पटना: देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी बढ़ी हुई है. पूरे देश की नजर मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव पर है. नवंबर में होने वाले चुनाव और 3 दिसंबर के रिजल्ट से लोकसभा चुनाव 2024 की स्थिति भी कुछ हद तक स्पष्ट होगी. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही है लेकिन मध्य प्रदेश चुनाव में जेडीयू, सपा और आम आदमी पार्टी की ओर से कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार उतारने के कारण इंडिया गठबंधन की एकता और भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं. हालांकि अगर जेडीयू की बात करें तो एमपी चुनाव में उसका ट्रैक रिकॉर्ड बहुत ही खराब रहा है.
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मध्य प्रदेश चुनाव में जेडीयू का प्रदर्शन निराशाजनक: बिहार की सत्ता पर 18 सालों से काबिज रहने वाले जनता दल यूनाइटेड का मध्य प्रदेश में प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. वर्ष 2003 में जेडीयू ने मध्य प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा था. 36 सीटों पर जेडीयू की तरफ से उम्मीदवार उतारा गया था. बड़वारा से सरोज बच्चन नायक चुनाव जीते थे, जबकि 33 कैंडिडेट्स की जमानत जब्त हो गई थी. सभी उम्मीदवारों को मिलाकर एक लाख 40 हजार 651 वोट मिले. 2008 में 49 उम्मीदवारों में से किसी की भी जमानत नहीं बची. वोट भी 71 हजार 609 पर सिमट गया.
शरद यादव के साथ के बावजूद शिकस्त: 2013 में जेडीयू के केवल 22 उम्मीदवार मैदान में उतरे लेकिन उनमें से किसी की जमानत नहीं बच पाई. हालांकि 2008 की तुलना में वोट बढ़कर जरूर 85 हजार पार कर गया. वहीं, 2018 में जेडीयू ने उम्मीदवार नहीं दिया. इसका बड़ा कारण यह रहा है कि शरद यादव जेडीयू से अलग हो गए थे. शरद यादव मध्य प्रदेश से ही आते थे, इस कारण जेडीयू उनके बल पर ही चुनाव लड़ता रहा था.
1998 में एक सीट पर जीत: हालांकि जनता दल के रूप में 1998 में भी चुनाव लड़ा गया था. 144 सीटों में केवल एक सीट पर जीत मिली थी. पाटन सीट पर सोबरान सिंह बाबूजी की जीत हुई थी. कुल चार लाख, 96 हजार 951 वोट मिले थे. वहीं अब 2023 के चुनाव में पार्टी की ओर से अब तक 10 उम्मीदवार उतारे जा चुके हैं. पार्टी का मध्य प्रदेश में कोई प्रभाव नहीं है.
आरजेडी और एलजेपी भी एमपी में फिसड्डी साबित: केवल जेडीयू ही नहीं बिहार की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी भी मध्य प्रदेश चुनाव में फिसड्डी साबित हुई है. 1998 में 10 सीटों पर आरजेडी ने चुनाव लड़ा, सभी सीटों पर जमानत जब्त हो गई. 2003 में भी सभी तीनों सीटों पर जमानत नहीं बची. वहीं 2008 के चुनाव में 4 सीट पर पार्टी ने चुनाव लड़ा लेकिन किसी उम्मीदवार की जमानत नहीं बच पाई. हालांकि 2013 और 2018 में आरजेडी ने चुनाव नहीं लड़ा. इस बार भी पार्टी मध्य प्रदेश में चुनाव नहीं लड़ रही है. अगर चिराग पासवान की पार्टी की बात करें तो 2013 में लोजपा ने 28 सीटों पर उम्मीदवार उतारा था लेकिन सभी की जमानत जब्त हो गई.
बिहार में हिट, एमपी में क्यों फ्लॉप?: राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण पांडे का कहना है कि हर बार अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त होने के बावजूद पार्टी इसलिए चुनाव लड़ती है, क्योंकि इससे उनकी पार्टी का विस्तार हो सके और हर दल यह कोशिश करता है. उन्होंने कहा कि बिहार के दल ही नहीं दूसरे राज्यों के दल भी चुनाव लड़ते है लेकिन कमजोर संगठन और जनाधार नहीं होने के कारण ऐसी पार्टियां कुछ कमाल नहीं कर पाती हैं.
"राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए ललन सिंह की अगुवाई में जेडीयू लगातार कोशिश कर रहा है लेकिन लगातार नाकामी ही मिल रही है. जहां तक एमपी चुनाव की बात है तो इसकी चर्चा इसलिए अधिक हो रही है, क्योंकि इंडिया गठबंधन के नीतीश कुमार सूत्रधार हैं. मध्य प्रदेश में 96 सीटों पर समाजवादी पार्टी, आप और जेडीयू चुनाव लड़ रही है, जिसका सीधा नुकसान कांग्रेस को होगा. इसलिए इंडिया गठबंधन की एकजुटता पर सवाल भी उठ रहे हैं"- अरुण पांडे, राजनीतिक विशेषज्ञ
एमपी चुनाव पर क्या कहते हैं जेडीयू नेता?: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जेडीयू के लड़ने के सवाल पर मंत्री संजय झा कहते हैं कि जब एनडीए में थे, तब भी हमलोग अलग-अलग राज्यों में बीजेपी के खिलाफ लड़ते थे. इससे गठबंधन पर कोई फर्क नहीं पड़ता. वहीं मंत्री मदन सहनी भी कहते हैं कि सभी पार्टी अपना विस्तार चाहती है, इसमें क्या दिक्कत है. वैसे भी इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बनाया गया है.
"जब एनडीए में थे, उस समय भी हम लोग चुनाव लड़ते थे. इसलिए इसका बहुत मायने नहीं है. इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव को लेकर बना है, इसलिए इंडिया गठबंधन की एकजुटता पर इसके कारण कोई असर नहीं पड़ने वाला है. पार्टी विस्तार के लिए और राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिले, इसकी कोशिश हो रही है"- संजय झा, जल संसाधन मंत्री
एमपी चुनाव में जेडीयू 10 सीटों पर लड़ेगा: अब तक जिन सीटों पर जेडीयू ने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की है, उनमें पिछोर से चंद्रपाल यादव, राजनगर से रामकुंवर (रानी) रैकवार, विजय राघवगढ़ से शिव नारायण सोनी, थांदला से तोल सिंह भूरिया, पेटलावद से रामेश्वर सिंघार, नरियावली से सीताराम अहिरवार, गोटेगांव से प्रमोद कुमार मेहरा (झरिया), बहोरीबंद से पंकज मोर्या, जबलपुर से संजय जैन और बालाघाट से विजय कुमार पटले का नाम शामिल है.
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