पटना: सावन महीने में जहां हर तरफ हर-हर महादेव की गूंज सुनाई पड़ती है. वहीं, इसी महीने में पटना में एक अनोखा आयोजन होता है. फुलवारीशरीफ स्थित देवी स्थान काली मंदिर में ऐतिहासिक माता की डाली निकाली गई. इस पूजा को खप्पड़ पूजा भी कहते हैं. यह पूजा का 201वां वर्ष था.
हवन की अग्नि से की जाती है शहर की परिक्रमा
भव्य पूजन के बाद मंदिर के पुजारी खप्पर में हवन की अग्नि लेकर शहर की परिक्रमा करने के लिए निकलते हैं. इस दौरान पुजारी के पीछे-पीछे हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ माता के जयकारे लगते हुए परिक्रमा में शामिल होती है. इस परिक्रमा में श्रद्धालु अपने हाथों में पारंपरिक हथियार भाला, तलवार, लाठी, त्रिशूल आदि से लैस रहते हैं. लगभग डेढ़ किलोमीटर तक नगर भ्रमण के बाद खप्पर की परिक्रमा मंदिर परसर में आकर संपन्न होती है.
सन 1818 से चली आ रही है परंपरा
खप्पर पूजा को लेकर ऐसी मान्यता है कि करीब 200 साल पहले महामारी से फुलवारी शरीफ और आसपास के सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी. दन्त कथाओं की मानें तो महामारी के समय मंदिर के पुजारी झमेली बाबा को मां काली ने सपने में दर्शन दिया और उनसे कहा कि मेरी पूजा करो और खप्पड़ पूजा निकालो और उस खप्पड़ में जलती आग की खुशबू से महामारी खत्म होगी. लोगों की जान बचाने के लिए झमेली बाबा ने मां की आज्ञा का पालन करते हुए पहली बार माता की डाली पूजा निकली थी. इसके बाद इलाके के सभी लोग ठीक हो गए थे और तब से लेकर आज तक हर वर्ष डाली पूजा की परंपरा चली आ रही है.
देखने को मिलता है हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा
इस बाबत देवी स्थान समिति के सचिव देवेंद्र प्रसाद बताते हैं कि खप्पड़ पूजा ऐतिहासिक पूजा है, जिसके सफल आयोजन में हिन्दू और मुस्लिम मिलकर अपना योगदान देते हैं. मंदिर में सच्चे मन से मांगी गयी हर मनोकामना पूरी होती है. उन्होंने बताया कि इस बार श्रद्धालुओं की भीड़ 70 हजार से भी ज्यादा है.
चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल की तैनाती
वहीं, इस मामले पर फुलवारीशरीफ डीएसपी संजय पांडे ने बताया कि पूजा को लेकर चप्पे-चप्पे पर पुलिस की तैनाती की गई थी. परिक्रमा पूजा शुरु होने से पहले ही पटना की ओर आने-जाने वाले सभी वाहनों को एहतियातन दो किलोमीटर पहले ही रोक लगाकर उनका रुट डायवर्ट कर दिया गया था.