पटनाः 'हैलो..मैं नीतीश कुमार बोल रहा हूं. धैर्य रखिए'...कोरोना हार जाएगा और इसके लिए सभी को मिलकर लड़ना है. मुझे भी नीतीश कुमार ने फोन पर यही कहा कि कोरोना के लिए धैर्य रखना जरूरी है, और जब आपकी बारी आएगी तो टीका लगवा लीजिएगा लेकिन धैर्य रखिए. धैर्य ही कोरोना को मात देगा. धैर्य ही कोरोना को हराएगा.
कैसे धीरज रखें नीतीश जी?
नीतीश कुमार के इस बातचीत के बाद मन में कई सवाल खड़े हुए. बिहार में जितना धीरज रखने की हिम्मत है वह किसी के भीतर है ही नहीं, लेकिन जिस भरोसे को इस सरकार ने तार-तार किया है, सहज अब इस पर विश्वास ही नहीं हो रहा है कि क्या किया जाए? नीतीश कुमार जी जरा यह बताइएगा वह मां कैसे धीरज रखे जिसके पैरों में उसका 25 साल का बेटा ऑटो में ही दम तोड़ गया. वह पिता कैसे धीरज रखेगा जो अपनी बेटे की सांसों के लिए ऑक्सीजन गैस को हाथ जोड़कर मांग रहा था, नहीं मिला बेटा दम तोड़ गया. वह पत्नी यातना को सहती रही कि उसके पति की जिंदगी बच जाएगी, एक डॅाक्टर इस डर में कब अस्पताल की ऑक्सीजन खत्म हो जाएगी. कैसे धीरज रखे वह मां जितका लाल चला गया. कैसे धीरज रखे वह बीबी जिसकी मांग उजड़ गयी. बहन जितकी हिम्मत वाली कलाई छिन गयी, कहां से लाएं धैर्य? बताएं नीतीश जी? आप का फोन आया अच्छा लगा, मुख्यमंत्री जी का फोन था. लेकिन कहां से लाएं धैर्य?
धैर्य न रख पाने की पराकाष्ठा
गंगा में तैरती लाशें उस टूटे के धैर्य की सबसे बड़ी कहानी है. जिसमें अपनों के लिए कुछ न कर पाने का सबसे बड़ा दर्द छुपा है. दवा नहीं मिली. ऑक्सीजन नहीं मिली. लकड़ी नहीं मिली, तो गंगा की गोद में अपनों की लाशों को छोड़कर लोग चले गए. यह टीस तो पूरे जीवन उन्हें सताएगी, वे धीरज कैसे रखें? नीतीश कुमार जी सवाल इसीलिए उठ रहा है कि चुनाव में आप कहे हैं, सुशासन और न्याय के साथ विकास है. आखिर अस्पतालों में डॉक्टर नहीं है, यहां विकास को कहां ग्रहण लग गया? वेंटिलेटर नहीं लगे इसको किसने रोक दिया? मेडिकल स्टाफ बिहार में नहीं हैं. यह बिहार के लोगों के साथ अन्याय क्यों किया गया? न्याय के साथ विकास की दुहाई तो आप देते रहे जनता मानती भी रही. धीरज भी रखी आप पर भरोसा भी किया, लेकिन अब तो धैर्य न रख पाने की पराकाष्ठा हो गई है.
राजनीति के जिन सिद्धांतों को लेकर आप खड़े हुए हैं, उसने बिहार की आत्मा को झकझोर दिया है. अब धैर्य रखने की हर सीमा ही पार हो गई है. कुछ करने की स्थिति जब थी तो बातों का अंबार लगा दिया गया, और अब आम लोगों की जान बचाने की बारी आई तो गंगा में लाशों का अंबार लगा दिया गया. बिहार की जनता ने आपको मुख्यमंत्री बनाया है, लेकिन बिहार की जनता को आप की सरकार ने जो दिया है उसे शायद वह कभी भुला पाएंगे. क्योंकि 15 साल बनाम 15 साल का जो राग आपने गाया उसका भी हिसाब तो जनता को अब आपसे भी चाहिए. सवाल इसलिए भी उठ रहा है कि आपके आसपास के लोग सिर्फ गलत जानकारी ही आपको दे रहे हैं. यह फोन करके बिहार की जनता से यह कहिए कि आप धैर्य रखिए. हम कुछ नहीं करेंगे.
