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युवा दे रहे बिहार की सियासत को नई दिशा, सोच के साथ ही बदल गए चुनावी मुद्दे

बिहार की राजनीतिक (Bihar politics) दलों की सियासत तेजी से बदल रही है. खासकर क्षेत्रीय पार्टियों की सियासत में हलचल कुछ ज्यादा ही तेज है. सियासत के इस बदलाव में जो सबसे दिलचस्प तस्वीर दिख रही है वह है युवा राजनेताओं की. पढ़िए पूरी खबर..

Bihar Politics
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Published : Oct 13, 2021, 4:03 PM IST

पटना: बिहार में 2 सीटों पर हो रहे विधानसभा के उपचुनाव (By Election In Bihar) में सभी राजनीतिक दल पूरी ताकत से चुनाव जीतने में लगे हैं. लेकिन अकेले राजद (RJD) ऐसी पार्टी है, जो युवा राजनीति और परिवार की लड़ाई का भी सामना कर रही है. साथ ही चुनाव को लेकर विपक्ष से निपटने की योजना भी तैयार कर रही है.

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राजद में तेज प्रताप की नाराजगी को लेकर भरपाई का कार्य किया जा रहा है. वहीं जमीन पर पकड़ बनाने के लिए मुद्दों का लेखा जोखा भी खड़ा किया जा रहा है. बिहार विधानसभा के 2020 के चुनाव में तमाम राजनीतिक पंडितों का लेखा-जोखा और गुणा गणित सब बिगड़ गया था. बिहार में युवाओं की लहर है और इसे राजनीति में हर कोई भुनाने में जुटा हुआ है.

यह भी पढ़ें- बिहार की जनता करे भी तो क्या! जिसे वोट देती है वो 'परिवार की सियासत' में उलझ पड़ती है

अब की राजनीति में युवा सिर्फ विकास देखता है. जाति, धर्म, संप्रदाय की बातें कभी सियासत में जोड़ी जाती थी. लेकिन आज युवाओं की सियासत में सिर्फ रोजगार है, जो उनके परिवार को मजबूती देता है और देश की मजबूती के लिए किसी भी युवा के परिवार का मजबूत होना जरूरी है. तभी वह देश की मजबूती में अहम भूमिका निभा पाएगा. उपचुनाव के पहले तेज प्रताप यादव ने एक बार फिर से युवा राजनीति की हवा दे दी है.

यह भी पढ़ें- एनडीए में एकजुटता के बावजूद बिहार उपचुनाव में नीतीश की मुश्किल है राह !

2020 के विधानसभा चुनाव के वोटर लिस्ट के अनुसार बिहार में कुछ 7.18 करोड़ मतदाता हैं, जिसमें 3 करोड़ 66 लाख मतदाता 18 से 39 साल के हैं. दरअसल यह वही मतदाता हैं जिनके भीतर रोजगार और व्यवसाय को लेकर सबसे ज्यादा उम्मीदें हिलोरे लेती हैं. यही वह वर्ग है जो राजनीतिक दलों को गति देने का काम करता है.

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तेजस्वी यादव ने इस नब्ज को पकड़ा है. बिहार के 7.8 करोड़ मतदाता में से 3.66 करोड़ युवा हैं जो बिहार की तकदीर बदलने की हैसियत रखते हैं. ऐसे युवाओं को नजरअंदाज करना आसान नहीं है. तेजस्वी ने इस नब्ज को पकड़ रखा है और यही वजह है कि 2 सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव के लिए युवा राजनीति को हवा भी दे रहे हैं.

2014 में जब नरेंद्र मोदी देश की राजनीति के लिए मजबूत होकर बीजेपी को दिशा दे रहे थे तो उन्होंने भी युवाओं को ही सबसे ज्यादा तरजीह दी थी. काला धन, भ्रष्टाचार और युवाओं को रोजगार उनका सबसे बड़ा मुद्दा था. 2015 में नीतीश से अलग होने के बाद नरेंद्र मोदी ने जब अपना चुनावी मुद्दा और बयान शुरू किया था तो बिहार के लिए पढ़ाई, कमाई, दवाई को ही तरजीह दी थी. लेकिन इस बार जाति की सोशल इंजीनियरिंग ज्यादा मजबूत हुई और बीजेपी को इसका फायदा नहीं मिल पाया.

यह भी पढ़ें- मांझी-कुशवाहा और सहनी के बाद कांग्रेस ने भी छोड़ा साथ, क्या महागठबंधन को संभाल नहीं पा रहे तेजस्वी?

