पटना: पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने पटना के चर्चित सुल्तान पैलेस, जिसे अभी परिवहन भवन के नाम से जाना जाता है, को ध्वस्त करने के विरुद्ध दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. अमरजीत की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस संजय करोल (Chief Justice Sanjay Karol) की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए सुल्तान पैलेस के मामले पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश देते हुए राज्य सरकार को 8 सप्ताह में जवाब देने को कहा.
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चर्चित सुल्तान पैलेस को ध्वस्त किए जाने के मामले पर सुनवाई: इस जनहित याचिका में राज्य सरकार के उस निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसने सुल्तान पैलेस को तोड़े जाने का निर्णय लिया गया है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री रामकृष्ण ने कोर्ट को बताया कि ये ऐतिहासिक महत्व का स्मारक है और लगभग सौ साल पुराना है. ऐसे भवन के देखभाल और उसे सही स्थिति में रखने की जगह उसे तोड़े जाने का राज्य सरकार ने निर्णय लिया है, जो उचित नहीं है.
1 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई: कोर्ट ने राज्य सरकार को बताने को कहा कि सौ साल पुराने ऐतिहासिक स्मारक को क्यों तोड़ने का निर्णय लिया गया है. कोर्ट ने इस जनहित याचिका में उठाए गए मामला की सराहना करते हुए राज्य सरकार को जवाब देने के लिए आठ सप्ताह का मोहलत दिया था. इस मामलें पर अगली सुनवाई 1 दिसम्बर, 2022 को होगी.
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बैरिस्टर सर सुल्तान अहमद द्वारा बनाया गया था सुल्तान पैलेस : पटना के बीर चंद पटेल रोड पर स्थित सुल्तान पैलेस, 1922 में पटना के प्रसिद्ध बैरिस्टर सर सुल्तान अहमद द्वारा बनवाया गया था, जिन्होंने पटना हाईकोर्ट में न्यायाधीश के रूप में भी काम किया था. वह 1923 से 1930 तक पटना विश्वविद्यालय के पहले भारतीय कुलपति भी रहे थे. बिहार सरकार ने इस ऐतिहासिक इमारत को गिराकर उसके स्थान पर पांच सितारा होटल बनाने का फैसला किया, जिसका लोग विरोध कर रहे हैं.
100 साल पहले 22 लाख में बनी हवेली : आज सुल्तान पैलैस सौ साल का हो चुका है. करीब 10 एकड़ में निर्मित इस हवेली के वास्तुकार अली जान थे. इसकी अद्भुत नक्काशी प्रसिद्ध कारीगर मंजुल हसन काजमी ने की थी. इंडो-सारसेनिक शैली में बनी इस हवेली में सुल्तान अहमद ने मुगल व राजपूत शैलियों को खास जगह दी. जानकार बताते है कि सुल्तान पैलेस के निर्माण में करीब 22 लाख रुपये खर्च हुए थे.
सोने के पानी से दीवारों और छत की नक्काशी : हवेली के पिछले हिस्से में महिलाओं के लिए जनाना महल, आगे का भाग पुरुषों के लिए बनाया गया. निर्माण में सफेद संगमरमर का प्रयोग किया गया. मुख्य हॉल और डाइनिंग रूम की छत और दीवारों की नक्काशी में 18 कैरेट सोने का उपयोग किया गया. बताया जाता है कि उपर की मंजिल पर जाने के लिए बनाई गई नक्काशीदार सीढ़ी के लिए बर्मा से लकड़ी मंगवाई गई थी. दीवारों पर फूल-पत्तियों की चित्रकारी, दरवाजों और रोशनदानों में रंगीन शीशे विदेशों से मंगवाए गये थे.
ट्विटर पर ‘सुल्तान पैलेस’ को बचाने की मुहिम छिड़ी : बिहार के पटना में पांच सितारा होटल बनाने के लिए ऐतिहासिक ‘सुल्तान पैलेस’ को ध्वस्त करने के राज्य सरकार के प्रस्ताव पर फिलहाल रोक लगाने के पटना उच्च न्यायालय के निर्णय से उत्साहित विरासत प्रेमियों ने मंगलवार को विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर इस धरोहर को संरक्षित करने के समर्थन में ट्विटर पर अभियान चलाया. पटना से लेकर कोलकाता तक के लोगों ने सुल्तान पैलेस की तस्वीरें शेयर कर 'लॉन्ग लिव सुल्तान पैलेस' हैशटैग के साथ ट्वीट किये और इसे पर्यटन स्थल के तौर पर संरक्षित करने की अपील की.
हाईकोर्ट का आदेश, उम्मीद की किरण : इतिहासकार, विद्वान, वकील, वास्तुकार, संरक्षणवादी और अन्य धरोहर प्रेमियों ने एक जनहित याचिका के जवाब में पटना उच्च न्यायालय द्वारा स्थगनादेश का स्वागत करते हुए कहा कि यह ऐसे समय में उम्मीद की एक किरण है, जब धरोहर इमारतों को ध्वस्त करने का काम जारी है. वहीं कुछ का कहना है कि पटना समाहरणालय का हश्र अब भी सुल्तान पैलेस को लेकर उनके मन में आशंका पैदा कर रहा है. पटना के वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक प्रणव के चौधरी ने कहा कि उनके लिए पटना के प्राचीन कलेक्टरेट को ध्वस्त होते देखना 1990 के उस दुखद समय को याद दिलाता है, जब डाक बंगला गिराया गया था.
''30 वर्ष पहले 19वीं सदी के डाक बंगले को गिराना काफी दुखद था और फिर समाहरणालय को ऐसे ध्वस्त होते देखना भी बेहद पीड़ादायक था. इसको लेकर किसी को समाज में कोई पछतावा भी नहीं है. पटना ने पिछले 10 वर्ष में कई ऐतिहासिक इमारते खोईं हैं और फिर अब सुल्तान पैलेस को गिराकर उसकी जगह पांच सितारा होटल बनाने का प्रस्ताव.. हमें यह सब रोकना होगा.'' - प्रणव के चौधरी, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक
दिल्ली के इतिहासकार एस. इरफान हबीब ने ट्वीट कर कहा, ''पटना के लोगों को बधाई और पटना उच्च न्यायालय का मामले में हस्तक्षेप करने और खूबसूरत इमारत बचाने के लिए शुक्रिया.''
"हमारे अतीत को मिटाकर भविष्य नहीं बनाया जा सकता है, यह एक समग्र विकास होना चाहिए. हमने पटना समाहरणालय को खो दिया, जिसे राज्य सरकार द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए था. और, अब इस खूबसूरत महल पर विध्वंस की तलवार लटक रही थी, इसलिए हमने इसे भावी पीढ़ी के लिए बचाने की खातिर हस्तक्षेप करने का फैसला किया. हम नहीं चाहते कि सुल्तान पैलेस का हश्र पटना समाहरणालय जैसा हो." - श्रीराम कृष्ण, याचिकाकर्ता के वकील
कोलकाता स्थित वास्तुकार संदीपन चटर्जी ने कहा, "हमने समाहरणालय में एक विरासत स्थल खो दिया है जिसे पर्यटन के लिहाज से सोने की खान में बदला जा सकता था.. आजादी के 75 साल पूरे होने के अवसर पर सुल्तान पैलेस को बचाना बेहद समीचीन होगा. सरकार और लोगों को, दोनों को समझदारी दिखानी चाहिए."
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