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देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जयंती पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने दी श्रद्धांजलि - डॉ राजेंद्र प्रसाद के समाधि स्थल पर माल्यार्पण

प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती के अवसर पर राज्यपाल फागू चौहान, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके समाधि स्थल पर माल्यार्पण किया. इस दौरान विधान परिषद के सभापति समेत कई अधिकारी उपस्थित रहे.

राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने दी श्रद्धांजलि
राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने दी श्रद्धांजलि
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Published : Dec 3, 2021, 12:25 PM IST

पटना: आज भारत के प्रथम राष्ट्रपति (First President of India) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती (137th Birth Anniversary of Dr Rajendra Prasad) है. इस मौके पर पर देश उन्हें याद कर रहा है. वहीं बिहार के राज्यपाल फागू चौहान और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजेन्द्र चौक पर राजभवन के सामने डॉ राजेंद्र प्रसाद (CM Nitish Kumar Pays Tribute To Dr Rajendra Prasad) के समाधि स्थल पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी. इसके साथ ही बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने भी श्रद्धांजलि दी. इस दौरान जिलाधिकारी और एसपी के साथ-साथ बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों ने राजेंद्र बाबू की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया.

इसे भी पढ़ें: आज प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती

राजेन्द्र बाबू का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के तत्कालीन सारण जिले (अब सिवान) के जीरादेई नामक गांव में हुआ था. राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक का रहा था. राजेन्द्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे और उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं. राजेन्द्र बाबू की वेशभूषा बड़ी सरल थी. उनके चेहरे-मोहरे को देखकर पता ही नहीं लगता था कि वे इतने प्रतिभासम्पन्न और उच्च व्यक्तित्ववाले सज्जन हैं. देखने में वे सामान्य किसान जैसे लगते थे.

ये भी पढ़ें: शराबबंदी पर Action में दरभंगा SSP बाबूराम, दारोगा सहित 5 पुलिसवालों को किया सस्पेंड

मात्र 12 साल की उम्र में उनका विवाह राजवंशी देवी से हो गया था. डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे. गांधीजी के संपर्क में आने के बाद वह आजादी की लड़ाई में पूरी तरह से मशगूल हो गए. उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. उनको 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया. 15 जनवरी 1934 को जब बिहार में एक विनाशकारी भूकम्प आया, तब वह जेल में थे. जेल से रिहा होने के दो दिन बाद ही राजेंद्र प्रसाद धन जुटाने और राहत के कार्यों में लग गए. 1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया.

जुलाई 1946 को जब संविधान सभा को भारत के संविधान के गठन की जिम्मेदारी सौंपी गयी, तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया. आजादी के ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू किया गया और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में चुना गया. राष्ट्रपति के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग उन्होंने काफी सूझ-बूझ से किया और दूसरों के लिए एक नई मिशाल कायम की. राष्ट्रपति के रूप में 12 साल के कार्यकाल के बाद वर्ष 1962 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेवानिवृत्त हो गए और उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया. सेवानिवृत्ति के बाद अपने जीवन के कुछ महीने उन्होंने पटना के सदाक़त आश्रम में बिताए. 28 फरवरी 1963 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद का देहांत हो गया.

हर साल की तरह इस बार भी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. वहीं सिवान के जीरादेई स्थित उनके पैतृक आवास पर जोर-शोर से तैयारी चल रही है. जहां प्रशासनिक अधिकारी और कई बड़े नेता उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने पहुंचेंगे.

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पटना: आज भारत के प्रथम राष्ट्रपति (First President of India) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती (137th Birth Anniversary of Dr Rajendra Prasad) है. इस मौके पर पर देश उन्हें याद कर रहा है. वहीं बिहार के राज्यपाल फागू चौहान और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजेन्द्र चौक पर राजभवन के सामने डॉ राजेंद्र प्रसाद (CM Nitish Kumar Pays Tribute To Dr Rajendra Prasad) के समाधि स्थल पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी. इसके साथ ही बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने भी श्रद्धांजलि दी. इस दौरान जिलाधिकारी और एसपी के साथ-साथ बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों ने राजेंद्र बाबू की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया.

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राजेन्द्र बाबू का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के तत्कालीन सारण जिले (अब सिवान) के जीरादेई नामक गांव में हुआ था. राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक का रहा था. राजेन्द्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे और उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं. राजेन्द्र बाबू की वेशभूषा बड़ी सरल थी. उनके चेहरे-मोहरे को देखकर पता ही नहीं लगता था कि वे इतने प्रतिभासम्पन्न और उच्च व्यक्तित्ववाले सज्जन हैं. देखने में वे सामान्य किसान जैसे लगते थे.

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मात्र 12 साल की उम्र में उनका विवाह राजवंशी देवी से हो गया था. डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे. गांधीजी के संपर्क में आने के बाद वह आजादी की लड़ाई में पूरी तरह से मशगूल हो गए. उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. उनको 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया. 15 जनवरी 1934 को जब बिहार में एक विनाशकारी भूकम्प आया, तब वह जेल में थे. जेल से रिहा होने के दो दिन बाद ही राजेंद्र प्रसाद धन जुटाने और राहत के कार्यों में लग गए. 1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया.

जुलाई 1946 को जब संविधान सभा को भारत के संविधान के गठन की जिम्मेदारी सौंपी गयी, तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया. आजादी के ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू किया गया और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में चुना गया. राष्ट्रपति के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग उन्होंने काफी सूझ-बूझ से किया और दूसरों के लिए एक नई मिशाल कायम की. राष्ट्रपति के रूप में 12 साल के कार्यकाल के बाद वर्ष 1962 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेवानिवृत्त हो गए और उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया. सेवानिवृत्ति के बाद अपने जीवन के कुछ महीने उन्होंने पटना के सदाक़त आश्रम में बिताए. 28 फरवरी 1963 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद का देहांत हो गया.

हर साल की तरह इस बार भी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. वहीं सिवान के जीरादेई स्थित उनके पैतृक आवास पर जोर-शोर से तैयारी चल रही है. जहां प्रशासनिक अधिकारी और कई बड़े नेता उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने पहुंचेंगे.

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