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न कोरोना, न ही स्टेरॉइड का इस्तेमाल, फिर भी हुआ ब्लैक फंगस, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट

आरा जिले की एक महिला में ब्लैक फंगस का संक्रमण पाया गया है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उक्त महिला न तो कभी कोविड पॉजिटिव थी और न ही उसने किसी तरह के स्टेरॉइड का इस्तेमाल की थी. इसके बावजूद वह ब्लैक फंगस इंफेक्शन का शिकार हो गई. जानिए इस पूरे मामले पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट...

black fungus
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Published : May 24, 2021, 10:32 PM IST

पटना: कोविड संक्रमण और ब्लैक फंगस बीमारी ने बिहार को जकड़ रखा है. यह चिंता का विषय है. इसी बीच आरा जिले से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने चिकित्सा जगत को भी सकते में डाल दिया है.

इस हैरान करने वाली खबर के मुताबिक आरा जिले की एक महिला में ब्लैक फंगस का संक्रमण पाया गया है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उक्त महिला न तो कभी कोविड पॉजिटिव थी और न ही उसने किसी तरह के स्टेरॉइड का इस्तेमाल की थी. इसके बावजूद वह ब्लैक फंगस इंफेक्शन का शिकार हो गई.

महिला को 20 दिन पहले बुखार आया और वह गांव के मेडिकल स्टोर से दवा लेकर ठीक हो गई. उसने ना तो करोना का जांच कराया ना ही उसे कोई विशेष परेशानी हुई. जिसकी वजह से उसे हॉस्पिटल जाना पड़े. लेकिन कुछ दिनों पूर्व महिला के आधे चेहरे पर दर्द शुरू हुआ और बाएं आंख की रोशनी कम होने लगी.

ये भी पढ़ें: IGIMS में ब्लैक फंगस के 65 मरीजों का चल रहा इलाज, 2 की हुई मौत

महिला की आंख बाहर की तरफ आने लगा. ऐसे में जब आरा के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में महिला ने जब दिखाया तब डॉक्टर को महिला के लक्षण से फंगस का संदेह हुआ. जिसके बाद उन्होंने सीटी स्कैन की सलाह दी. सिटी स्कैन में फंगस का पता चला. इसके बाद पटना एम्स में महिला को एडमिट किया गया. महिला की बाई आंख की रोशनी जा चुकी है और एम्स में उसका इलाज चल रहा है.

देखें वीडियो...

क्या कहते हैं डॉ दिवाकर तेजस्वी
इस केस के आने के बाद सवाल यह उठने लगा है कि क्या जो हॉस्पिटलाइज नहीं हुआ है. उसे भी ब्लैक फंगस का खतरा है? ऐसे में पटना के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ दिवाकर तेजस्वी ने बताया कि गांव में डेट्रासोन जैसी कई एस्ट्रॉयड की दवाइयां है. जिसे गांव के मेडिकल स्टोर धड़ल्ले से उपयोग करते हैं और लोग जरा सी बीमारी महसूस होने पर इसका सेवन करना शुरू कर देते हैं. उन्होंने कहा कि यह महिला जरूर एसिंप्टोमेटिक रूप से संक्रमित हुई होगी और बुखार के दौरान स्ट्राइड की कुछ दवाइयां ली होगी. ऐसे में एस्ट्रॉयड का सेवन से शरीर की इम्युनिटी कम होती है और जब शरीर में इम्यूनोकॉम्प्रोमाइजेशन की स्थिति आ जाती है. तब ब्लैक फंगस का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है.

