पटना: बिहार सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी, ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को 65 फीसदी आरक्षण दिये गए हैं, इस आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई टल गई है. इन मामलों पर चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ गौरव कुमार की याचिका के साथ 2 फरवरी 2024 को सुनवाई करेगी.
नवंबर में दी गई थी कानून को चुनौती: इन याचिकाओं में राज्य सरकार द्वारा नवंबर 2023 को पारित कानून को चुनौती दी गई थी. जिसमें एससी, एसटी, ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को 65 फीसदी आरक्षण दिया गया है, जबकि सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए मात्र 35 फीसदी ही पदों पर सरकारी सेवा में दी जा सकती है.
'आरक्षण का ये फैसला गलत': अधिवक्ता दीनू कुमार ने अपनी याचिका में बताया था कि सामान्य वर्ग में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 फीसदी आरक्षण रद्द करना भारतीय संविधान की धारा 14 और धारा 15(6)(b) के विरुद्ध है. बताया कि जातिगत सर्वेक्षण के बाद जातियों के आनुपातिक आधार पर आरक्षण का ये निर्णय लिया गया है, ना कि सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लंबित: सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा स्वाहने मामलें में आरक्षण की सीमा पर 50 प्रतिशत का प्रतिबंध लगाया था. जातिगत सर्वेक्षण का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए फिलहाल लंबित है. सुप्रीम कोर्ट में इस आधार पर राज्य सरकार के उस निर्णय को चुनौती दी गई, जिसमें राज्य सरकार ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ा कर 65 फीसदी कर दिया था.
2 फरवरी को अगली सुनवाई: बता दें कि पूर्व में गौरव कुमार की याचिका पर कोर्ट ने राज्य सरकार के निर्णय पर रोक लगाने से इंकार करते हुए राज्य सरकार को 12 जनवरी 2024 तक जवाब देने का निर्देश दिया था लेकिन अब वो सुनवाई टल गई है. सुनवाई की नई तारीख 2 फरवरी होगी.
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