पटना: आज विश्व पृथ्वी दिवस है. इस मौके पर वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव दीपक कुमार सिंह ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन की वजह से हम पृथ्वी को बहुत नुकसान पहुंचा चुके हैं. लेकिन अब हमें तय करना होगा कि प्रकृति और प्राकृतिक संसाधन को हम किस तरह बचाएं ताकि पृथ्वी के साथ हमारा भविष्य सुरक्षित रहे. विश्व पृथ्वी दिवस पर 'पानी रे पानी' द्वारा आयोजित वर्चुअल संवाद कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए दीपक कुमार सिंह ने ये बातें कहीं.
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विकास की अवधारणा को बदलना जरूरी
वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव दीपक कुमार सिंह ने कहा कि पर्यावरण को दांव पर लगाकर विकास की अवधारणा को बदलने की आवश्यकता है. पिछले कुछ दशक में हमने विकास के नाम पर प्रकृति के साथ ज्यादती की और नतीजा सामने है. इस दौरान ऑक्सीजन की किल्लत को लेकर मचे शोर का उल्लेख करते हुये उन्होंने कहा कि प्रकृति द्वारा दिये जाने वाले अनमोल उपहार को समझना होगा. ऐसे में समाज को अपने भविष्य की चिंता करते हुए जल, जंगल और जैवविविधता आदि के महत्व को समझकर अपने व्यवहार में बदलाव लाने की जरूरत है.
पर्यावरणविदों ने रखे अपने विचार
दीपक कुमार सिंह ने कहा कि प्रकृति का विनाश कर उसे दोबारा पुनर्जीवित करना कठिन ही नहीं नामुमकिन कार्य है. ऐसे में समाज को प्रकृति के अनुकूल व्यवहार कर बुद्धिमानी का परिचय देना आवश्यक है. संवाद कार्यक्रम में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड के कई पर्यावरणविदों के अलावा राज्यभर के सैंकड़ों पर्यावरण और पानी के मसले पर कार्य करने वाले सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने भाग लिया. इस अवसर पर अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ में पर्यावरण विज्ञान के संकाय सदस्य डॉ. वेंकटेश दत्ता ने नदी प्रणालियों और भूजल की निरंतरता पर अपने कार्यानुभव को साझा करते हुये कहा कि प्राकृतिक संसाधनों को पुनर्जीवित करने का काम धैर्य का है और इसके लिये समय देना आवश्यक है.
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कोरोना एक चेतावनी
इसके पहले अभियान के संयोजक पंकज मालवीय ने संवाद में भाग ले रहे विशेषज्ञों से परिचय कराते हुये कहा कि पृथ्वी की सुंदरता के लिये सामाजिक भागीदारी से ही कोई कार्य संभव है. विकास के नाम पर प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने वालों “कोरोना” एक चेतावनी है. इसके अलावा भोपाल के भूजल विशेषज्ञ के.जी. व्यास और नदी विशेषज्ञ दिनेश मिश्र ने भी संबोधित किया.