बिहारियों की वधशाला बना बिहार
बिहार के लिए एक सच यह भी है कि जिस लॉकडाउन की दुहाई आप दे रहे हैं, अगर हाईकोर्ट पूरी तैयारी से आप से जवाब नहीं मांगता तो आपके आस-पास जो लालफीताशाही बैठे हैं, मद में चूर नौकरशाही बिहार को गर्त में डाल देते. क्योंकि आपने अपने सभी डीएम से तो पूछ ही लिया था, कि लॉकडाउन लगाया जाए या न लगाया जाए तो आपके सारे जिलाधिकारी ने कह दिया था लॉक डाउन की जरूरत नहीं है, धैर्य रखिए.. लेकिन जिस गलत रिपोर्ट को आप के अधिकारियों ने आपको देखकर बिहार को बिहारियों की वधशाला बना दिया उसका भी जवाब तो देना ही होगा. 1 दिन पहले हुई जिला अधिकारियों की बैठक में यह कहा गया कि लॉकडाउन की जरूरत नहीं है, और हाईकोर्ट को जवाब देने में जवाब का उत्तर नहीं सूझा तो आपने लॉकडाउन लगा दिया. क्योंकि आपके पास ऑक्सीजन थी नहीं, डॉक्टर थे नहीं, वेंटिलेटर था नहीं, बेड है नहीं और यह स्थिति आज भी नहीं सुधरी. हालात जस के तस बने हैं, और आप धैर्य रखने की दुहाई दे रहे हैं.
क्या इतना ही होना चाहिए था बिहार में?
मुख्यमंत्री जी नियति के आगे किसी की कुछ नहीं चलती और जिनके अपने चले गए, वह इसी नीति का हवाला मानकर धीरज रख रहे हैं. आपको फिर एक बार उसी व्यवस्था में पैक हो जाना चाहिए जहां से आप के अधिकारी आपको जवाब दे रहे हैं. बिहार में न्याय के साथ सब कुछ चल रहा है. फील गुड करिए. अच्छे अहसासों के साथ जिएं क्योंकि आपके लिए भी आपके मन में अच्छे विचारों का होना जरूरी है. हालांकि विपक्ष इस पर अलग ही राय रखता है. बात यह भी नहीं है विपक्ष क्यों राय रखता है, लेकिन पक्ष तो इस बात का उठ ही रहा है या अपने बिहार के लिए जो किया गया उससे बहुत ज्यादा बिहार में होना चाहिए था. वह नहीं हुआ इसका जिम्मेदार कोई दूसरा नहीं है. अब बिहार को धीरज नहीं उस काम की जरूरत है, जो बिहार के लोगों को सांस वाली हवा दे सके. लोगों को बचाने के लिए धरती के भगवान स्वरूप डॉक्टर दे सके. अस्पतालों को चलाने का स्टाफ दे सके.
धैर्य के लिए नहीं, आदेश के लिए फोन करिए
धैर्य रखने की बात इसलिए भी नहीं हो पा रही है मुख्यमंत्री जी कि अब विशेषज्ञ तीसरे वेब के आने की बात कह रहे हैं और विशेषज्ञों की अगर यह राय सही है, तो इस बार कोरोना का निवाला बिहार का नौनिहाल है. बिहार के लोगों की सांसें अटक गई हैं, क्योंकि अगर तीसरे लहर में बिहार के बच्चों को कोरोना होता है तो अब तक जो लोग गए हैं उनका खामियाजा तो बिहार नहीं भर पाएगा, लेकिन अगर बच्चों पर ऐसी स्थिति बनी तो बिहार इससे कभी उभर ही नहीं पाएगा. इसके लिए तैयारी करने की जरूरत है, और वह तैयारी धीरज रख कर नहीं बेचैन होकर करना पड़ेगा. क्योंकि सरकार धीरज रख कर अधिकारियों के फाइलों के भरोसे पन्नों की गिनती करती रही, तो बिहार के कितने लोगों की किस्मत के पन्ने अनाथ हो जाएंगे कहा नहीं जा सकता. इसलिए मुख्यमंत्री जी धीरज रखने की नहीं, बल्कि मजबूती से काम करने की तरफ बिहार को बढ़ाना चाहिए. बिहार की जनता को धैर्य रखने के लिए नहीं बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए आदेश देने का फोन करिए. शायद बिहार के लिए लिखी जा रही नियति कोई और रास्ता पकड़ ले और बिहार में एक बार फिर बाहर जैसी स्थिति हो जाए, क्योंकि चाह तो बिहार भी यही रहा है कि बिहार में बहार है नीतीश कुमार है.
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