बिहार में युवा सियासत को नई दिशा दे रही हैं. युवा आज की राजनीति में निर्णायक भूमिका अदा करने के लिए भी तैयार हैं. तेजस्वी यादव , चिराग पासवान, पुष्पम प्रिया, कन्हैया कुमार और हार्दिक पटेल सहित कई राजनीतिक युवा आज बिहार को नई दिशा के तहत तैयार कर रहे हैं.

2 सीटों पर हो रहे विधानसभा का उपचुनाव किस राजनीतिक दल को कितना फायदा देगा कहा नहीं जा सकता है. लेकिन तेज प्रताप यादव ने युवा राजनीति की जिस चिराग को जला दिया है, उस लालटेन की लौ से कौन कितनी बड़ी उड़ान भरता है और किसके हाथ कितने मजबूत होते हैं, यह परिणाम तय करेंगे. लेकिन यह तय बात है कि युवा सियासी मुद्दे की बड़ी राजनीति में हैं.

पटना: बिहार में 2 सीटों पर हो रहे विधानसभा के उपचुनाव (By Election In Bihar) में सभी राजनीतिक दल पूरी ताकत से चुनाव जीतने में लगे हैं. लेकिन अकेले राजद (RJD) ऐसी पार्टी है, जो युवा राजनीति और परिवार की लड़ाई का भी सामना कर रही है. साथ ही चुनाव को लेकर विपक्ष से निपटने की योजना भी तैयार कर रही है.

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राजद में तेज प्रताप की नाराजगी को लेकर भरपाई का कार्य किया जा रहा है. वहीं जमीन पर पकड़ बनाने के लिए मुद्दों का लेखा जोखा भी खड़ा किया जा रहा है. बिहार विधानसभा के 2020 के चुनाव में तमाम राजनीतिक पंडितों का लेखा-जोखा और गुणा गणित सब बिगड़ गया था. बिहार में युवाओं की लहर है और इसे राजनीति में हर कोई भुनाने में जुटा हुआ है.

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2020 के विधानसभा चुनाव के वोटर लिस्ट के अनुसार बिहार में कुछ 7.18 करोड़ मतदाता हैं, जिसमें 3 करोड़ 66 लाख मतदाता 18 से 39 साल के हैं. दरअसल यह वही मतदाता हैं जिनके भीतर रोजगार और व्यवसाय को लेकर सबसे ज्यादा उम्मीदें हिलोरे लेती हैं. यही वह वर्ग है जो राजनीतिक दलों को गति देने का काम करता है.

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तेजस्वी यादव ने इस नब्ज को पकड़ा है. बिहार के 7.8 करोड़ मतदाता में से 3.66 करोड़ युवा हैं जो बिहार की तकदीर बदलने की हैसियत रखते हैं. ऐसे युवाओं को नजरअंदाज करना आसान नहीं है. तेजस्वी ने इस नब्ज को पकड़ रखा है और यही वजह है कि 2 सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव के लिए युवा राजनीति को हवा भी दे रहे हैं.

2014 में जब नरेंद्र मोदी देश की राजनीति के लिए मजबूत होकर बीजेपी को दिशा दे रहे थे तो उन्होंने भी युवाओं को ही सबसे ज्यादा तरजीह दी थी. काला धन, भ्रष्टाचार और युवाओं को रोजगार उनका सबसे बड़ा मुद्दा था. 2015 में नीतीश से अलग होने के बाद नरेंद्र मोदी ने जब अपना चुनावी मुद्दा और बयान शुरू किया था तो बिहार के लिए पढ़ाई, कमाई, दवाई को ही तरजीह दी थी. लेकिन इस बार जाति की सोशल इंजीनियरिंग ज्यादा मजबूत हुई और बीजेपी को इसका फायदा नहीं मिल पाया.

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2 सीटों पर हो रहे विधानसभा का उपचुनाव किस राजनीतिक दल को कितना फायदा देगा कहा नहीं जा सकता है. लेकिन तेज प्रताप यादव ने युवा राजनीति की जिस चिराग को जला दिया है, उस लालटेन की लौ से कौन कितनी बड़ी उड़ान भरता है और किसके हाथ कितने मजबूत होते हैं, यह परिणाम तय करेंगे. लेकिन यह तय बात है कि युवा सियासी मुद्दे की बड़ी राजनीति में हैं.

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