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'इस घटना ने कोर्ट की अंतरात्मा को झकझोर दिया', जादू-टोना के आरोप में महिला को निर्वस्त्र करने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा - SC ON DISROBING OF WOMAN

एक महिला को जादू-टोना करने के आरोप में उसको शारीरिक रूप से प्रताड़ित किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट (Getty Images)
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By Sumit Saxena

Published : Dec 19, 2024, 11:02 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि, जादू-टोना के आरोप में एक महिला के साथ सार्वजनिक रूप से शारीरिक दुर्व्यवहार और उसके कपड़े उतरवाने की घटना से उसकी अंतरात्मा हिल गई है. कोर्ट ने कहा कि, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के मामले में समानता की बात करें तो अभी बहुत कुछ हासिल किया जाना बाकी है.

सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट द्वारा मामले की जांच पर रोक लगाने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. यह घटना मार्च 2020 में बिहार के चंपारण जिले में हुई थी. 13 लोगों पर शिकायतकर्ता की दादी पर जादू टोना करने का आरोप लगाते हुए हमला करने का आरोप लगाया गया था.

उन्होंने बीच बचाव करने आई एक अन्य महिला पर भी हमला किया. 13 लोगों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं और डायन अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी. पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की, जिस पर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया. हालांकि, आरोपियों द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कार्यवाही पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने मामले का निपटारा करते हुए ट्रायल कोर्ट को प्रतिदिन सुनवाई करने के निर्देश दिए और आरोपियों को 15 जनवरी, 2025 को पेश होने का निर्देश दिया.

मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस सीटी रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की बेंच ने कहा कि, समाज में व्यक्ति के अस्तित्व के मूल में गरिमा का होना बहुत जरूरी है और किसी अन्य व्यक्ति या राज्य के कृत्य से उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली कोई भी कार्रवाई संविधान की भावना के खिलाफ जा सकती है, जो यह सुनिश्चित करके सभी व्यक्तियों की सुरक्षा की गारंटी देता है कि, प्रत्येक व्यक्ति के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित की जाए.

बेंच ने आगे कहा कि, अगर किसी व्यक्ति की गरिमा से समझौता किया जाता है, तो उसके मानवाधिकार और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के विभिन्न अधिनियमों द्वारा गारंटीकृत हैं, खतरे में पड़ जाते हैं. पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति करोल ने कहा, "जब किसी महिला के ऐसे अधिकारों को खतरा होता है, तो खतरा तुलनात्मक रूप से अधिक होता है, क्योंकि समानता के मामले में बहुत प्रगति के बावजूद, बहुत कुछ हासिल किया जाना बाकी है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के मामले में.

पीठ ने कहा कि, एफआईआर से पता चलता है कि, पीड़िता पर गंभीर आरोप लगाए गए और सार्वजनिक रूप से उसके कपड़े उतारे गए और उस पर हमला किया गया. यह निस्संदेह उसकी गरिमा का अपमान है. न्यायमूर्ति करोल ने कहा कि, यह वास्तविकता कि इस तरह के कृत्य अभी भी 21वीं सदी के जीवन का हिस्सा हैं. एक ऐसा तथ्य है जिसने इस अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दिया है.

पीठ ने कहा कि, जब किसी व्यक्ति की गरिमा का उल्लंघन करने वाले अपराधों की बात आती है, तो हमारे विचार से जांच और न्यायिक अधिकारियों दोनों पर जिम्मेदारी सामान्य से अधिक होती है या जो आमतौर पर अन्य परिस्थितियों में उन पर डाली जाती है.

पीठ ने कहा कि एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में जादू टोना से संबंधित 85 मामले दर्ज किए गए. पिछले वर्षों में यह संख्या क्रमशः 68, 88 और 102 थी. पीठ ने कहा, हालांकि ऊपर उल्लिखित संख्याएं नगण्य लग सकती हैं, फिर भी, 102 या 85, चाहे जो भी संख्या हो, रिपोर्ट की गई अमानवीय, अपमानजनक घटनाओं में से प्रत्येक संवैधानिक भावना पर एक धब्बा है.

