जवाब फिलहाल पार्टी के नेताओं के पास भी नहीं है. ऐसे फिलहाल पार्टी ने पूरी जिम्मेवारी प्रभारियों और स्थानीय नेताओं के ऊपर ही छोड़ दी है.

ये भी पढ़ें- ममता के बयान पर बिहार में सियासी बवाल, भाजपा बोली- चुप क्यों हैं तेजस्वी

ये भी पढ़ें- 'बिहार-यूपी और गुंडे'... बंगाल सीएम ममता के खिलाफ मुजफ्फरपुर कोर्ट में परिवाद

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पटना: देश में अभी 7 पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा चुनाव आयोग ने दे रखा है. वहीं, 35 राज्य स्तरीय दलों को मान्यता भी चुनाव आयोग ने दी है. 300 से अधिक क्षेत्रीय दल भी हैं. पश्चिम बंगाल और असम चुनाव में जदयू ने भी कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. पहले जदयू के तेवर अलग दिख रहे थे. जदयू ने बंगाल में 75 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन अब काफी कम सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ रही है.

राष्ट्रीय पार्टी बनने का सपना
राष्ट्रीय पार्टी बनने का सपना

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राष्ट्रीय पार्टी बनने का अधूरा सपना
असम में पार्टी कुछ सीटों पर लड़ रही हैं, लेकिन राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद में जदयू नेताओं ने पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने की बात कही थी. ऐसे में जब देश के पांच राज्यों में चुनाव हो रहा है और पार्टी दिखाने के लिए केवल 2 राज्यों में चुनाव लड़ रही है और पार्टी के शीर्ष नेताओं ने इन चुनावों से दूरी बना रखी है.

जेडीयू का प्रशिक्षण कार्यक्रम
जेडीयू का प्रशिक्षण कार्यक्रम

सीएम नीतीश ने प्रचार से बनाई दूरी
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनाव प्रचार से दूरी बना रखी है. वहीं, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता भी चुनाव प्रचार में नहीं दिख रहे हैं. बिहार के मंत्री और पार्टी के सांसद भी इस बार चुनाव प्रचार में नहीं लगाए गए हैं, तो राष्ट्रीय पार्टी का सपना कैसे पूरा होगा.

''मिजोरम और अरुणाचल में भी पार्टी के नेता चुनाव प्रचार में नहीं गए थे, लेकिन वहां हमारी उपस्थिति हुई तो पार्टी के उन राज्यों के नेता पूरी ताकत से चुनाव मैदान में हैं और बेहतर रिजल्ट देंगे''- श्रवण कुमार, जदयू मंत्री

पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने साफ कर दिया है कि नीतीश कुमार चुनाव प्रचार में नहीं जाएंगे. वहीं, अपने बारे में उन्होंने बताया कि अभी तो मैं बिहार में पार्टी संगठन के काम को देख रहा हूं. प्रशिक्षण कार्यक्रम में लगा हूं.

जेडीयू का प्रशिक्षण कार्यक्रम
जेडीयू का प्रशिक्षण कार्यक्रम

''नीतीश कुमार पहले भी झारखंड, दिल्ली, कर्नाटक और कई राज्यों में चुनाव प्रचार कर चुके हैं, लेकिन वहां जदयू का खाता तक नहीं खुला. जब बिहार में नीतीश कुमार को लोगों ने नापसंद कर दिया, तो दूसरे राज्यों में जनता इन्हें क्यों पसंद करेगी. तेजस्वी यादव की आज कई राज्यों में लोकप्रियता देखने को मिल रही है. चुनाव प्रचार में काफी भीड़ उमड़ रही है. जदयू के लोग कुछ भी दावा करें, लेकिन बिहार की जनता ने बिहार में ही इन्हें तीन नंबर की पार्टी बना दिया है, तो दूसरे राज्यों में जाकर ये क्या करेंगे''-मृत्युंजय तिवारी, प्रवक्ता, आरजेडी

केवल बिहार में ही जदयू का प्रदर्शन बेहतर
जदयू का गठन 30 अक्टूबर 2003 को शरद गुट, लोक शक्ति पार्टी और समता पार्टी के विलय के साथ हुआ था. 2005 से नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में जदयू का सिक्का चल रहा है. हालांकि, बीजेपी से अलग होने पर 2014 में जदयू को केवल लोकसभा में 2 सीट ही मिली थी. वहीं, 2020 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ रहने पर भी पार्टी को केवल 43 सीट ही मिली है. इसके बावजूद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने हुए हैं.

