पटनाः आज नवरात्र का दूसरा दिन है. आज के दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. साधक इस दिन अपने मन को मां के चरणों में लगाते हैं. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली. इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप का आचरण करने वाली.
मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता है. कहते हैं देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं. शास्त्रों में देवी ब्रह्मचारिणी को हिमालय की पुत्री बताया गया है और हजारों वर्षों तक तपस्या करने पर ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा. इनको ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है. इसलिए माता ब्रह्मचारिणी का स्वरुप एक तपस्विनी का है, जिन्हें सभी विद्याओं का ज्ञाता माना जाता है. मान्यता है कि माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से निर्बुद्धियों को बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है और जीवन में सफलता मिलती है.
ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा विधि:
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए सबसे पहले घर की शुद्धि करें और फिर खुद भी स्नान करें. इसके बाद जिस स्थान पर देवी मां विराजमान हैं उस जगह की शुद्धिकरण करें. फिर देवी की फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें. उन्हें दूध, दही, शक्कर, घी और शहद से स्नान कराएं. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में फूल लेकर प्रार्थना करें. घी और कपूर मिलाकर देवी की आरती करें. देवी को प्रसाद अर्पित करें. प्रसाद के बाद आचमन करें और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें.
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करते हुए निचे लिखा मंत्र बोलें.
ध्यान मंत्र:
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