ये भी पढ़ें: पतियों को दंडित करने या धमकाने के लिए कानून के सख्त प्रावधानों का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता, SC की टिप्पणी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि, जादू-टोना के आरोप में एक महिला के साथ सार्वजनिक रूप से शारीरिक दुर्व्यवहार और उसके कपड़े उतरवाने की घटना से उसकी अंतरात्मा हिल गई है. कोर्ट ने कहा कि, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के मामले में समानता की बात करें तो अभी बहुत कुछ हासिल किया जाना बाकी है.

सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट द्वारा मामले की जांच पर रोक लगाने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. यह घटना मार्च 2020 में बिहार के चंपारण जिले में हुई थी. 13 लोगों पर शिकायतकर्ता की दादी पर जादू टोना करने का आरोप लगाते हुए हमला करने का आरोप लगाया गया था.

उन्होंने बीच बचाव करने आई एक अन्य महिला पर भी हमला किया. 13 लोगों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं और डायन अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी. पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की, जिस पर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया. हालांकि, आरोपियों द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कार्यवाही पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने मामले का निपटारा करते हुए ट्रायल कोर्ट को प्रतिदिन सुनवाई करने के निर्देश दिए और आरोपियों को 15 जनवरी, 2025 को पेश होने का निर्देश दिया.

मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस सीटी रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की बेंच ने कहा कि, समाज में व्यक्ति के अस्तित्व के मूल में गरिमा का होना बहुत जरूरी है और किसी अन्य व्यक्ति या राज्य के कृत्य से उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली कोई भी कार्रवाई संविधान की भावना के खिलाफ जा सकती है, जो यह सुनिश्चित करके सभी व्यक्तियों की सुरक्षा की गारंटी देता है कि, प्रत्येक व्यक्ति के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित की जाए.

बेंच ने आगे कहा कि, अगर किसी व्यक्ति की गरिमा से समझौता किया जाता है, तो उसके मानवाधिकार और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के विभिन्न अधिनियमों द्वारा गारंटीकृत हैं, खतरे में पड़ जाते हैं. पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति करोल ने कहा, "जब किसी महिला के ऐसे अधिकारों को खतरा होता है, तो खतरा तुलनात्मक रूप से अधिक होता है, क्योंकि समानता के मामले में बहुत प्रगति के बावजूद, बहुत कुछ हासिल किया जाना बाकी है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के मामले में.

पीठ ने कहा कि, एफआईआर से पता चलता है कि, पीड़िता पर गंभीर आरोप लगाए गए और सार्वजनिक रूप से उसके कपड़े उतारे गए और उस पर हमला किया गया. यह निस्संदेह उसकी गरिमा का अपमान है. न्यायमूर्ति करोल ने कहा कि, यह वास्तविकता कि इस तरह के कृत्य अभी भी 21वीं सदी के जीवन का हिस्सा हैं. एक ऐसा तथ्य है जिसने इस अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दिया है.

पीठ ने कहा कि, जब किसी व्यक्ति की गरिमा का उल्लंघन करने वाले अपराधों की बात आती है, तो हमारे विचार से जांच और न्यायिक अधिकारियों दोनों पर जिम्मेदारी सामान्य से अधिक होती है या जो आमतौर पर अन्य परिस्थितियों में उन पर डाली जाती है.

पीठ ने कहा कि एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में जादू टोना से संबंधित 85 मामले दर्ज किए गए. पिछले वर्षों में यह संख्या क्रमशः 68, 88 और 102 थी. पीठ ने कहा, हालांकि ऊपर उल्लिखित संख्याएं नगण्य लग सकती हैं, फिर भी, 102 या 85, चाहे जो भी संख्या हो, रिपोर्ट की गई अमानवीय, अपमानजनक घटनाओं में से प्रत्येक संवैधानिक भावना पर एक धब्बा है.

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