ये भी पढ़ें: विपक्ष का आरोप: सरकार नहीं कर रही ब्लैक फंगस से निपटने की तैयारी, महामारी घोषित करने में हुई देर

"गांव में ही मिट्टी काफी ज्यादा होती है और मिट्टी के आस पास ह्यूमिडिटी ज्यादा रहती है. गांव में गोबर की गंदगी भी काफी ज्यादा रहती है, जो ब्लैक फंगस के लिए काफी फेवरेबल है. ऐसी स्थितियों में कोई मरीज जिसको इम्यूनोकॉम्प्रोमाइजेशन की स्थिति आ गई हो. उसको ब्लैक फंगस अपनी चपेट में ले सकता है और इसकी संभावना काफी ज्यादा है. एस्ट्रॉयड की गोलियां संक्रमण के शुरुआती दौर में नहीं खानी चाहिए और चिकित्सकों के परामर्श से ही सेवन करना चाहिए": - दिवाकर तेजस्वी, डॉक्टर

पटना: कोविड संक्रमण और ब्लैक फंगस बीमारी ने बिहार को जकड़ रखा है. यह चिंता का विषय है. इसी बीच आरा जिले से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने चिकित्सा जगत को भी सकते में डाल दिया है.

इस हैरान करने वाली खबर के मुताबिक आरा जिले की एक महिला में ब्लैक फंगस का संक्रमण पाया गया है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उक्त महिला न तो कभी कोविड पॉजिटिव थी और न ही उसने किसी तरह के स्टेरॉइड का इस्तेमाल की थी. इसके बावजूद वह ब्लैक फंगस इंफेक्शन का शिकार हो गई.

महिला को 20 दिन पहले बुखार आया और वह गांव के मेडिकल स्टोर से दवा लेकर ठीक हो गई. उसने ना तो करोना का जांच कराया ना ही उसे कोई विशेष परेशानी हुई. जिसकी वजह से उसे हॉस्पिटल जाना पड़े. लेकिन कुछ दिनों पूर्व महिला के आधे चेहरे पर दर्द शुरू हुआ और बाएं आंख की रोशनी कम होने लगी.

ये भी पढ़ें: IGIMS में ब्लैक फंगस के 65 मरीजों का चल रहा इलाज, 2 की हुई मौत

महिला की आंख बाहर की तरफ आने लगा. ऐसे में जब आरा के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में महिला ने जब दिखाया तब डॉक्टर को महिला के लक्षण से फंगस का संदेह हुआ. जिसके बाद उन्होंने सीटी स्कैन की सलाह दी. सिटी स्कैन में फंगस का पता चला. इसके बाद पटना एम्स में महिला को एडमिट किया गया. महिला की बाई आंख की रोशनी जा चुकी है और एम्स में उसका इलाज चल रहा है.

देखें वीडियो...

क्या कहते हैं डॉ दिवाकर तेजस्वी
इस केस के आने के बाद सवाल यह उठने लगा है कि क्या जो हॉस्पिटलाइज नहीं हुआ है. उसे भी ब्लैक फंगस का खतरा है? ऐसे में पटना के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ दिवाकर तेजस्वी ने बताया कि गांव में डेट्रासोन जैसी कई एस्ट्रॉयड की दवाइयां है. जिसे गांव के मेडिकल स्टोर धड़ल्ले से उपयोग करते हैं और लोग जरा सी बीमारी महसूस होने पर इसका सेवन करना शुरू कर देते हैं. उन्होंने कहा कि यह महिला जरूर एसिंप्टोमेटिक रूप से संक्रमित हुई होगी और बुखार के दौरान स्ट्राइड की कुछ दवाइयां ली होगी. ऐसे में एस्ट्रॉयड का सेवन से शरीर की इम्युनिटी कम होती है और जब शरीर में इम्यूनोकॉम्प्रोमाइजेशन की स्थिति आ जाती है. तब ब्लैक फंगस का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है.

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"गांव में ही मिट्टी काफी ज्यादा होती है और मिट्टी के आस पास ह्यूमिडिटी ज्यादा रहती है. गांव में गोबर की गंदगी भी काफी ज्यादा रहती है, जो ब्लैक फंगस के लिए काफी फेवरेबल है. ऐसी स्थितियों में कोई मरीज जिसको इम्यूनोकॉम्प्रोमाइजेशन की स्थिति आ गई हो. उसको ब्लैक फंगस अपनी चपेट में ले सकता है और इसकी संभावना काफी ज्यादा है. एस्ट्रॉयड की गोलियां संक्रमण के शुरुआती दौर में नहीं खानी चाहिए और चिकित्सकों के परामर्श से ही सेवन करना चाहिए": - दिवाकर तेजस्वी, डॉक्टर

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