स्थानीय नेताओं के भरोसे पार्टी को उम्मीद
स्थानीय नेताओं के भरोसे पार्टी को उम्मीद

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विधानसभा चुनाव में जदयू का परफॉर्मेंस

वर्षचुनाव लड़े जीतेवोट प्रतिशत
2005 139 88 20.5
2010 141 115 22.9
2015 101 71 16.83
2020 115 43 13.5

लोकसभा चुनाव में जदयू का परफॉर्मेंस

वर्षचुनाव लड़ेजीते वोट प्रतिशत
2004 2406 22.36
2009 2520 24.04
2014 3802 16.04
2019 1716 -

दूसरे राज्यों में जदयू की कोई उपलब्धि नहीं
बिहार छोड़कर पार्टी का ऐसे दूसरे राज्यों में बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं रही है. कुछ राज्यों में जरूर पार्टी के विधायक बने हैं, लेकिन चुनाव में पार्टी का बड़े राज्यों में अब तक प्रदर्शन खास नहीं रहा है. उत्तर प्रदेश, झारखंड, दिल्ली, कर्नाटक, गुजरात सहित अन्य राज्यों की बात करें, तो जदयू के उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए.

देखिए ये रिपोर्ट

कैसे मिलता है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा?
कुछ अलग परिस्थितियों में अरुणाचल में जदयू के जरूर 7 विधायक चुनाव जीते थे. लेकिन उसमें से 6 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए हैं. नागालैंड में भी पार्टी का एक विधायक है, जो सरकार में शामिल हैं. राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए तीन शर्त है. जो पार्टी इन तीन शर्तों पर खरा उतरती है, उसे चुनाव आयोग राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देती है.

  • 3 राज्यों के लोकसभा चुनाव में कम से कम 2 फीसदी सीटें जीते.
  • 4 लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा या विधानसभा चुनाव में 6 फीसदी वोट मिलना चाहिए.
  • कोई पार्टी 4 या इससे अधिक राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मान्यता रखें.
  • राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद चुनाव आयोग पूरे देश में पार्टी के लिये एक चिन्ह दे देता है.

सपने को पूरा करने से जदयू काफी दूर
फिलहाल जदयू ने बिहार के अलावा किसी बड़े राज्य में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है. कुछ छोटे राज्यों में कुछ सीटें जरूर जीती हैं. लेकिन उससे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा जदयू को नहीं मिल पाया है. बिहार के अलावा जदयू को अरुणाचल में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिला हुआ है. लेकिन, कम से कम चार राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिलेगा, तभी जदयू को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल सकता है. जिससे जदयू अभी काफी दूर है.

अपनी ही घोषणा को कैसे पूरा करेगी जदयू
नीतीश कुमार ने अब उपेंद्र कुशवाहा को भी अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है और पार्टी के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष भी बनाया है. उसके बावजूद पार्टी पांच राज्यों के चुनाव से अपने शीर्ष नेताओं को दूर रखा है, तो यह बड़ा सवाल है कि आखिर पार्टी की जो घोषणा है, राष्ट्रीय पार्टी बनने की, वो कैसे पूरा होगा.

स्थानीय नेताओं के भरोसे पार्टी को उम्मीद
राजनीतिक पंडित भी कहते हैं कि बीजेपी ने असम और बंगाल में पूरी ताकत लगा रखी है. बिहार में नीतीश कुमार की विधानसभा चुनाव में जो स्थिति हुई उसके बावजूद बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया है, तो हो सकता है कि बीजेपी को नीतीश कुमार नाराज नहीं करना चाहते हैं. दूसरा नीतीश कुमार वहां जाकर बीजेपी के विरोधी नेताओं को भी नाराज करने से बचना चाहते हैं, जिससे आगे अगर सियासत बदले तो उसमें उन्हें कोई मुश्किल नहीं हो.

ये भी पढ़ें- बीजेपी प्रदेश कार्यालय में वाणिज्य प्रकोष्ठ के राज्य कार्यकारिणी की बैठक

अब भी सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब पार्टी के शीर्ष नेता ही प्रचार में नहीं जाएंगे, तो पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने का सपना कैसे पूरा होगा और इसका जवाब फिलहाल पार्टी के नेताओं के पास भी नहीं है. ऐसे फिलहाल पार्टी ने पूरी जिम्मेवारी प्रभारियों और स्थानीय नेताओं के ऊपर ही छोड़ दी है.

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